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कहर तो चार धाम में बरपा, लेकिन नैनीताल-रानीखेत भी नहीं गए पर्यटक

उत्तराखंड में कुदरत ने जो कहर बरपाया उसे पूरी दुनिया ने टीवी चैनलों पर देखा. चार धाम में आए जल प्रलय को देखकर लोग हैरान थे. बाढ़ में फंसे लोगों की हालत से हर कोई सहम गया. जो लोग पहाड़ों में जाकर छुट्टियां मनाने की सोच रहे थे उन्‍होंने तौबा-तौबा कर ली और जो जाने ही वाले थे उन्‍होंने आनन-फानन में टिकट कैंसल करवा दिए.

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उत्तराखंड में कुदरत ने जो कहर बरपाया उसे पूरी दुनिया ने टीवी चैनलों पर देखा. चार धाम में आए जल प्रलय को देखकर लोग हैरान थे. बाढ़ में फंसे लोगों की हालत से हर कोई सहम गया. जो लोग पहाड़ों में जाकर छुट्टियां मनाने की सोच रहे थे उन्‍होंने तौबा-तौबा कर ली और जो जाने ही वाले थे उन्‍होंने आनन-फानन में टिकट कैंसल करवा दिए.

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कुदरत की मार से इस पर्यटक राज्‍य को 12,000 करोड़ रुपये की टूरिस्ट आमदनी के नुकसान का अनुमान है और राज्य के जीडीपी को 11 फीसदी की क्षति पहुंची है.

पढ़ें: उत्तराखंड में बादल फटने से कैसे चौपट हुई राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था

लेकिन सबसे ज्‍यादा नुकसान पर्यटकों के सहारे गुजर-बसर करने वाले कुमाऊं मंडल के स्‍थानीय निवासियों का हुआ है. इन लोगों की शिकायत है कि बाढ़ गढ़वाल मंडल में आई और कुमाऊं में सबकुछ ठीक है. यहां के लोगों का कहना है कि पूरी दुनिया को ऐसा लग रहा है कि पूरा उत्तराखंड बाढ़ की चपेट में हैं, जबकि असलियत इसके ठीक उलट है.

दरअसल, उत्तराखंड दो मंडलों कुमाऊं और गढ़वाल से मिलकर बना है. कुमाऊं क्षेत्र में टूरिस्‍ट नैनीताल, जिम कॉर्बेट पार्क रानीखेत और अलमोड़ा जैसी जगहों पर घूमने जाते हैं. दूसरी ओर लोग गढ़वाल रीजन में चारधाम यात्रा के लिए जाते हैं.

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राज्‍य का गढ़वाल मंडल बाढ़ से प्रभावित है, लेकिन कुमाऊं मंडल में हालात सामन्‍य हैं. यहां पर उतनी ही बारिश हो रही है जितनी की अमूमन मानसून के मौसम में होती है. लेकिन गढ़वाल में आई बाढ़ की वजह से, टूरिस्‍ट कुमाऊं क्षेत्र में भी नहीं गए.

पर्यटकों की बेरुखी के चलते यहां के स्‍थानीय निवासी बर्बाद हो गए हैं. यहां के लोग अपनी गुजर-बसर के लिए पूरी तरह पर्यटकों पर निर्भर करते हैं. मई और जून में यहां आने वाले पर्यटकों की तादाद सबसे ज्‍यादा होती है, जिसे यहां 'सीजन टाइम' कहा जाता है. स्‍थानीय लोग अपनी सालभर की आमदनी का सबसे बड़ा हिस्‍सा इसी समय कमाते हैं. लेकिन इस साल जिस तरह से पूरा सीजन ठप पड़ गया उससे यहां के गाइड, ट्रैवल एजेंट्स, नाव वाले, घोड़े वाले और छोटी-मोटी दुकान चलाने वाले बेहद परेशान हैं. उन्‍हें इस बात की चिंता सता रही है कि अब वे पूरे साल कैसे अपना खर्चा निकालेंगे.

हालांकि नुकसान तो होटल व्‍यवसायियों को भी हुआ है, लेकिन वे रेट बढ़ाकर कभी और अपने नुकसान की भरपाई कर लेंगे क्‍योंकि जो भी घूमने आता है वह चाहे बाकी चीजों में कितनी भी कटौती क्‍यूं ना कर ले लेकिन उसे होटल में ठहरना ही पड़ता है, जबकि बाकी लोग ऐसा नहीं कर सकते क्‍योंकि उनके बिना भी टूरिस्‍ट अपना काम चला सकते हैं.

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गौरतलब है कि व्यापार, पर्यटन और हॉस्पिटलिटी राज्य की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा (25 फीसदी) साझा करते हैं. केरल, गोवा और हिमाचल प्रदेश में मिलाकर जितने देसी टूरिस्ट आते हैं, उससे ज्यादा सिर्फ उत्तराखंड में आते हैं.

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