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शिवपाल का यादव परिवार की एकजुटता पर बड़ा बयान, हरिद्वार में दो टूक कही मन की बात

हरिद्वार में अस्थि विसर्जन के बाद शिवपाल यादव ने कहा कि (नेताजी) मुलायम सिंह ने कई बार विधायक और मुख्यमंत्री रहते हुए जनता की सेवा की. उन्होंने हमेशा अल्पसंख्यक, गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों की आवाज उठाई. दल और बल से ऊपर उठकर उन्होंने सभी की बात सुनी और कभी किसी को निराश नहीं किया.

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शिवपाल यादव, अखिलेश यादव और डिंपल यादव
शिवपाल यादव, अखिलेश यादव और डिंपल यादव

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की अस्थियां लेकर अखिलेश यादव परिवार के साथ सोमवार को हरिद्वार पहुंचे. उनके साथ पत्नी डिंपल यादव, चाचा शिवपाल यादव और रामगोपाल सहित अन्य परिजन भी गए थे. चंडी घाट पर यादव परिवार के तीर्थ पुरोहित पंडित शैलेश मोहन ने नेताजी की अस्थियां विसर्जित कराईं. 

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इसके बाद शिवपाल यादव ने कहा, "मुलायम सिंह ने कई बार विधायक और मुख्यमंत्री रहते हुए जनता की सेवा की. उन्होंने हमेशा अल्पसंख्यक, गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों की आवाज उठाई. दल और बल से ऊपर उठकर उन्होंने सभी की बात सुनी और कभी किसी को निराश नहीं किया."

परिवार की एकजुटता के सवाल पर शिवपाल यादव ने कहा, "नेताजी के देहांत के बाद पूरा परिवार एकजुट है." बताते चलें कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का 10 अक्टूबर को निधन हो गया था. अगले दिन पैतृक गांव सैफई में पूरे राजकीय सम्मान के साथ मुलायम सिंह का अंतिम संस्कार हुआ था. इसके दूसरे दिन यादव परिवार ने अस्थि संचय किया और फिर शुद्धि संस्कार की क्रियाएं की गईं.

नहीं होगी मुलायम सिंह यादव की तेरहवीं

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, किसी व्यक्ति के निधन के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए 13वें दिन धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है. इसे तेहरवीं कहा जाता है. मगर, पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की तेरहवीं नहीं होगी. इसकी जगह शांति पाठ और हवन पूजन 21 अक्टूबर को किया जाएगा.

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नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव ने ही समाज सुधारकों के साथ मिलकर इस परंपरा को खत्म करने की शुरूआत की थी. धीरे-धीरे यहां तेरहवीं का कार्यक्रम किया जाना बंद हो गया. तब से ही लोग इसकी जगह शांति पाठ के साथ हवन और पूजा पाठ करने लगे. लिहाजा, नेताजी की भी तेरहवीं नहीं की जाएगी.

दरअसल, मृत्यु के बाद 13वें दिन भोज का कार्यक्रम रखा जाता था. इससे गरीब वर्ग के लोगों पर आर्थिक बोझ पड़ता था. गरीबों पर इसका दबाव नहीं पड़े, इसीलिए इन परंपराओं को समाज सुधारकों ने खत्म करने पर जोर दिया.

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