सोमवार शाम तक जोशीमठ में नौ व़ॉर्ड के 678 मकानों की पहचान हुई है, जिनमें दरारें हैं. सुरक्षा की नजर से दो होटल को आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत बंद किए गए हैं. 16 जगहों पर अब तक कुल 81 परिवार ही विस्थापित किए जा चुके हैं. जोशीमठ में सरकार का दावा है कि अब तक 19 जगहों पर 213 कमरे में 1191 लोगों के ठहरने की व्यवस्था बनाकर रखी है. लेकिन जोशीमठ की जनता को स्थापित से विस्थापित होने के दर्द के बीच सरकार के दिए भरोसे में भी दरार नजर आती है. एक लापरवाही भी चीख-चीख कर हर सरकार पर सवाल दागती है. विवाद तो सभी को पता है, ताजा अपडेट भी लगातार आ रहे हैं, आज इतहिस के पन्ने पलटने का समय है. 47 साल पहले जाने की जरूरत है जब जोशीमठ चीख रहा था, अपना दर्द बता रहा था. अगर फैसला होता तो ये दरारें लोगों के घर नहीं छीनतीं, ये दरारें जोशीमठ पर खतरा नहीं बनतीं.
याद करिए इतिहास को जब जोशीमठ पर आए खतरे को नजरअंदाज किया गया. सबूत है मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट. जोशीमठ में अलकनंदा नदी में बाढ़ की वजह से घरों में दरारे आने के बाद 1976 में एक कमेटी बनी थी .47 साल पहले तत्कालीन गढ़वाल मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अगुवाई में एक्सपर्ट कमेटी बनाई गई थी. 18 सदस्यों वाली मिश्रा कमेटी ने साढ़े चार दशक पहले जोशीमठ पर मंडराते खतरे को लेकर आगाह किया था. मिश्रा कमेटी ने कहा था कि जोशीमठ की जड़ से जुड़ी मिट्टी और चट्टानों को बिल्कुल ना छेड़ा जाए. आरोप लगता है कि मिश्रा कमेटी समेत कई रिपोर्टर के पन्नों को सरकारी फाइलों में बंद करके धूल खाने दिया गया. अब फिर से नई रिपोर्ट्स आएंगी. नए एक्सपर्ट आएंगे. लेकिन पुरानी को क्यों नहीं सुना गया? ये जवाब नहीं आता. आरोप विकास की योजनाओं पर लगता है, जिन्हें पुरानी चेतावनियों को अनदेखा कर चलाने का दावा है.
अब इस स्थिति पर पूर्व सीएम हरीश रावत कहते हैं कि एनटीसीपीसी की टनल से आपदा बढ़ी है, आपका को कंपाउंड किया है चार धाम वेदर रोड, काटो और भागो नीति के कारण हुआ है., जले पर नमक का काम बाईपास ने किया है. अब जानकारी के लिए बता दें कि सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में एनटीपीसी पावर प्रोजेक्ट के टनल में चलने वाला काम है. सवाल उठता है कि क्या NTPC के प्रोजेक्ट की वजह से जोशीमठ में धंस रही जमीन? एनटीपीसी (NTPC) ने एक बयान में कहा- एनटीपीसी की तरफ से बनाई जा रही सुरंग जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजरती है. ये टनल एक टनल बोरिंग मशीन (TBM) से खोदी गई है और वर्तमान में कोई ब्लास्टिंग नहीं की जा रही है. लेकिन आरोप है कि दिसंबर 2009 से ही टनल बोरिंग मशीन की वजह से कई बार समस्याएं आई हैं.
दावा है कि दिसंबर 2009 में TBM 900 मीटर की गहराई में फंस गया था और इसके कारण हाई प्रेशर बना था और पानी सतह पर आ गया था. बावजूद इसके उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन निदेशक पीयूष रौतेला अभी जोशीमठ के धंसाव का हाइडल टनल से संबंध जोड़ने का सबूत अभी नहीं पाते हैं. लेकिन चारधाम परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त High-powered Committee के सदस्य डॉ. हेमंत ध्यानी के मुताबिक जब दिसंबर 2009 में विद्यत परियोजना की टनल बोरिंग मशीन की वजह से चट्टानों के पानी ने जोशीमठ को प्रभावित किया तो फिर अभी की समस्या से क्यों ना संबंध माना जाए?
अब आपदा से जनता को बचाने के लिए चलने वाली हर संस्था को...जनता के नाम पर सियासत करने वाले हर दल को..सब खतरे का संज्ञान लेने के लिए दौड़ पड़े हैं...अपनी चिंता जता रहे हैं...लेकिन लेकिन आपदा कोई एक दिन में नहीं आई...दरारें कोई पांच, दस दिन में नहीं अचानक पड़ गईं...क्या पहले जागते तो यूं एक शहर ढहते ना देखना पड़ता?