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रेलवे स्टेशनों के बोर्ड पर पहले उर्दू हटाकर संस्कृत में लिखे नाम, अब फैसला वापस!

उत्तराखंड बनने से पहले जब देहरादून उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, तो दूसरी भाषा उर्दू ही थी जिसकी वजह से उर्दू में ही सभी बोर्ड बने हुए थे. मगर नए प्रोजेक्ट के तहत रेलवे ने राज्य सरकार से स्टेशनों के नाम मांगे थे, तो संस्कृत में नाम उपलब्ध कराए गए थे.

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देहरादून स्टेशन का नाम संस्कृत की जगह वापस ऊर्दू में किया
देहरादून स्टेशन का नाम संस्कृत की जगह वापस ऊर्दू में किया

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  • देहरादून रेलवे स्टेशन का नाम 4 भाषाओं में लिखने पर विचार
  • रेलवे मैनुअल के तहत 3 भाषाओं में लिख सकते हैं स्टेशन का नाम

देहरादून रेलवे स्टेशन के पुर्ननिर्माण कार्यों के बाद उत्तराखंड की द्वितीय राज्य भाषा संस्कृत में सूबे के स्टेशनों के नाम लिखने का फैसला लिया गया था. इसके बाद देहरादून रेलवे स्टेशन समेत सूबे के अन्य रेलवे स्टेशनों के नाम संस्कृत भाषा में भी लिखे गए थे. मगर अचानक फिर से देहरादून रेलवे स्टेशन पर लगे बोर्ड पर संस्कृत भाषा में लिखे नाम को हटाकर इसे वापस  उर्दू में लिख दिया गया है.

इससे पहले पिछले 120 वर्षों से स्टेशन का नाम प्लेटफॉर्म के बोर्ड पर हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषा में ही लिखा जा रहा है.हालांकि कुछ हफ्ते पहले रेलवे नियमावली के अनुसार ऊर्दू भाषा की जगह उत्तराखंड की दूसरी भाषा संस्कृत में रेलवे स्टेशन का नाम लिखना तय किया गया था.

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उर्दू को हटाकर संस्कृत में नाम

देहरादून स्टेशन को तीन महीने तक बंद करके निर्माण कार्य चल रहा था. इसी दौरान एक फैसला रेलवे की तरफ से आया कि तीन भाषाओं यानी हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत में रेलवे स्टेशन का नाम लिखा जाएगा. साथ ही ऊर्दू भाषा में लिखे स्टेशन के नाम को मिटा दिया जाएगा. इसके बाद संस्कृत भाषा में स्टेशन का नाम लिख दिया गया और उर्दू को हटा दिया गया.

वापस संस्कृत में लिखा नाम

मगर निर्माण कार्य के बाद जैसे ही देहरादून स्टेशन को आम जनता के लिए खोला गया, तो एक बार फिर से साइन बोर्ड पर संस्कृत की जगह तीसरी भाषा के तौर पर उर्दू में स्टेशन का नाम लिखा मिला. जब इस मामले में आजतक ने देहरादून के रेलवे निदेशक गणेश चंद ठाकुर से बात की, तो उन्होंने साफ किया कि रेलवे के वर्क मैन्युअल के अनुसार तीन भाषा में ही नाम लिखा जाता है. रेलवे अधिकारी के मुताबिक, फिलहाल उर्दू भाषा को हटाया नहीं जा सकता.

विधायक ने भी की उर्दू में लिखे नाम हटाने की मांग

उत्तराखंड बनने से पहले जब देहरादून उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, तो दूसरी भाषा उर्दू ही थी, जिसकी वजह से उर्दू में ही सभी बोर्ड बने हुए थे. मगर नए प्रोजेक्ट के तहत रेलवे ने राज्य सरकार से स्टेशनों के नाम मांगे थे, तो उन्होंने संस्कृत में नाम उपलब्ध कराए गए थे. देहरादून स्टेशन के निदेशक ने यह भी साफ किया कि क्षेत्र के विधायक संजय गुप्ता ने यह मुद्दा उठाया था कि जो बाकी रेलवे स्टेशन हैं, उनके नाम भी उर्दू की बजाय संस्कृत में लिखे जाएं.

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चार भाषाओं में होगा साइन बोर्ड?

इसके अलावा कुछ अटकलें चल रही हैं कि उर्दू को जानबूझकर हटाया जा रहा है. इसके बाद से मामले में विचार-विमर्श चल रहा है. ऐसे में हो सकता है कि अब रेलवे स्टेशन का नाम तीन की बजाय 4 भाषाओं में लिख दिए जाएं. हालांकि ऐसा करने की अभी तक कोई परमिशन नहीं मिली है. इसके अलावा नॉर्दन रेलवे ने भी साइन बोर्ड से उर्दू हटाने के लिए मना कर दिया है.

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वहीं, इस मामले को लेकर तमाम हिंदू संगठन लामबंद हो गए हैं, जो साफतौर पर इस बात को लेकर अड़े हुए हैं कि रेलवे स्टेशनों के साइन बोर्ड से उर्दू हटाकर दोबारा से संस्कृत भाषा में नाम लिखा जाए.

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