उत्तराखंड में जारी सियासी घटनाक्रम में मंगलवार को हाई कोर्ट के ताजा फैसले से नया मोड़ आ गया. केंद्र ने जहां राष्ट्रपति शासन लगाया था वहीं नैनीताल हाईकोर्ट ने हरीश रावत सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दे दिया. केंद्र जहां इस फैसले के खिलाफ सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है वहां कांग्रेस भी निलंबित बागी विधायकों को वोटिंग में शामिल होने देने के फैसले को चुनौती देने पर विचार कर रही है. इस मामले के सियासी पहलूओं से ज्यादा अब कानूनी पहलूओं पर सबकी नजर है. आइए देखते हैं क्या कहते हैं कानूनी जानकार उत्तराखंड के सियासी हालात पर...
सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े का मानना है कि ये कोई नई बात नहीं है. कई फैसले हैं जिसमे कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल या कहीं और जाना सही नहीं है. बहुमत सदन में साबित करना है . ये कोई नई बात नहीं है. ऐसा पहले जगदम्बिका पाल के मामले में हो चुका है.
संजय हेगड़े कहते हैं 9 बागी विधायक वोट देंगे और उनके वोट अलग लिफाफे में रखे जायेंगे. वोट गिने नहीं जायेंगे. कोर्ट का जो भी फैसला होगा स्पीकर द्वारा निष्कासन पर, उसी आधार पर उनका वोट काउंट होगा. ऐसा बहुत से इलेक्शन याचिका में भी होता है. वोट उनका रिकॉर्ड होगा, काउंट नहीं होगा. ये कोई नई बात नहीं है. बाद में अगर उन विधायकों की सदस्यता बरकरार हो जाती है तो इसके खिलाफ स्पीकर कोर्ट आ सकते हैं.
वे कहते हैं कि केंद्र सरकार चाहे तो सुप्रीम कोर्ट आ सकती है. केंद्र सरकार के लिए झटका तो नहीं है ये लेकिन उन्होंने ऐसा सोचा नहीं होगा.
वहीं कांग्रेस नेता और सीनियर वकील सलमान खुर्शीद कहते हैं- ऐसा पहले भी हुआ है. सोच समझ के न्यायपालिका विधायिका के मामले में हस्तक्षेप करती है. उत्तर प्रदेश में हो चुका है. जगदम्बिका पाल के मामले में हुआ था ऐसा. मत प्रदर्शन में वे विफल रहे.
खुर्शीद कहते हैं- बहुत कम ये होता है. कोर्ट ने बहुत तेजी से हस्तक्षेप किया. बिहार में भी पहले हो चुका है जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति शासन गलत लगा और सदन को फिर से बहाल किया गया. केंद्र सरकार के निर्णय पर एक सवालिया निशान लग गया है. लेकिन ये एक अंतरिम फैसला है. जब तक अंतिम फैसला नहीं आता तब 31 को कुछ न कुछ फैसला सदन में देखने को मिलेगा.
सलमान खुर्शीद कहते हैं- 'मुझे फैसला पूरा पढ़ना होगा. जो समझ में आता है आगे चल कर अंतिम निर्णय लेने के समय इन 9 विधायकों का फैसला क्या रहा है. लेकिन उसके साथ-साथ इस निर्णय को भी देखा जाएगा. तकनीकी तौर पर इस फैसले को बिलकुल सही मानता हूं. कोर्ट में कई बार फैसले में समय लगता है. लेकिन इतनी जल्दी इतना दूरगामी निर्णय लेने के लिए हाई कोर्ट बधाई का पात्र है.'
सलमान खुर्शीद ने कहा कि- ये विधायिका के क्षेत्र में न्यायपालिका के दखल का मामला बिलकुल नहीं है. अगर न्यायपालिका कुछ ग़लत करती है तो हम संसद में संविधान में संशोधन करके सन्देश देते हैं. जब सरकार कुछ गलत करती है तो न्यायपालिका उसको सही करती है. व्यवस्था में संतुलन जरूरी है और ये होना चाहिए. अभी किया ही क्या है सिर्फ संकेत दिया है. अंतिम फैसला देखिये क्या होता है.