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पलायन और पानी के गंभीर संकट से जूझ रहा है देश को कई दिग्गज देने वाला पौड़ी

पलायन की मार झेल रहे इस गांव में सबसे ज्यादा कमी है तो वो है पीने के पानी की. बूंद-बूंद पानी को तरसते हुए लोग ये कहने से बिलकुल भी नहीं झिझकते कि नेता, जिनको वोट देकर हमने सत्ता के शिखर पर पहुंचाया वो अब हमें भूल गए हैं.

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योगी आदित्यनाथ के गांव का हाल
योगी आदित्यनाथ के गांव का हाल

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देश में आज उत्तराखंड के जिले पौड़ी का डंका बज रहा है. पूरे देश के शीर्ष सुरक्षा पदों पर बैठे सभी बड़े अधिकारी पौड़ी जिले से ही आते हैं. यहीं नहीं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ भी खुद पौड़ी के पंचूर गावं से ही हैं. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी इसी जिले के खैरसेंड गांव से हैं. उत्तराखंड के साथ-साथ देश के बड़े-बड़े नेता और अधिकारी देने में भी पौड़ी पीछे नहीं है. पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूरी से लेकर विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज, रमेश पोखरियाल निशंक, सेना प्रमुख बिपिन रावत, सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, अनिल धस्माना सभी इस मिट्टी से जुड़े हैं. बावजूद इसके पौड़ी आज भी पलायन, पानी और शिक्षा की जबरदस्त मार झेल रहा है.

साल 2000 में कई आंदोलनों के बाद उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया जिसके बाद यहां के लोगों में ये उम्मीद जगी कि अब निश्चित तौर पर पूरे राज्य का विकास होगा, लोगों के पास रोजगार होगा, अच्छी शिक्षा होगी और अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं भी मिलेंगी. इन सबसे से उनका जीवन बेहद अच्छे तरीके से बीतेगा. लेकिन उनकी उम्मीदों को तब धक्का लग गया जब पूरे प्रदेश में बेरोजगारी, शिक्षा की कमी और ख़राब स्वास्थ्य सेवाओं का बोलबाला होने लगा और आखिरकार लोगों ने अपने पुराने गांव को छोड़कर पलायन करना शुरू कर दिया. पौड़ी उत्तराखंड को वो जिला है जहां सबसे ज्यादा पलायन हुआ.

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केस स्टडी-1
'आजतक' की टीम ने सबसे पहले पौड़ी के बनेख गावं का जायजा लिया. पलायन की मार झेल रहे इस गांव में सबसे ज्यादा कमी है तो वो है पीने के पानी की. बूंद-बूंद पानी को तरसते हुए लोग ये कहने से बिलकुल भी नहीं झिझकते कि नेता जिनको वोट देकर हमने सत्ता के शिखर पर पहुंचाया वो अब हमें भूल गए हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक न उनके पास पीने को पानी है और न ही बच्चों को शिक्षा देने के लिए अच्छे स्कूल हैं. स्वास्थ सेवाओं की तो बात करना ही बेमानी है और यही वजह है की यहां से बहुत से लोग पलायन करके पूरे परिवार के साथ कहीं और रहने को चले गए.

सरकार की ओर से यहां पानी की टंकी तो लगाई गए लेकिन उसमें सालों पानी नहीं है. जिसकी चलते सभी गांव वाले एक किराए की गाड़ी के जरिए गांव से 10 किलोमीटर दूर से पानी भरकर लाते हैं. उसी पानी से रोजमर्रा के काम किसी तरह से हो पाते हैं. अगर घर में कभी मेहमान आ जाएं तो पानी की किल्लत और बढ़ जाती है. यहां के हालात इतने खराब हैं कि नहाने-धोने के लिए ही नहीं बल्कि पीने के लिए भी पानी मयस्सर नहीं है.

