उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने के बाद हजारों घर बर्बादी की कगार पर खड़े हैं और इन घरों में रहने वाले लोग सरकार से अपना आशियाना बचाने की गुहार लगा रहे हैं. इस त्रासदी के बाद राज्य सरकार से लेकर पीएमओ तक एक्टिव हो गया है और लोगों के आशियाने बचाने से लेकर उनकी सुरक्षा को लेकर मंथन किया जा रहा है.
चमोली प्रशासन ने दरार की वजह से खतरनाक हो गए सैकड़ों घरों को खाली करने का निर्देश दिया है और उस पर लाल निशान लगाए जा रहे हैं. अधिकारी लगातार लोगों को ऐसे घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मना रहे हैं.
इन घरों में ना सिर्फ बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं बल्कि उससे पानी निकलने की भी समस्या देखी जा रही है जिससे लोग परेशान हैं. विशेषज्ञ लगातार जमीन के धंसने और उससे पानी निकलने के कारणों को जानने के लिए अध्ययन कर रहे हैं.
वाटर केमिस्ट्री स्टडी से खुलेंगे कई राज
इसी क्रम में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूवैज्ञानिक डॉक्टर मनीष मेहता ने बताया कि पानी की जांच के लिए वाटर केमिस्ट्री स्टडी करनी पड़ेगी. यहां पर जीपीएस मोशन सेंसर लगाने चाहिये जो मूवमेंट को रोकें. उन्होंने कहा कि इससे ध्वनि का पता चलेगा जो बहुत जरूरी है.
उन्होंने कहा कि वाटर केमिस्ट्री से पता चलेगा कि पानी कहां से आ रहा है, क्या यह 2021 का मलबा है या अंदर कोई बड़ी कैविटी है. बता दें कि जोशीमठ को कत्यूरी राजवंश ने 11 वीं और 12वीं सदी में बसाया था. जोशीमठ 2 ड्रेनेज के बीच में बसा हुआ शहर है.
विशेषज्ञों के मुताबिक जोशीमठ loose unconsolidated material पर बना हुआ है. यहां किसी समय ग्लेशियर रहा होगा. जोशीमठ में ऊपर का मलबा धीरे-धीरे नीचे दरक रहा है.
1976 में मिश्रा कमेटी ने दी थी चेतावनी
बता दें कि साल 1976 में जोशीमठ को लेकर मिश्रा रिपोर्ट आई थी. इस कमेटी के दो सदस्यों पांडुकेश्वर के पुरन सिंह मेहता और गोविंद सिंह रावत ने अपनी रिपोर्ट में जोशीमठ को लेकर कई अहम बातें बताई थी.
उनकी रिपोर्ट में कहा गया था कि ऊपर से मलबा नीचे आया है जिस पर जोशमठ बना हुआ है. हर स्लोप या मलबे की लोड बेअरिंग (भार सहन करने की क्षमता) कैपेसिटी होती है. मिश्रा कमेटी ने साफ कहा था की इस इलाके में कोई बड़ा निर्माण नहीं होना चाहिए. उस रिपोर्ट को 1976 के बाद किसी ने गंभीरता से नहीं लिया.
विशेषज्ञ ने कहा कि जब चीजें खराब हो जाती हैं तो आदमी कारण ढूंढता है, बड़ी योजनाओं की वजह से लैंडमास हिल रहा रहा है. डॉक्टर मनीष मेहता के मुताबिक जोशीमठ के नीचे बड़ी कैविटी हो सकती है जिसमें डेवलपमेंट एक्टिविटीज की वजह से मूवमेंट बढ़ गया है.
इससे मलबे के बीच खाली जगह बन गया है जिसकी वजह से पानी बाहर आ सकता है. उन्होंने कहा यह गेलशिअटेड क्षेत्र है जिसकी वजह से यहां चिकनी मिट्टी ज्यादा है.
उन्होंने कहा कि जोशीमठ एक खोखले भूगर्भ पर बसा शहर है जिसकी मिट्टी और मलबा बहुत कमजोर हैं. यह पानी की तरह बह रहा है जिससे मकानों में दरार आ रही है और जमीन धंसने की घटना हो रही है. डॉक्टर मनीष मेहता के मुताबिक जोशीमठ में एक मंज़िल मकान और डेंजर जोन से हटकर विकास कार्य होना चाहिए नहीं तो बड़ी तबाही आएगी.
कर्णप्रयाग में भी घरों में दरार
बता दें कि जोशीमठ में अब तक 603 घरों में दरारें आ चुकी हैं. इनमें 100 से ज्यादा घर ऐसे हैं, जो कभी भी ढह सकते हैं. वहीं प्रशासन यहां से अब तक 65 परिवारों को सुरक्षित जगह भेज चुका है.
बाकी लोगों को भी सुरक्षित जगह पर भेजने के प्रयास किए जा रहे हैं. जोशीमठ के बाद कर्णप्रयाग में भी जमीन दरकने की घटनाएं सामने आने लगी हैं. कर्णप्रयाग नगर पालिका के बहुगुणा नगर में मौजूद करीब 50 घरों में दरार आने लगी हैं.
सीएम धामी ने की थी बड़ी बैठक
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने भी शनिवार को जोशीमठ पहुंचकर जमीनी हकीकत जानी थी. उन्होंने एडिशनल चीफ सेक्रेटरी के नेतृत्व में लोगों के राहत और बचाव कार्य के लिए एक कमेटी गठित करने के निर्देश दिए हैं. इसके लिए चमोली जिले के जिलाधिकारी को 11 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध कराई गई है. इसके अलावा उन्होंने जोशीमठ इलाके के सर्वे कराने के भी निर्देश दिए हैं.