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'भगवा में गलत क्या है,' शिक्षा के भगवाकरण के आरोपों पर बोले उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू

स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में मैकाले शिक्षा प्रणाली को खारिज करने का आह्वान करते हुए नायडू ने कहा कि इसने देश में शिक्षा के माध्यम के रूप में एक विदेशी भाषा थोप दी और शिक्षा को एलीट क्लास तक सीमित कर दिया.

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उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू. -फाइल फोटो
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू. -फाइल फोटो
स्टोरी हाइलाइट्स
  • विदेशी भाषा को लागू करने से शिक्षा सीमित हो गई: नायडू
  • आपकी मातृभाषा आपकी दृष्टि की तरह है: उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू (Vice President M Venkaiah Naidu) ने शनिवार को देश से मैकाले की शिक्षा नीति (Macaulay system of education) को पूरी तरह से खारिज करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि सरकार पर शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप है, लेकिन भगवा में क्या गलत है? थॉमस बबिंगटन मैकाले एक ब्रिटिश इतिहासकार थे जिन्होंने भारत में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी की शुरूआत में एक प्रमुख भूमिका निभाई.

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उपराष्ट्रपति ने हरिद्वार के देव संस्कृति यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई शांति और सुलह संस्थान का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में कहा कि भारतीयों को अपनी औपनिवेशिक मानसिकता छोड़ देनी चाहिए और अपनी भारतीय पहचान पर गर्व करना सीखना चाहिए.

नायडू ने यह भी कहा कि शिक्षा प्रणाली का भारतीयकरण भारत की नई शिक्षा नीति का केंद्र है, जो मातृभाषाओं को बढ़ावा देने पर जोर देती है. उन्होंने कहा, "हम पर शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप है, लेकिन फिर भगवा में गलत क्या है?"

विदेशी भाषा को लागू करने से शिक्षा सीमित हो गई: नायडू

उपराष्ट्रपति ने कहा कि सदियों के औपनिवेशिक शासन (Colonial rule) ने हमें खुद को एक कमजोर नस्ल के रूप में देखना सिखाया. हमें अपनी संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान का तिरस्कार करना सिखाया गया. इसने एक राष्ट्र के रूप में हमारे विकास को धीमा कर दिया. हमारे शिक्षा के माध्यम के रूप में एक विदेशी भाषा को लागू करने से शिक्षा सीमित हो गई. समाज का एक छोटा सा वर्ग शिक्षा के अधिकार से एक बड़ी आबादी को वंचित कर रहा है.

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नायडू ने कहा कि हमें अपनी विरासत, अपनी संस्कृति, अपने पूर्वजों पर गर्व महसूस करना चाहिए. हमें अपनी जड़ों की ओर वापस जाना चाहिए. हमें अपनी औपनिवेशिक मानसिकता को त्यागना चाहिए और अपने बच्चों को उनकी भारतीय पहचान पर गर्व करना सिखाना चाहिए. जितनी भी भारतीय भाषाएं हैं, हमें सीखनी चाहिए. हमें अपनी मातृभाषा से प्रेम करना चाहिए. हमें अपने शास्त्रों को जानने के लिए संस्कृत सीखनी चाहिए, जो ज्ञान का खजाना है.

आपकी मातृभाषा आपकी दृष्टि की तरह है: उपराष्ट्रपति

युवाओं को अपनी मातृभाषा का प्रचार करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहा, "मैं उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब सभी नोटिफिकेशन राज्य की मातृभाषा में जारी की जाएंगी. आपकी मातृभाषा आपकी दृष्टि की तरह है. उन्होंने कहा कि भारत आने वाले विदेशी व्यक्ति अंग्रेजी जानने के बावजूद अपनी मातृभाषा में बोलते हैं क्योंकि उन्हें अपनी भाषा पर गर्व है.

नायडू ने कहा, "सर्वे भवन्तु सुखिनः (सभी खुश रहें) और वसुधैव कुटुम्बकम (दुनिया एक परिवार है), जो हमारे प्राचीन ग्रंथों में निहित दर्शन हैं, आज भी भारत की विदेश नीति के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं." उन्होंने कहा कि भारत के लगभग सभी दक्षिण एशियाई देशों के साथ मजबूत संबंध रहे हैं. सिंधु घाटी सभ्यता अफगानिस्तान से गंगा के मैदानों तक फैली हुई है. किसी भी देश पर पहले हमला न करने की हमारी नीति का पूरी दुनिया में सम्मान किया जाता है. यह योद्धाओं का देश है. यह राजा अशोक महान का देश है जिन्होंने हिंसा पर अहिंसा और शांति को चुना.

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शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को प्रकृति के संपर्क में रहना चाहिए: नायडू

उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक समय था जब दुनिया भर से लोग नालंदा और तक्षशिला के प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए आते थे. भारत ने कभी किसी देश पर हमला करने के बारे में नहीं सोचा क्योंकि हम मानते हैं कि दुनिया को शांति की जरूरत है. उन्होंने कहा कि शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को प्रकृति के निकट संपर्क में रहना भी सिखाया जाना चाहिए. प्रकृति एक अच्छी शिक्षक है. आपने देखा होगा कि प्रकृति के करीब रहने वाले लोगों को कोरोना संकट के दौरान कम नुकसान उठाना पड़ा. बेहतर भविष्य के लिए प्रकृति और संस्कृति का आदर्श वाक्य होना चाहिए.

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