उत्तराखंड के हल्द्वानी में बनभूलपुरा में अवैध रूप से बनाए गए मदरसे और धार्मिक स्थल को तोड़ने के दौरान भारी बवाल मचा था जिसके बाद इलाके में हिंसा भी हुई थी. हल्द्वानी हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 100 से ज्यादा गाड़ियों को उपद्रवियों ने फूंक दिया था. इसके बाद प्रशासन ने सख्ती करते हुए पूरे इलाके में कर्फ्यू लगा दिया था. रविवार को जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के एक प्रतिनिधिमंडल ने हल्द्वानी के एसडीएम से मुलाकात कर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ अनावश्यक कार्रवाई न करने की मांग रखी. प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि हम यहां प्रशासन से अनुरोध करने आए हैं कि अल्पसंख्यकों के बीच भय के माहौल को खत्म किया जाए. डर के कारण लोग हल्द्वानी से पलायन कर रहे हैं.
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जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के एक प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि मस्जिद गिराने का फैसला जल्दबाजी में लिया गया, कोर्ट ने मस्जिद गिराने का आदेश नहीं दिया था. प्रशासन को हाईकोर्ट की सुनवाई तक इंतजार करना चाहिए था. जो हिंसा हुई है हम उसकी निंदा करते हैं. प्रशासन ढांचे का चरित्र (अगर वह मस्जिद या मदरसा था) तय नहीं कर सकता. यह अदालत को तय करना है. प्रशासन ने हमें अपनी धार्मिक किताबें बाहर निकालने की इजाजत नहीं दी.' हम शांति की अपील करते हैं.
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बता दें कि गुरुवार को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र बनभूलपुरा में नगर निगम और पुलिस प्रशासन की टीम जब अवैध मदरसा और धार्मिक स्थल को तोड़ने पहुंची थी तो उन्हें गुस्साई भीड़ का सामना करना पड़ा था. उपद्रवियों ने पुलिसकर्मी और नगर निगम के कर्मचारियों पर जमकर पथराव किया और आगजनी शुरू कर दी थी.
इस हिंसा में 100 से ज्यादा पुलिसकर्मियों के घायल होने के बाद सीएम धामी ने आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे. गुरुवार की शाम करीब साढ़े चार बजे शुरू हुई ये हिंसा पूरे इलाके में फैल गई. गुस्साए लोगों ने थाने के बाहर खड़े पुलिस और मीडिया कर्मियों के दर्जनों वाहनों को आग के हवाले कर दिया था.
शुरुआती जांच के बाद सामने आया है कि कार्रवाई करने पहुंची पुलिस प्रशासन की टीम ने इसकी आधी-अधूरी तैयारी की थी जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ा. बीते दिनों इस क्षेत्र में कार्रवाई को लेकर तनाव फैल गया था जिसे प्रशासन ने गंभीरता से नहीं लिया था. चार दिनों पहले फैले तनाव के बाद भी अतिक्रमण हटाने के लिए क्षेत्र में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम नहीं किए गए.