उत्तराखंड में आई भीषण तबाही के बाद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा से इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता पीयूष बबेले ने राज्य के हालात पर खास बातचीत की.
आखिर केदारनाथ में बचाव कार्य शुरू करने में देरी क्यों हुई?
यह सही है कि 16 और 17 को केदारनाथ और बाकी राज्य में तबाही हुई. लेकिन यह कहना गलत है कि बचाव कार्य में देरी हुई. यह आपदा 37,000 वर्ग किमी के इलाके में आई है. इतनी बड़ी आपदा पर रिस्पॉन्स करने में टाइम लगता है. ईविन हरी टेक टाइम.(जल्दबाजी में भी वक्त लगता है.) हमने बीआरओ, फौज, आइटीबीपी से बात की और जितनी जल्दी हो सका ऑपरेशन शुरू करा दिया.
राज्य जब इतने गहरे संकट में था तो आप प्रधानमंत्री से मिलने चले गए. उस समय राज्य में आपकी जरूरत थी?
शाम को छह बजे मैं दिल्ली गया और लौट आया. मुख्यमंत्री के एक घंटे के लिए दिल्ली जाने से बचाव कार्य पर कोई असर नहीं पड़ता. मेरे जाने से कोई व्यवस्था रुक नहीं गई. बचाव कार्य चलता रहा. प्रधानमंत्री से मेरी मुलाकात से यह फायदा हुआ कि राज्य को केंद्र से जितनी सहायता मिलना तय हुई थी उससे ज्यादा सहायता मिली. इस तरह के सवाल उठाना बेमानी है.
प्रधानमंत्री से आपकी मुलाकात से सहायता राशि कितनी बढ़ी.
ये कॉनफिडेंशियल बात मेरे और पीएम के बीच की है. यह मैं आपसे शेयर नहीं कर सकता.
जो गांव कटे हैं, वहां राशन कैसे भेजेंगे?
जिला प्रशासन को सख्त हिदायत है. चाहे हेलीकॉप्टर से जाएं, चाहे खच्चर से जाएं या जैसे भी ले जाएं, ये राशन वहां पहुंचना है.
तीन दिन तक रुद्रप्रयाग में कोई डीएम ही नहीं था?
ये कहना गलत है. मैंने वहां सीनियर आइएएस और हरिद्वार के डीएम रह चुके सचिन जावरकर को भेजा. यही नहीं उनकी सहायता के लिए एक और सीनियर आइएएस को भेजा. आपदा से प्रभावित प्रमुख चार जिलों में दो-दो सीनियर आइएएस लगा दिए. यानी एक जिले में डीएम रैंक के तीन अफसर मैंने तैनात किए.
विधानसभा अध्यक्ष 10,000 लोगों की मौत की आशंका जता चुके हैं. मंत्री ने 5,000 से ऊपर बताया. क्या सरकार और पार्टी के भीतर तालमेल की कमी है?
दरअसल, मेरे अलावा किसी के पास पूरी सूचना नहीं है. कांग्रेस के साथी अपना-अपना अंदाज लगा रहे हैं. जब उनके पास सूचना नहीं है तो उचित होगा वे मुझसे बात करें और उसी के बाद कुछ कहें.
मौसम विभाग ने जब अक्तूबर, 2012 में ही केदारनाथ में इस तरह की आपदा की आशंका वाली विस्तृत रिपोर्ट दी थी, उस पर आपकी सरकार क्यों सोती रही?
रिपोर्ट तो 2010 में भी दी गई. 2012 में भी दी गई. कोई नहीं जानता की आपदा कब और किस तरह आएगी. केदारनाथ के ऊपर कुछ मीटर की झील हुआ करती थी वह अचानक 27 मीटर की हो गई. आपदा बताकर नहीं आती.
कुछ महीने पहले नैनीताल हाइकोर्ट के फैसले का पालन क्यों नहीं किया?
हम बसे बसाए शहरों को नहीं उजाड़ सकते. हरिद्वार और ऋषिकेश पूरा नदी के किनारे बसा है तो क्या हम सारे मकान गिरा दें. अगर ऐसा करेंगे तो कानून व्यवस्था की कितनी बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाएगी. इसका अंदाजा है आपको. नैनीताल हाई कोर्ट का फैसला गलत है. हमें पर्यावरण, विकास और इंसान तीनों के बारे में सोचना होगा.
लेकिन नदी ने जो तबाही मचाई उससे भी तो विनाश हुआ.
बाढ़ का बड़ा कारण यह है कि नदियों में खनन की इजाजत नहीं दी जा रही. नदियों में लगातार चट्टानें और पत्थर गिर रहे हैं. इससे नदी का तल ऊपर उठता जा रहा है. इसी के चलते नदी में बाढ़ आती है. उत्तरकाशी की आपदा का यह बहुत बड़ा कारण है. पर्यावरण मंत्रालय और अदालतों को इस बारे में सोचना चाहिए. नदियों में सलेक्टेड खनन की इजाजत देना जरूरी है. हमने सरकार से मांग की है कि नदी के किनारों पर दीवार बनाई जाए, इसके लिए हजारों करोड़ रुपये चाहिए. हरीश रावत तो केंद्र में बाढ़ राहत के कैबिनेट मंत्री हैं. हरीश रावत विशेष बाढ़ राहत पैकेज दिलाएं.
राहुल गांधी का हेलीकॉप्टर उतर गया लेकिन मोदी को इजाजत क्यों नहीं दी?
आप ये बताइए कि क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यहां उतरे थे? बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी नहीं उतरे. गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी हवाई दौरा किया. तब तक राहत कार्य का नेतृत्व करने के कारण सिर्फ मेरा हेलीकॉप्टर उतर रहा था. उस समय हेलिपेड बन रहे थे और लोगों को निकालना प्राथमिकता थी. मोदी को मना नहीं किया, सिर्फ ये कहा था कि उस दिन आप नहीं उतर सकते. मोदी बाद में आ जाते. राहुल जी जब आए तब तक यह काम हो चुका था. इसमें हर्ज क्या है.