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उत्तरकाशी की सुरंग में 4 दिन से फंसी 40 जिंदगियां, दिल्ली मेट्रो, नॉर्वे और थाईलैंड के एक्सपर्ट से मांगी जा रही मदद

उत्तराखंड टनल हादसे में बुधवार को चौथे दिन राहत और बचाव का कार्य चल रहा है. लेकिन, सुरंग में फंसे 40 मजदूरों तक पहुंचने के प्रयास फिलहाल परवान नहीं चढ़ सके हैं. इस बीच, खबर है कि रेस्क्यू ऑपरेशन की कमान संभाल रहे अफसरों ने अब विशेषज्ञों की सलाह ली है.

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उत्तर काशी टनल हादसे को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी जानकारी ली है. (फाइल फोटो)
उत्तर काशी टनल हादसे को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी जानकारी ली है. (फाइल फोटो)

उत्तराखंड टनल हादसे में बुधवार को चौथे दिन राहत और बचाव का कार्य चल रहा है. लेकिन, सुरंग में फंसे 40 मजदूरों तक पहुंचने के प्रयास फिलहाल परवान नहीं चढ़ सके हैं. इस बीच, खबर है कि रेस्क्यू ऑपरेशन की कमान संभाल रहे अफसरों ने अब विशेषज्ञों की सलाह ली है. अब तक दिल्ली मेट्रो, नॉर्वे और थाईलैंड के एक्सपर्ट से बातचीत की गई और मदद मांगी गई है.

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बचाव दल इस समय थाईलैंड और नॉर्वे के अंतरराष्ट्रीय संगठनों के संपर्क में हैं. उनसे टनल से रेक्स्यू करने के बारे में अनुभव की जानकारी ली जा रही है. टीम ने नॉर्वे में एनजीआई और थाईलैंड में यूटिलिटी टनलिंग से बात की है. साथ ही दिल्ली मेट्रो रेलवे के विशेषज्ञों से भी राय ली जा रही है.

मजदूरों के परिवारों ने किया हंगामा

इतना ही नहीं, पहले अफसरों ने बुधवार को ऑपरेशन पूरा होने का दावा किया था. लेकिन, अब रेस्क्यू में परेशानी आने से समय बताने से बच रहे हैं. एनएचआईडीसीएल के अधिकारी ने ऑपरेशन में दिक्कतें बताईं हैं और कहा, ऑपरेशन पूरा करने की कोई समय सीमा नहीं बता सकते हैं. वहीं, सुरंग के बाहर इस परियोजना के लिए काम कर रहे मजदूरों ने काफी हंगामा किया. ये लोग सुरंग के भीतर घुसने की कोशिश कर रहे थे. पुलिस और सुरक्षा बलों ने रोकने की कोशिश की. मजदूरों का आरोप है कि रेस्क्यू ऑपरेशन बेहद ही धीमी रफ्तार से चल रहा है. चार दिन बाद भी कामयाबी नहीं मिल पाई है. कई मजदूरों के भाई और परिवार के लोग अंदर फंसे हुए हैं.

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'50 मीटर मलबा पार करने की कवायद'

जानकारों का कहना है कि आधुनिक मशीन ना होने के चलते उत्तरकाशी सुरंग में चल रहे बचाव कार्य में देरी हो रही है. बीती रात मशीन के पुर्जे खराब होने के चलते ऑपरेशन धीमा हुआ था. 25 टन की मशीन बुधवार को एयर फोर्स के विशेष विमान एयरलिफ्ट करके उत्तरकाशी पहुंचाएंगे. इस मशीन के जरिए प्रति घंटे में 5 मीटर पाइप अंदर जाना संभव होगा. करीब 50 मीटर मलबा पार करने के बाद मजदूर तक पहुंचा जा सकेगा. मशीन चालू होने के 10 से 12 घंटे बाद ही ऑपरेशन पूरा संभव हो सकेगा. उत्तरकाशी के रनवे से सुरंग तक मशीन को लाने में समय लगेगा और असेंबलिंग में भी 4 से 5 घंटे लगेंगे.

