उत्तराखंड में जोशीमठ में भू-धंसाव की खबरें पिछले एक हफ्ते से सुर्खियां बटोर रही हैं. बद्रीनाथ धाम के रास्ते में पड़ने वाले इस पवित्र शहर में 678 इमारतों को असुरक्षित घोषित किया है और 82 परिवारों को अस्थायी रूप से सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया गया है. कई एक्सपर्ट्स ने जोशीमठ पर पुरानी रिपोर्टों का हवाला दिया है, जो अब सटीक साबित होती दिख रही हैं. स्थानीय लोगों में नाराजगी देखने को मिल रही है और वे घरों और होटलों की बढ़ती संख्या और तपोवन विष्णुगढ़ NTPC पन बिजली परियोजना समेत मानव निर्मित फैक्टर्स को दोषी ठहरा रहे हैं.
लेकिन जोशीमठ अकेला नहीं है. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में इसी तरह की और भी आपदाएं आ रही हैं. पौड़ी, बागेश्वर, उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल और रुद्रप्रयाग का भी यही हश्र हो सकता है. इन जिलों के स्थानीय लोगों को जोशीमठ जैसे हालात का डर है.
टिहरी गढ़वाल: अटाली गांव में ब्लास्टिंग से हिलने लगते हैं घर
टिहरी जिले के नरेंद्रनगर विधानसभा क्षेत्र के अटाली गांव से होकर गुजरने वाली ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन ने स्थानीय लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अटाली के एक छोर पर भारी लैंडस्लाइड के कारण दर्जनों मकानों में दरारें आ गई हैं. गांव के दूसरे छोर पर सुरंग में चल रहे ब्लास्टिंग के कारण घरों में भी भारी दरारें आ गई हैं.
अटाली निवासी हरीश सिंह का कहना है कि टनल में जब दिन और रात में ब्लास्टिंग होती है तो उनका घर हिलने लगता है. प्रभावित परिवारों में से कुछ अपने बच्चों के साथ रात के अंधेरे में बाहर निकलने को विवश हैं. अपर जिलाधिकारी टिहरी और एसडीएम नरेंद्रनगर ने भी सभी प्रभावित परिवारों के साथ बैठक की. ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन हर छह माह में बैठक करता है लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है.
ग्रामीण अब अटाली गांव से अपने पुनर्वास की मांग कर रहे हैं. अटाली के अलावा गूलर, व्यासी, कौडियाला और मलेथा गांव भी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन परियोजना से प्रभावित हैं.
पौड़ी: घरों में दिखाई देने लगी हैं दरारें
स्थानीय लोगों का कहना है कि चल रहे रेलवे प्रोजेक्ट की वजह से उनके घरों में दरारें आ गई हैं. ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के सुरंग निर्माण कार्य से श्रीनगर के हेदल मोहल्ला, आशीष विहार और नर्सरी रोड समेत अन्य घरों में दरारें दिखाई देने लगी हैं. हेदल मोहल्ला निवासी शांता देवी चौधरी का कहना है कि लोग डर के साये में रह रहे हैं.
आशीष विहार निवासी पीएल आर्य ने कहा कि रेलवे द्वारा दिन-रात ब्लास्टिंग की जाती है, जिससे कंपन होता है, उसी कारण घरों में दरारें दिखाई देने लगी हैं. लोगों ने मांग की है कि सरकार को जल्द फैसला लेना होगा और मैन्युअली काम करना होगा ताकि उनके घरों को नुकसान ना हो.
बागेश्वर: गांव में पानी का रिसाव, लोगों में दहशत
बागेश्वर के कपकोट के खरबगड़ गांव पर खतरा मंडरा रहा है. इस गांव के ठीक ऊपर जलविद्युत परियोजना की सुरंग के ऊपर पहाड़ी में गड्ढे बना दिए गए हैं और जगह-जगह से पानी का रिसाव हो रहा है. इससे ग्रामीणों में दहशत का माहौल है. कपकोट में भी भूस्खलन की खबरें आई हैं. इस गांव में करीब 60 परिवार रहते हैं.
खरबगड़ निवासी हयात सिंह कहते हैं कि टनल से पानी टपकने की समस्या लंबे समय से है, लेकिन सुरंग जैसा गड्ढा कुछ समय पहले से बनना शुरू हो गया है. खरबाद गांव के ऊपर एक सुरंग है और नीचे रेवती नदी बहती है.
