उत्तराखंड के हल्द्वानी में पचास हजार लोगों के सिर से छत उजड़ने का खतरा पैदा हो गया है. करीब 100 साल से हल्द्वानी में सरकारी जमीन पर रह रहे लोगों को रेलवे ने जमीन खाली करने को कहा है. उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश पर सरकार ने जमीन खाली कराने के लिए एक हफ्ते का नोटिस दिया है, जिसकी मियाद 8 तारीख को खत्म हो रही है. सरकार अतिक्रमण हटाने को तैयार है और लोग अपना घर बचाने को.
हल्द्वानी में हजारों लोग सड़कों पर हैं. बच्चे-बुजुर्ग-महिलाएं सब अपने आशियाने बचाने के लिए सड़क पर उतरे हैं. हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर बसी बनभूलपुरा और गफूर बस्ती के हजारों लोग आज सड़कों पर यही दुआ कर रहे हैं कि कोई दुआ कबूल हो जाए...कोई इबादत कबूल हो जाए... बस... बरसों की बसाई बस्ती मत उजड़े.
इन लोगों का कहना है कि वो आजादी के पहले से इस जमीन पर रहते आ रहे हैं, बिजली, पानी का टैक्स चुकाते आ रहे हैं. इसी जमीन के दायरे में सरकारी स्कूल, अस्पताल से लेकर कॉलेज तक चल रहे हैं, क्योंकि राज्य सरकार इसे अपनी जमीन बताती रही है, लेकिन जब अवैध खनन का विवाद अदालत तक पहुंचा तो इस जमीन पर रेलवे ने दावा कर दिया है.
दरअसल विवाद ये है कि रेलवे ने अपनी जमीन बताते हुए 82.9 किमी से 80.17 किलोमीटर के बीच की जमीन खाली करा रहा है. रेलवे इस पूरी जमीन पर अपना दावा करता है, क्योंकि हाईकोर्ट ने गौला नदी पर अवैध खनन के मामले में सुनवाई करते हुए अवैध निर्माण हटाने का आदेश दिया था. रेलवे दावा करती है कि सभी पक्षों की फिर दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर 2022 को अतिक्रमणकारियों को हटाने का निर्देश दिया.
रेलवे दावा करता है कि उसके पास पुराने नक्शे हैं. 1959 का नोटिफिकेशन है. 1971 का रेवेन्यू रिक़ॉर्ड है. 2017 की सर्वे रिपोर्ट है, लेकिन लोगों का कहना है कि हाईकोर्ट में 29 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण का मसला था लेकिन अब रेलवे 78 एकड़ से अधिक की सारी जमीन पर अपना दावा कर रही है.
प्रदर्शन कर रहे लोगों की मांग है कि राज्य सरकार को नजूल की जमीन के हिसाब से उनकी रिहाइश को मंजूरी देनी चाहिए, न कि रेलवे की जमीन बताकर उनके सौ साल पुराने रिहाइश को उजाड़ देना चाहिए.
(रिपोर्ट- आज तक ब्यूरो)