25 टन की मशीन को एयरलिफ्ट कराया जा रहा

रेस्क्यू ऑपरेशन में काम कर रही एजेंसी के डायरेक्टर का भी कहना है कि ऑपरेशन पूरा होने के लिए समय-सीमा फिलहाल नहीं दी जा सकती है. आधुनिक मशीनों के अभाव में रेस्क्यू ऑपरेशन धीमा हुआ है. यह समय-सीमा बताना अभी मुश्किल है कि उन्हें कब तक निकाला जा सकेगा. हमारे पास बैकअप पहले से ही तैयार था. राज्य सरकार हमें मदद कर रही है, लेकिन दूसरी स्टेट ऑफ आर्ट मशीन है- वो यहां नहीं थी और ये बहुत भारी मशीन है. सिलक्यारा टनल में राहत और बचाव के लिए हैवी ऑगर ड्रिलिंग मशीन चिन्यालीसौड़ हेलीपैड पहुंच गई है. मशीनों को जोड़ा जा रहा है. शीघ्र ही ड्रिलिंग का कार्य शुरू हो जाएगा. सभी श्रमिकों को सुरक्षित रेस्क्यू करने की कवायद तेजी से चल रही है.

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'कमजोर पत्थर की वजह से ऑपरेशन में देरी'

उन्होंने कहा, हमारे तीसरे प्लान पर काम चल रहा है. उसके बाद हमारे पास चौथा प्लान भी है. सभी कदम उठाए जा रहे हैं. हम कोशिश कर रहे हैं कि जल्द से जल्द उन्हें बाहर निकाला जा सके.पिछले तीन दिनों से हम चिंतित हैं और लगातार कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें कैसे बाहर निकाला जाए. यहां के पत्थर की प्रकृति है. वो बेहद कमजोर है और हम जितना मलबा निकालते हैं, उतना फिर गिर जाता है. हम कोशिश कर रहे हैं कि हर तरीके की तकनीक का इस्तेमाल किया जाए. हमने आधुनिक मशीन दिल्ली से एयरलिफ्ट करके मंगाई है. यहां आते ही कुछ घंटे में उसे असेंबल कर लिया जाएगा. इंडियन एयर फोर्स के तीन एयरक्राफ्ट से सामग्री हमें मिलेगी. हमारा काम शुरू हो चुका है.

'मजदूरों से बातचीत हो रही है'

उन्होंने कहा, 800 मिलीमीटर की पाइप के जरिए हम अंदर जाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें कुछ रुकावट आ रही है. उन मशीनों के आने के 3 से 4 घंटे के बाद हम अपना ऑपरेशन इंस्टॉल करके काम शुरू कर पाएंगे तब तक धैर्य रखने की जरूरत है. पहले दिन 21 मीटर मलबे के अंदर गए थे. हम जितना अंदर जाते हैं उसे छेड़ते हैं- वो मलबा कमजोर है और उतना ही फिर से आ जाता है. ऐसे में कितना मलबा निकला है- यह नहीं कह सकते. हम स्टील पाइप के जरिए अंदर जाने की कोशिश कर रहे हैं और हम दो से तीन मीटर अंदर हैं. लेकिन जब यह मशीन आ जाएगी तब रेट ऑफ पेनिट्रेशन ज्यादा से ज्यादा 5 मीटर तक अंदर जा पाएंगे. अगर हमें 50 मीटर अंदर जाना है तो 10 से 12 घंटे में हम अंदर जा पाएंगे. हमें नहीं पता हे कि अंदर हमारी कौन सी मशीन या राड फंसी हुई है. उन सब को देखने के बाद कोशिश करेंगे. जल्द से जल्द अंदर घुस पाएंगे. मजदूरों से हमारी लगातार बातचीत हो रही है. एक पाइप से खाना और ऑक्सीजन उन तक भेजी जा रही है.

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'काम करते समय गिरने लगता है मलबा'

ऑपरेशन की कमान संभाले डायरेक्टर का कहना है कि अंदर फंसे मजदूरों से लगातार बातचीत कर रहे हैं. ना सिर्फ उनके गांव वालों से बात करवा रहे हैं, बल्कि मैं खुद झारखंड का हूं तो हम उनसे बात कर रहे हैं. अलग-अलग राज्यों के लोगों से बातचीत की जा रही है. हम हर मजदूर को यहां शामिल नहीं कर सकते. क्योंकि अंदर जगह ज्यादा नहीं है. वहां भीड़भाड़ होगी. कल काम करते समय एक तरफ से सारा मलबा नीचे गिरने लगा और ऐसे में चोट लग सकती थी. हम चाहते हैं सिर्फ काम करने वाले अंदर आए हम चाहते हैं. मदद हम सब करें लेकिन सीमित जगह में सीमित लोग ही आ सकते हैं.
 

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