scorecardresearch
 

केदारनाथ त्रासदी का एक साल, दर्द अब भी बाकी है

केदारनाथ त्रासदी को आज एक साल हो गया. इस त्रासदी की पहली बरसी पर वो भयानक यादें फिर ताजा हो गई हैं जिन्होंने पूरे देश को झकझोरकर रख दिया था. त्रासदी बीत गई, तमाम दर्द भरी यादें छोड़ गई.

Advertisement
X
केदारनाथ मंदिर
केदारनाथ मंदिर

केदारनाथ त्रासदी को आज एक साल हो गया. इस त्रासदी की पहली बरसी पर वो भयानक यादें फिर ताजा हो गई हैं जिन्होंने पूरे देश को झकझोरकर रख दिया था. त्रासदी बीत गई, तमाम दर्द भरी यादें छोड़ गई. इन सबके बीच अब एक बार फिर केदारनाथ में व्यवस्था पटरी पर लाने की कोशिश जारी है. त्रासदियों से जीवन ठहर जाता है, लेकिन विराम नहीं लगता. केदारनाथ धाम में जीवन एक बार फिर आस्था के पथ पर बढ़ चला है. मंत्रों से घाटी गूंज रही है. महादेव की नगरी में पसरे सन्नाटे को शांति की तलाश में आए लोग अपने भक्ति गीतों से तोड़ रहे हैं.

Advertisement

तस्वीरें: उत्तराखंड में जल का तांडव, केदारनाथ धाम तबाह

क्या हुआ था 16 जून 2013 की रात को
16 जून 2013 की रात केदारनाथ में घड़ियाल, शंख और श्लोक आखिरी बार गूंजे थे. इसके बाद प्रलंयकर की नगरी में जल प्रलय आ गई. इस जल प्रलय ने केदार घाटी की शक्ल बदल दी. शहर को वीरानी और मौत की चादर ने ढंक लिया. केदारनाथ में सलामत बचा तो बस केदारनाथ मंदिर. ना होटल बचे ना धर्मशाला, ना जिंदगी बची और ना ही कुदरत की खूबसूरती. हजारों लोग जल प्रवाह में समा गए. जलप्रलय की धारा इतनी तेज थी कि पूरे केदारनाथ धाम में उसके बहने के निशान सैकड़ों फीट ऊपर से भी साफ नजर आते थे.

केदरानाथ के पड़ोस में बहने वाली नदी मंदाकिनी की धारा का रुख बदल गया. पूरे उत्तराखंड की नदियां किनारे तोड़कर बहने लगीं. देवभूमि की नदियों के प्रचंड प्रवाह में देव और महादेव भी बह गये. पूरा उत्तराखंड खंड खंड हो गया. पहाड़ सरक गए, सड़कें धसक गईं. हर ओर जल प्रलय का कोलाहल था, नदियों का प्रचंड वेग था, उफनती धाराएं थीं, मौत की चीत्कार थी और हर माथे पर चिंता की लकीरें थीं. पूरे उत्तराखंड की नदियों में मानव की बस्तियां समा गईं लेकिन जो कुदरत को जानते हैं वो कहते हैं कि बरसों मंथर बहती रहीं नदियां अपनी जमीन पाने को उमड़ीं थी.

Advertisement

तस्‍वीरों में देखें केदारनाथ की तबाही का मंजर

साल भर बाद भी जारी है निर्माण का कार्य
इस साल 3 मई को केदारनाथ के कपाट खोल दिए गए. देवभूमि में फिर यात्रियों की आवाजाही के लिए सड़कों को दुरुस्त करने का काम साल भर से चल रहा है. केदारनाथ में निर्माण कार्य तबाही बीत जाने के बाद से ही जारी है. बरसात से पहले मंदाकिनी नदी की धारा को पुराने रास्ते पर लाने का काम किया जा रहा है. फिलहाल मंदाकिनी की धारा का रुख बदला हुआ है जिससे मंदिर को खतरा बना हुआ है. निम (NIM) के डेढ़ सौ मजदूर काम में जुटे हैं. इसमें सिंचाई विभाग भी निम की मदद कर रहा है.

सरकार तबाह हुई सड़कों को भी दुरुस्त करा रही है लेकिन सड़कें फिर तबाही की बुनियाद पर तैयार की जा रही हैं. दरअसल दोबारा बनाई जा रही सड़कों का आधार बहुत कमजोर है. सड़कों के नीचे की मिट्टी भुरभुरी है और हल्की बरसात में भी उसके खिसकने की आशंका बनी हुई है. जिस कंपनी को सरकार ने श्रीनगर से गोरीकुंड तक सड़क बनाने का काम दिया है उसने साफ कह दिया है की मौजूदा सड़क भारी बरसात में टिकने लायक नहीं हैं.

अचानक से इतने लम्बे रूट की सड़क इतने कम समय में बनते देख स्थानीय लोग भी हैरान हैं. लोगो का कहना है की सड़क का काम तो युद्ध स्तर पर हो रहा है लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि मानकों की अनदेखी कर ये सब जल्दबाजी में किया जा रहा है.

Advertisement

पहले की तबाही भी इंसानी चूक और नासमझी का नतीजा थी. नदियों को बांधा फिर पहाड़ों को काटकर सड़कें खींच दी लेकिन कुदरत को होने वाले नुकसान को नहीं आंकने की नासमझी कर बैठे. अब फिर वही चूक दोहराई जा रही है. सड़कें और बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने के बजाय कमजोर बुनियाद पर विकास की इमारत तामीर की जा रही है.

अब भी बाकी है तबाही का दर्द
केदारनाथ आपदा की पहली बरसी पर देश भर में हजारों आंखें फिर भर आई हैं. अपनों की यादों में आंसू उमड़ आए हैं. सच है कि सरकार ने दावा किया था कि केदारनाथ से सभी शवों को हटाकर उनका दाह संस्कार कर दिया गया है लेकिन एक साल बाद नरकंकालों के मिलने की खबर सुनकर उन लोगों के मन फिर विचलित हो गए जिन्होंने अपनों को खो दिया. लोग अपनों के बाकी बचे अवशेषों के तलाश में फिर उत्तराखंड पहुंच गए हैं.

घाटी की आबादी पर बिखरे पत्थर प्राकृतिक न्याय की अवधारणा का सबूत हैं. इस बार इनसे सबक लेने की जरूरत है. प्रकृति को अपने करीने से चलने दें क्योंकि प्रकृति ही जीवन है. ये बची रही तो जीवन यात्रा यूं ही चलती रहेगी वरना पलायन के पृथ्वी भी छोटी पड़ जाएगी.

Advertisement
Advertisement