
उत्तराखण्ड के नैनीताल में पिछले चार दिनों से लगी आग लगातार बढ़ रही है. अपने सुरम्य परिदृश्य और हरे-भरे जंगलों के लिए प्रसिद्ध पहाड़ी राज्य में एक ऐसी आपदा आ रही है, जिसने पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने के साथ-साथ कई वनस्पतियों और जीवों के जीवन को खतरे में डाल दिया है. इस साल भी गर्मियां बढ़ाने के साथ जंगल में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं. हालात इस कदर भयावह हैं कि अब भारतीय सेवा और एनडीआरएफ मिलकर जंगलों की आग पर नियंत्रण पाने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले को लेकर याचिका दाखिल कर दी गई है.
एयर फोर्स के विमान भीमताल लेख से बांबी बकेट में पानी भरकर जंगलों में लगी आग पर काबू पानी की कोशिश की जा रही है. जंगल की आग से अब तक पहाड़ों के हजारों हेक्टर जमीन जलकर राख हो गई है . इतना ही नहीं हाल ही में नैनीताल इलाके में लगी जंगलों की आज हाई कोर्ट कॉलोनी तक पहुंच गई थी और तब उसे काबू करने के लिए सेवा को बुलाना पड़ा था. रुद्रप्रयाग में शुक्रवार को जंगल में आग लगाने की कोशिश करते हुए अब तक तीन लोगों की गिरफ्तारी भी की जा चुकी है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी आज की घटनाओं पर चिंता जताई है और कहा है कि इन पर जल्दी ही काबू पा लिया जाएगा और इस संबंध में सेना की सहायता ली जा रही है.
28 अप्रैल को नासा के जरिए सामने आई सैटेलाइट तस्वीरों में उत्तराखंड में लगी जंगल की आग की भयावता दिखाई दे रही है. अगर मार्च अप्रैल 2023 और 2024 में उत्तराखंड में जंगलों में लगी आग के बीच तुलना करें तो 2024 में स्थिति ज्यादा गंभीर हो गई है.
एक साल में आग लगने की घटनाएं कितनी बढ़ीं?
मार्च अप्रैल 2023 में अल्मोड़ा जिले में आग लगने की 299 घटनाएं हुई थी तो 2024 में इन्हीं दो महीना में आगजनी की 909 घटनाएं हो चुकी हैं. इसी तरह चंपावत जिले में साल 2023 में 120 जंगल की आज की घटनाएं हुई तो 2024 में यह 1025 हो चुकी है. गढ़वाल जिले में भी मार्च अप्रैल 2023 में 378 राजधानी की घटनाएं हुई तो इस साल 742 का आंकड़ा पार हो चुका है. इसी तरह नैनीताल में पिछले साल 207 आग लगने की घटनाएं 2 महीने में दर्ज की गई जो कि इस साल दो महीना में 1524 हो चुकी हैं.
अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2023 के मार्च महीने में जंगल में आगलगने की 804 घटनाएं के सामने आई थी तो 2024 में मार्च महीने में 585 आगजनी की घटनाएं सामने आई हैं लेकिन अप्रैल महीने की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि अप्रैल 2023 में आग लगने की 1046 घटनाएं दर्ज हुई थी जबकि 2024 में अब तक अप्रैल महीने में 5710 आगे ने की घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं.
जंगलों में क्यों लगती है आग?
उत्तराखण्ड के जंगलों में आग लगने की समस्या खासतौर पर फरवरी से जून के महीनों के दौरान देखी जाती है, क्योंकि इस समय मौसम शुष्क और गर्म होता है. नैनीताल के जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण नमी की कमी है. जंगल में मौजूद सूखी पत्तियां और अन्य ज्वलनशील पदार्थ तेज गर्मी की वजह से आग पकड़ लेते हैं.
कई बार स्थानीय लोगों और पर्यटकों की लापरवाही के कारण भी जंगलों में आग लग जाती है. दरअसल, स्थानीय लोग अच्छी गुणवत्ता वाली घास उगाने, पेड़ों की अवैध कटाई को छुपाने, अवैध शिकार आदि के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं, जिसकी वजह से आग पूरे जंगल में फैल जाती है. इसके अलावा टूरिस्ट कई बार जलती हुई सिगरेट या दूसरे पदार्थ जंगल में फेंक देते हैं, जिसके कारण आग पूरे जंगल में फैल जाती है.
प्राकृतिक कारणों से भी जंगलों में आग लग जाती है. सूखी पत्तियों के साथ बिजली के तारों के घर्षण से भी जंगल में आग लगती है, जैसे बिजली गिरती है. वहीं बदलते जलवायु पैटर्न के कारण मौसम गर्म और शुष्क हो रहा है, जिसकी वजह से जंगलों में आग देखने को मिल रही है.
