कोरोना के बढ़ते कहर के बीच कई हलकों से आवाज उठ रही है कि हरिद्वार में चल रहे कुंभ को बीच में ही खत्म कर दिया जाए. इन आवाजों ने तब और जोर पकड़ा जब कुंभ में आए संत ही बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव निकलने लगे. यहां तक कि दो अखाड़े के महामंडलेश्वरों की इसके चलते मौत भी हो गई. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बचे ही कुंभ को सांकेतिक रखने की अपील संतों से की है. कुछ अखाड़ों ने अपनी ओर से कुंभ समाप्ति की घोषणा भी कर दी है. लेकिन इन सबके उलट उत्तराखंड की तीरथ सिंह रावत सरकार कुंभ को 30 अप्रैल तक चलाने पर अड़ी है. सरकार के इस ‘तीरथ हठ’ की वजह धार्मिक से ज्यादा राजनीतिक ज्यादा मानी जा रही है.
हरिद्वार में हो रहे कुंभ में 4 शाही स्नान और 11 अन्य स्नान होने थे. अभी तक 3 शाही स्नान हो चुके हैं. अंतिम शाही स्नान 27 अप्रैल बैसाख पूर्णिमा के दिन है. कुंभ में कोरोना को लेकर आशंकाएं पहले दिन से थीं. इसीलिए इस बार ये आयोजन एक महीना पहले यानी 30 अप्रैल को ही खत्म करना है. लेकिन जिस समय ये अवधि घटाई गई उस समय तक देश में कोरोना की दूसरी लहर का विस्फोट नहीं हुआ था. अब जबकि हर तरफ इसे लेकर त्राहि त्राहि है तो सवाल उठ रहे हैं कि क्यों न इस आयोजन को और पहले समाप्त कर दिया जाए?
जिस समय यूपी, दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों में कोरोना के आंकड़े भयावह तरीके से बढ़ रहे हैं तब 12, 13 और 14 अप्रैल को कुंभ में 50 लाख से ज्यादा लोगों ने स्नान किया. इसके बाद कई साधु-संत और आम लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए. हरिद्वार में सैकड़ों की संख्या में लोग कोरोना पॉजिटिव पाए जा रहे हैं. खुद अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महाराज नरेंद्र गिरी कोरोना संक्रमित हो गए, जिसके बाद उन्हें ऋषिकेश के एम्स हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा.
ये हाल तब है जब बड़ी संख्या में कोरोना के सैंपल कलेक्ट तो हुए लेकिन रिपोर्ट का इंतजार अब भी किया जा रहा है. कई राज्यों ने हरिद्वार कुंभ से लौटे लोगों के लिए 14 दिन का होम क्वारंटीन अनिवार्य कर दिया है. सोशल मीडिया पर लोग कुंभ की तुलना पिछले साल मार्च के आखिर में सामने आए दिल्ली के तबलीगी जमात के मामले से करने लगे हैं जिसे उस समय कोरोना विस्फोट का बड़ा कारण माना गया था.
मामले की गंभीरता को देखते हुए कुंभ मेले में शामिल दो अखाड़ों ने कुंभ समापन का ऐलान कर दिया. आनंद अखाड़ा और निरंजनी अखाड़ा ने कहा कि 17 अप्रैल को उनके लिए कुंभ की समाप्ति होगी. हालांकि राज्य की तीरथ सिंह रावत सरकार इसे लेकर अड़ी रही. खुद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह ने तर्क दिया है कि मां गंगा की कृपा से कुंभ में कोरोना नहीं फैलेगा. कुंभ खुले में हो रहा है, इसलिए मरकज से इसकी तुलना नहीं हो सकती और यहां कोरोना फैलने का डर निराधार है.
राज्य सरकार को कुछ न करते देख खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले में हस्तक्षेप किया. 17 अप्रैल को उन्होंने ट्वीट कर लिखा- 'आचार्य महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी से आज फोन पर बात की. सभी संतों के स्वास्थ्य का हाल जाना. सभी संतगण प्रशासन को हर प्रकार का सहयोग कर रहे हैं. मैंने इसके लिए संत जगत का आभार व्यक्त किया. मैंने प्रार्थना की है कि दो शाही स्नान हो चुके हैं और अब कुंभ को कोरोना के संकट के चलते प्रतीकात्मक ही रखा जाए. इससे इस संकट से लड़ाई को एक ताकत मिलेगी.'
पीएम की इस अपील का असर भी हुआ. जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरि ने कहा कि कोविड के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए संन्यासी अखाड़ों के संत अब प्रतीकात्मक स्नान ही करेंगे. हालांकि उत्तराखंड सरकार इस अपील से भी बेपरवाह है. उत्तराखंड सरकार के ही कद्दावर मंत्री सतपाल महाराज ने ये साफ कर दिया कि कुछ भी हो पर कुंभ पूरा होकर रहेगा.
सतपाल महाराज ने आजतक से कहा कि 24 और 25 अप्रैल को सभी देवडोलियों (देवताओं को) को कुंभ में हर की पैड़ी पर स्नान करवाया जाएगा. इसके लिए बाकायदा सरकार उन्हें लॉक डाउन में स्नान करने व करवाने के लिए विशेष छूट भी दे रही है. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और मुख्यमंत्री सचिव ओम प्रकाश ने इसके लिए आदेश दे दिए हैं.
गौरतलब है कि कुंभ को पूरे कोरोना प्रोटोकॉल के तहत मनाने की तैयारी उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बनाई थी. उन्हीं के नेतृत्व में कुंभ की अवधि घटाई गई और यहां स्नान करने आने वालों के लिए कोरोना निगेटिव रिपोर्ट अनिवार्य कर दी गई. लेकिन त्रिवेंद्र को हटाकर जब बीजेपी ने तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया तो उन्होंने त्रिवेंद्र के फैसले पलटने शुरू कर दिए. शुरुआत कुंभ से ही हुई. मुख्यमंत्री बनने के बाद तीरथ का सबसे पहला ऐलान ही यही था कि कुंभ की भव्यता में कोई कमी नहीं आने दी जाएगी. उन्होंने कोरोना निगेटिव रिपोर्ट की शर्त को भी हटा दिया और ऐलान कर दिया था कि दुनियाभर के लोग कुंभ में बिना किसी प्रतिबंध के स्नान करने आ सकते हैं. हालांकि हाईकोर्ट ने इसे लेकर सरकार को फटकारा तब जाकर कुंभ में आने वालों की नेगेटिव कोरोना रिपोर्ट अनिवार्य हुई.
दरअसल तीरथ सिंह के पास एक साल से भी कम का समय है. अगले साल मार्च तक राज्य में नई सरकार अस्तित्व में आ जाएगी. यानी तीरथ के पास बमुश्किल 10 महीने हैं खुद कुछ कर दिखाने के लिए. इसीलिए वे एक के बाद एक ऐसे फैसले ले रहे हैं ताकि हिंदुत्व की उनकी राजनीति को धार मिल सके. फिर चाहे वो कुंभ से जुड़े फैसले हों या देवस्थानम बोर्ड से मंदिरों को मुक्त करने के. खुद त्रिवेंद्र रावत अपने फैसले पलटने के तीरथ के रवैये पर नाखुशी जता चुके हैं लेकिन तीरथ अड़े हैं और पीएम की अपील के बावजूद कुंभ को पूरी भव्यता के साथ मनाकर खुद को हिंदुत्व की सियासत करने वाले अग्रिम पंक्ति के नेता साबित करने की हठ पकड़े हुए हैं, भले ही इससे कोरोना के नए विस्फोट की आशंका बन रही हो.