उत्तरकाशी: धीरे-धीरे चपेट में आ रहा है पूरा गांव
उत्तरकाशी के मस्तदी और भटवाड़ी गांव खतरे के निशान में हैं. जोशीमठ की घटना से मस्तड़ी के ग्रामीणों में दहशत का माहौल है. यहां 1991 में आए भूकंप की वजह से इमारतों में दरारें आ गई थीं. इस समय पूरा उत्तरकाशी जिला प्राकृतिक आपदा की चपेट में है. जिला मुख्यालय से महज 10 किमी दूर यहां के निवासियों का कहना है कि गांव धीरे-धीरे डूब रहा है. घरों में दरारें अभी से नजर आने लगी हैं. 1991 में आए भूकंप के बाद मस्तदी लैंडस्लाइड की चपेट में आ गया. 1995 और 1996 में घरों के अंदर से पानी निकलने लगा, जो अब भी जारी है. उस समय प्रशासन ने गांव का जियोलॉजिकल सर्वे भी किया था.
जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल का कहना है कि मस्तदी गांव का दोबारा जियोलॉजिकल सर्वे किया जाएगा, उसके बाद ही पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है.
वहीं, भटवाड़ी गांव की भौगोलिक स्थिति जोशीमठ के समान है क्योंकि इसके नीचे भागीरथी नदी बहती है और गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग ठीक ऊपर है. 2010 में भागीरथी में कटाव आने से 49 घर प्रभावित हुए थे. जो इमारतें सुरक्षित थीं, वे अब असुरक्षित हो गई हैं, क्योंकि हर साल दरारें बढ़ती जा रही हैं.
2010 में गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग का एक हिस्सा नदी में डूब गया था और प्रभावित 49 परिवारों को प्रशासन द्वारा अस्थायी रूप से अन्य जगह भेज दिया था. प्रत्येक को 2 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था.
भूवैज्ञानिकों के शुरुआती और विस्तृत सर्वे के बाद प्रशासन ने सरकार को एक रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें 49 परिवारों के स्थायी पुनर्वास की सिफारिश की गई थी, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
यहां कुल 26 गांवों को अति संवेदनशील के रूप में चिन्हित किया गया है. इनमें भटवाडी, अस्तल, उदरी, धनेती, सऊद, कामद, थंडी, सिरी, धारकोट, क्यार्क, बरसू, कुज्जन, पिलांग, जोदव, हुर्री, धसदा, डंडालका, अगुड़ा, भंकोली, सेकु, वीरपुर, बडेठी, कांसी, बड़िया, कफनौल और कोरना का नाम है. हालांकि, सिर्फ 9 गांवों का विस्तृत सर्वेक्षण भूवैज्ञानिकों द्वारा किया गया था.
रुद्रप्रयाग: कई घर धराशायी हुए, कई नष्ट होने के कगार पर
रुद्रप्रयाग का मरोदा गांव ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण का खामियाजा भुगत रहा है. गांव में सुरंग निर्माण के कारण कुछ घर धराशायी हो गए हैं और कई घर नष्ट होने के कगार पर हैं, जिन प्रभावित परिवारों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला है, वे आज भी जर्जर मकानों में रह रहे हैं. अगर जल्द ही ग्रामीणों को यहां से नहीं हटाया गया तो बड़ा हादसा हो सकता है. रेलवे का निर्माण कार्य जोरों पर है. पहाड़ों में भूस्खलन की संभावनाओं को देखते हुए ज्यादातर ट्रैक सुरंगों के जरिए होंगे. सुरंगों के निर्माण के कारण गांव के घरों में मोटी दरारें पड़ गई हैं.
गांव की महिलाएं बेबस नजर आती हैं और सरकार को दोष देती हैं. मरोदा गांव में कभी 35 से 40 परिवार हुआ करते थे, लेकिन अब 15 से 20 परिवार ही बचे हैं. रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मयूर दीक्षित का कहना है कि मरौदा गांव के विस्थापित परिवारों को जल्द मुआवजा दिया जाएगा. फिलहाल उनके लिए टीन शेड बनवाए गए हैं और जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं. हालांकि इन शेड में रहने वाले लोगों का आरोप है कि यहां कोई सुविधा नहीं है.
फिलहाल, प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा को प्राथमिकता दिए जाने की जरूरत है, ताकि जोशीमठ जैसी पुनरावृत्ति ना हो सके. जानकारों का कहना है कि अगर समय से शासन और प्रशासन नहीं चेता तो यहां के परिणाम दर्दनाक हो सकते हैं.