उत्तराखंड में एडिशनल प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर कपिल जोशी कहते हैं, "उत्तराखंड में जंगल में आग लगने की कई प्रतिकूल परिस्थितियों हैं और जितनी ज्यादा प्रतिकूल परिस्थितियों होगी उतनी ही ज्यादा जंगल में आग लगने की घटनाएं होंगी. नमी का स्तर, लंबे समय तक शुष्क व उच्च तापमान, हवा की दिशा और बारिश का समय जैसी प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों इसमें योगदान करती हैं क्योंकि पिछले कुछ सालों में जलवायु की बदलती परिस्थितियों ने इन प्रतिकूल परिस्थितियों को और बद्तर बना दिया है लेकिन यह भी एक तथ्य है कि क्षेत्र में जंगल में आग लगा एक सामान्य घटना है. हम आग पर काबू पाने में भी बेहतर स्थिति में हैं."
पिछले 5 सालों में वनाग्नि कितने जंगल और जिंदगियों को निगल गई?
मॉनसूनी आपदा हो या वनाग्नि, उत्तराखंड जितना खूबसूरत है, उतनी ही कठिन देवभूमि की जिंदगी है. कहते हैं स्वयं भगवान ही यहां की रक्षा करते हैं. वनाग्नि जब विकराल रूप ले रही होती है तो मॉनसून उस आग से यहां के वासियों को छुटकारा दिलाता है. आइए जानते हैं इस एक्सक्लूसिव डेटा से कि वनाग्नि ने पिछले 5 सालों में कितनी तबाही मचाई है.
-30 जून 2019 तक उपलब्ध आंकडों के अनुसार, 2158 वन अग्नियों की घटनाएं हुई, जिनमे 2981.55 हेक्टेयर वन भूमि जल कर खाक हो गई. इन हादसों में 15 लोग घायल हुए, 1 व्यक्ति और 6 वन्यजीवों की मौत हो गई थी. नुकसान की बात करें तो वन विभाग को 55 लाख 92 हजार का राजस्व नुकसान हुआ. आग से करीब 7000 पेड़ पौधे भी नष्ट हो गए.
-साल 2020 में कुछ हद तक यह आंकड़े गिरे. 23 जून तक उपलब्ध डेटा के अनुसार, 135 वनाग्नि घटनाएं हुई हैं. 172.69 हेक्टेर भूमि वनाग्नि से भस्म हो गई थी. इन घटनाओ में 2 लोगों की मौत हुई, 1 व्यक्ति घायल हुआ और किसी वन्यजीव की मौत दर्ज नहीं हुई है. आग से 4 लाख 44 हजार का नुकसान हुआ था.
- 23 जुलाई 2021 तक उपलब्ध डेटा के अनुसार, वनाग्नि ने एक बार फिर विकराल रूप लिया और 2813 घटनाओं में 3944 हेक्टेयर वन भूमि को आग निगल गई. 8 लोगो की मौत और 3 लोग घायल हुए थे. वहीं 29 वन्यजीवों की मौत और 24 घायल हुए थे. आग से 1 करोड़ 6 लाख का नुकसान हुआ था और 1 लाख 20 हजार पेड़ नष्ट हो गए थे.
- साल 2022 में भी वनाग्नि ने कोहराम मचाया था. 6 अगस्त तक उपलब्ध डेटा में करीब 2186 घटनाओं में 3226 हेक्टेयर वन भूमि जल कर खाक हो गई, जिसमे 7 लोग घायल हुए और 2 लोगों की मौत हो गई थी, वन जीवों का आंकड़ा दर्ज नहीं हुआ. आग से 89 लाख 25 हजार का नुकसान हुआ और 39000 पेड़ पौधे जल कर खाक हो गए थे.
- 29 नवम्बर 2023 तक का डेटा बताता है कि 73 वनाग्नि की घटनाएं हुई 933 हेक्टेयर भूमि जल गई. 3 लोग घायल हुए 3 लोगों की मौत हुई, वन्यजीवों का आंकड़ा शून्य रहा था. आग से 23 लाख 97 हजार का राजस्व नुकसान हुआ था. वहीं 15000 पेड़ पौधे नष्ट हो गए थे.
-साल 2024 में अब तक 650 से ज्यादा घटनाओं में करीब 800 हेक्टेयर भूमि जल चुकी है. 2 लोग घायल हुए हैं वहीं 1 व्यक्ति की मौत हो चुकी है. हालांकि, अभी तक वन विभाग ने इसकी पुष्टि नहीं की है.