उत्तराखंड के तपोवन में एनटीपीसी की टनल में फंसे 35 लोगों को बचाने के लिए दिन और रात युद्ध स्तर पर काम चल रहा है. अपनी गौरवशाली सैन्य परंपरा को निभाते हुए जोशीमठ में सेना की आईबेक्स बिग्रेड के तहत गढ़वाल स्काउट के जवान 7 फ़रवरी को सुबह 11 बजे सबसे पहले तपोवन में एनटीपीसी की टनल पर पहुंचे.
गढ़वाल स्काउट के कमांडिंग आफिसर कर्नल डी एस नेगी के नेतृत्व में 60 जवानों की टीम टनल के पास पहुंची. टनल के बाहर 15 मीटर तक मलबा जमा था. ऐसे में पहाड़ के ऊपर से रस्सी के सहारे ये जवान नीचे रेंगकर नीचे उतरे. उसके बाद राहत और बचाव का काम शुरू हुआ.
मेजर अभिनव अवस्थी ने आजतक से Exclusive बातचीत में बताया कि 7 तारीख सुबह 10.30 बजे हमने रेस्पॉन्ड किया. जितना जल्दी हो सके हम यहां पर पहुंचे, यहां पर मलबा बहुत ज्यादा था और विजिबिलिटी बिल्कुल भी नहीं थी. हमने टनल का मुहाना देखा और पूरी कोशिश की कि अंदर कहां तक जाया जा सकते हैं. शुरुआत में बिल्कुल भी कुछ पता नहीं चल रहा था कि कैसे क्या करना है, रास्ता नहीं था, कुछ भी विजिबल नहीं था. ऐसे में हमें रस्सी के सहारे नीचे आना था, जिससे कि हम अंदर जा सके और यही एक रास्ता दिख रहा था, जिससे कि हम अंदर आ पाए.
जवानों ने बातचीत में बताया कि अंदर काफी मलबा पड़ा हुआ था और हमारी कोशिश है कि जब तक हम अंदर लोगों तक जा सके, तब तक हमारी कोशिश जारी रहेगी. माउंटेन इलाके में क्लाइंबिंग करके हम लोग काम करते हैं, बहुत ही मुश्किल हालात होते हैं जिसमें कि हम लोग काम कर रहे होते हैं. गढ़वाल स्काउट के जवानों ने तबाही के बीच लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. बात चाहे देश सेवा की हो या मानव सेवा की गढ़वाल स्काउट के जवान के जांबाज सिपाही हमेशा अपना फर्ज ईमानदारी से निभाते रहे हैं.
गढ़वाल स्काउट ये जवान प्राकृतिक आपदाओं और विषम परिस्थितियों को अच्छी तरह जानते समझते हैं. यही वजह है कि चाहे बाढ़ राहत कार्य हों या फिर भूस्खलन-हिमस्खलन से उपजे गंभीर हालात गढ़वाल स्काउट के जवान हर मुश्किल में खुद को साबित करते रहे हैं. पहाड़ के लोग इन्हें देवदूत कहते हैं और ये बात काफी हद तक सही भी है. मौत के मुंह में जाकर लोगों की जान बचाने का साहस केवल एक सैनिक ही कर सकता है.