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स्थानीय निवासी राजेंद्र सिंह की माने तो अब सरकारों से उनका विश्वास उठ गया है. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के बाद यहां बने काफी मकान तक अब खंडहर हो चले हैं. जिनके आबाद होने की उम्मीद अब नहीं बची है, बस जितना बचा है उतना ही बच जाए वही बहुत है. जिस तरह से गांव के गांव लोगों से खाली हो गए हैं वो बेहद दुखद है, जहां जीवन होता था अब वहां सन्नाटा बिखरा पड़ा है. मकानों पर ताले ऐसे लग हैं जैसे वहां कभी कोई जीवन था ही नहीं.

केस स्टडी 2
बनेख की समस्या सुनने और समझने के बाद हम खैरसेंड की ओर बड़े जो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का गांव है. सीएम रावत खुद भी पलायन कर लगभग 17 साल पहले अपने परिवार के साथ देहरादून जा चुके हैं. गांव में घुसते ही टीम के मुलाक़ात मुख्यमंत्री के बड़े भाई बृजमोहन और सीएम को क्लास 6 तक पढ़ा चुके उनके टीचर से हो गई. उनकी शिकायत भी एक आम नागरिक की तरह ही थी. उन्होंने बताया बेरोजगारी, खस्ताहाल शिक्षा और ख़राब स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से 60 फीसद से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं. खेती तबाही के कगार पर है और सुनने वाला कोई नहीं है. गांव में एकमात्र स्कूल तो है पर उसकी हालत इतनी ख़राब हैं की वहां अब केवल 80 बच्चे ही पढ़ाई करने आते हैं. बच्चे घटे तो फिर शिक्षकों की कमी की वजह से शिक्षा का स्तर और गिरता जा रहा है.

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मुख्यमंत्री रावत के स्कूल टीचर ने बताया कि कुछ साल पहले तक इतना पलायन नहीं था लोग यहां खेती करके गुजरा करते थे. घर और खेत दोनों ही आबाद थे लेकिन अब जहां कभी धान होता था वहां अब सिर्फ झाड़-झक्कड़ ही बचा है. गांव में खेती करने के लिए लोग ही नहीं बचे हैं. लेकिन गांव वालों को अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से उम्मीद जरूर है. शायद उनके सत्ता संभालने से खैरसेंड गांव और पौड़ी की हालत पहले से सुधर जाए.

केस स्टडी 3
खेरा गांव से चलकर हमारी टीम योगी आदित्यनाथ के इलाके में पहुंची. यहां भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव को लेकर जबरदस्त तरीके से पलायन हो रहा है. क्या बच्चे, क्या महिलाएं, क्या बुजुर्ग, सभी को पानी के लिए कोसों दूर चलना पड़ता है. पंचूर में जिस तरह पानी को लेकर लम्बी लाइन लगी मिली उसको देखकर ये अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है कि पलायन की असल वजह क्या है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता आनंद सिंह बिष्ट का भी यही कहना है कि पलायन रोकने के लिए सबसे पहले चकबंदी करने की जरुरत है, जब चक बनेंगे तो खेती होगी और उस पर हल चलेंगे, जिससे ज़मीन उपजाऊ होगी. बरसात का जो पानी बह जाया करता है वो धरती के अंदर तक जायेगा और सूख चुके पानी के स्रोत फिस से चालू हो जायेंगे. उनका कहना था कि सरकार योजनाएं तो बहुत बनाती है लेकिन वह योजनाएं जमीन पर काम करती नहीं दिखती हैं.

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देश का ज्यादातक पहाड़ी इलाका पलायन का संकट झेल रहा है. फिर भी किसी सरकार ने आज तक इस दिशा में ठोस तरीके से धरातल पर काम नहीं किया. पहाड़ी इलाकों का दर्द भी पहाड़ जितना ही बड़ा है. 18 साल पहले बने इस राज्य का आंदोलन इसी बात पर लड़ा गया था कि अलग राज्य बनने से सरकारें यहां की मूलभूत सुविधाएं जैसे पानी, बिजली, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को बहाल करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बहरहाल राज्य बनने के इतने साल बाद अब पलायन की समस्या ने विकराल रूप ले लिया है.

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