उत्तराखंड कांग्रेस में मचा सियासी घमासान अब खुल कर सामने आ गया है, बुधवार हरीश रावत के एक के बाद एक आए ट्वीट से कांग्रेस में हलचल मच गई. सुबह सूरज के चढ़ते-चढ़ते और शाम तक चले इस सियासी घटनाक्रम के बाद, गुरुवार कांग्रेस आलाकमान ने उत्तराखंड कांग्रेस के लोगों को दिल्ली तलब कर लिया. अब वहां क्या होगा ये तो दिल्ली दरबार ही बता सकता है, पर हालात सीज़ फायर की तरफ इशारा कर रहे हैं.
अपनी ही पार्टी से नाराज हरीश
हरीश रावत ने अपनी नाराजगी पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया है. उन्होंने सिर्फ इतना कहा है कि समय आने पर जवाब दूंगा, मुहूर्त का इंतजार करिए. लेकिन हरीश रावत के बेहद करीबी कांग्रेस के नेता सुरेंद्र अग्रवाल ने जिस तरह खुल कर प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव पर जम कर निशाना साधा, उससे ये साफ है कि ये सब हरीश रावत के इशारे पर ही कहा गया है.
क्या बीजेपी के एजेंट हैं कांग्रेस प्रभारी?
सुरेंद्र अग्रवाल ने साफ कहा कि जिस तरीके से प्रभारी देवेंद्र यादव एक पक्ष को ही ध्यान रखकर काम कर रहे हैं, वह सही नहीं है. इतना ही नहीं, उन्होंने उनपर बीजेपी के इशारों पर काम करने का आरोप भी लगाया.
हरदा कैंप ने जिस तरह प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव को निशाने पर लिया है, वह कुछ-कुछ अंदर मचे कलह कुरुक्षेत्र का इशारा कर रहा है. हरीश रावत के बेहद करीबी सुरेन्द्र कुमार अग्रवाल ने जिस तरह से देवेन्द्र यादव को बीजेपी की राजनीति का साझीदार ठहरा दिया है, यह बिना हरदा के इशारा पर हुआ हो ऐसा किसी के गले नहीं उतरेगा.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, मिलकर हरीश रावत को बिना जानकारी दिए, किसी बीजेपी नेता को कांग्रेस में शामिल कराने दिल्ली ले गए थे. जबकि, हरीश रावत सहित प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को इसकी जानकारी नहीं दी गयी, इससे भी हरीश रावत आहत हैं.
प्रीतम सिंह गुट की बढ़ रही ताकत तो नहीं वजह ?
इतना ही नहीं, ये जानकारी भी मिल रही है कि जल्दी ही बीजेपी के मंत्री हरक सिंह की भी कांग्रेस में प्रीतम और देवेंद्र यादव शामिल करने के पक्ष में थे. जबकि हरीश रावत नहीं चाहते कि जो 2016 में उनकी सरकार को गिराकर गए, वे दोबारा कांग्रेस में आएं, जबकि प्रीतम गुट लगातार हरक को शामिल कराने की कोशिश कर रहा था. प्रीतम गुट की बढ़ रही ताकत भी हरीश रावत के लिए आने वाले समय मे मुसीबत खड़ी कर रही है.
कांग्रेस का दूसरा धड़ा दावा करता है कि प्रभारी यादव पार्टी के नेतृत्व, यानी सीधे राहुल गांधी के एजेंडे को लेकर उत्तराखंड में पार्टी को देख रहे हैं. इसी के तहत वे हर मंच से हरदा-प्रीतम या किसी तीसरे चेहरे के बजाय, सोनिया-राहुल को रख झगड़ा शांत कराना चाह रहे थे, लेकिन गुटबाजी के घुन से गहरे तक ग्रसित कांग्रेस में हरदा बनाम प्रीतम कैंप जंग में कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं दिखता. शायद हरदा के ताजा हल्लाबोल की बड़ी वजह भी यही है. इसी के चलते प्रभारी देवेंद्र यादव को लेकर पहाड़ कांग्रेस में दोराय बन चुकी है.
वैसे तो हरीश रावत का छलका दर्द बताता है कि पार्टी में अंदरुनी तौर पर जरूर बहुत कुछ ऐसा चल रहा जो उनके गले नहीं उतर रहा. अब यह सही है कि ‘सबकी चाहत हरीश रावत’ के उनके नारे को कांग्रेस नेतृत्व जीत का मंत्र नहीं मान रहा, लेकिन क्या इतने भर से हरदा हिचकेंगे और हमलावर होकर बागी सुर दिखाने लगेंगे? या फिर बाग़ियों की कोई आहट है जिसने रावत को राजनीतिक आर-पार की प्रेशर पॉलिटिक्स खेलने को मजबूर कर दिया? क्योंकि हरीश रावत पिछले काफी समय से चेहरा घोषित करने की मांग कर रहे थे, पर आलाकमान ने इस पर हामी नहीं भरी तो मजबूर होकर हरीश रावत को ये पैंतरा अपनाना पड़ा.