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'आजतक' की खबर का असर... उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बागेश्वर जिले में खड़िया खनन पर लगाई रोक

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बागेश्वर जिले में खड़िया खनन पर 9 जनवरी 2025 तक रोक लगाई है. अवैध खनन से कांडा तहसील के गांवों में दरारें और भू-स्खलन का खतरा बढ़ गया है. कोर्ट ने राज्य स्तरीय टीम और कोर्ट कमिश्नरों को नुकसान की रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया है. अगली सुनवाई 9 जनवरी को होगी.

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फाइल फोटो.
फाइल फोटो.

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में अवैध खनन की समस्या लंबे समय से ग्रामीणों और पर्यावरण के लिए खतरा बनी हुई है. इस गंभीर समस्या पर न्यायालय ने सख्त कदम उठाते हुए पूरे जिले में खड़िया खनन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. न्यायालय का यह निर्णय 14 अगस्त 2024 को आजतक और इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें कांडा तहसील के गांवों में खनन के कारण पहाड़ों और घरों में दरारें पड़ने की बात सामने आई थी.

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रिपोर्ट का संज्ञान लेकर न्यायालय का हस्तक्षेप

आजतक की रिपोर्ट को जनहित याचिका (संख्या 174/2024) में अमिकस क्यूरी अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने प्रस्तुत किया. इसके साथ ही सज्जन लाल आर्य द्वारा दायर जनहित याचिका (संख्या 202/2024) में भी इस मामले को उठाया गया. मामले की सुनवाई उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ में हुई.

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खंडपीठ ने अवैध खनन को गंभीर मुद्दा मानते हुए राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (एसईआईएए) को प्रभावित गांवों का दौरा कर रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया. इसके अलावा मयंक रंजन जोशी और शरंग ढुलिया को न्यायालय के आयुक्त (कोर्ट कमिश्नर) नियुक्त किया गया. उन्हें गांवों का निरीक्षण कर खनन से हुए नुकसान का आकलन करने और समाधान सुझाने के निर्देश दिए गए.

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खनन से हो रहे नुकसान के प्रमाण

कोर्ट कमिश्नर द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में यह पाया गया कि खड़िया खनन न केवल वनभूमि, बल्कि सरकारी भूमि पर भी नियमों के विरुद्ध किया गया. खनन के कारण पहाड़ों पर दरारें आ गई हैं, जिससे भू-स्खलन का खतरा बढ़ गया है. ग्रामीणों ने बताया कि भारी वर्षा के दौरान दरारों में पानी भरने से बड़ी दुर्घटनाएं हो सकती हैं. उनकी कृषि भूमि नष्ट हो चुकी है और कई गांवों के निवासी विस्थापित होने को मजबूर हैं.

ग्रामीणों की गुहार और प्रशासन की उदासीनता

ग्रामीणों का कहना है कि उनकी समस्याओं को स्थानीय प्रशासन और सरकार ने अनदेखा किया है. जिनके पास साधन थे, वे हल्द्वानी जैसे शहरों में पलायन कर गए. लेकिन गरीब ग्रामीण अभी भी खतरनाक हालात में रहने को मजबूर हैं. ग्रामीणों ने न्यायालय से अपील की है कि उन्हें सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित किया जाए और खनन पर स्थायी रोक लगाई जाए.

न्यायालय के निर्देश

न्यायालय ने निदेशक खनन, जिलाधिकारी बागेश्वर, उपजिलाधिकारी बागेश्वर और डीएफओ बागेश्वर को 8 जनवरी 2025 को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने और जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 9 जनवरी 2025 को निर्धारित की गई है. न्यायालय के इस फैसले से अवैध खनन के कारण प्रभावित गांवों के निवासियों को राहत मिलने की उम्मीद है. 

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यह आदेश न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक है. उम्मीद है कि इस निर्णय के बाद प्रशासन खनन माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगा और पर्यावरण को बचाने के लिए ठोस कदम उठाएगा. न्यायालय के इस हस्तक्षेप से पर्यावरण और ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान मिलने की आशा जगी है.

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