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प्रयागराज में हुए भव्य कुंभ के मुकाबले हरिद्वार में कैसा रहेगा आस्था का महामेला?

प्रयागराज और हरिद्वार में कुंभ के आयोजन की तुलना की जाए तो इनके मेला क्षेत्र से ही एक अंदाज लगाया जा सकता है. 2019 में प्रयागराज में कुंभ मेला क्षेत्र 1900 हेक्टेयर से बढ़ाकर 3200 हेक्टेयर कर दिया गया था.

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हरिद्वार में कुंभ का आयोजन
हरिद्वार में कुंभ का आयोजन
स्टोरी हाइलाइट्स
  • हरिद्वार में कुंभ के आयोजन पर 900 करोड़ तक जा सकता है बजट
  • प्रयाग में हुए थे 4200 करोड़ खर्च
  • हरिद्वार के 600 हेक्टेयर में होगा आयोजन

हरिद्वार में महाकुंभ क्या सिर्फ नाम का ही महाकुंभ रह गया है?  उत्तराखंड सरकार की ओर से पहले हरिद्वार में कुंभ की अवधि एक महीना रहने की बात कही गई थी लेकिन अब ये दो दिन और घटाकर 28 दिन की कर दी गई है. कुंभ मेला अब औपचारिक तौर पर एक अप्रैल से शुरू होकर 28 अप्रैल तक ही चलेगा. कोरोना के साये में हो रहे इस कुंभ के लिए केंद्र सरकार की गाइडलाइंस समेत तमाम तरह की स्टैंडर्ड ऑपरेशनल प्रोसीजर (SOP) बाध्यताएं लागू हैं.

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ऐसे में स्थानीय कारोबारी, दुकानदार, होटल मालिक, पुरोहित मेले की अवधि घटाए जाने और एसओपी बाध्यताओं को लेकर अपनी नाराजगी जता रहे हैं. उनकी तरफ से यूपी में प्रयागराज में योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से कराए गए भव्य कुंभ का हवाला दिया जा रहा है.

इन लोगों का कहना है कि सिर्फ हरिद्वार में ही कुंभ में बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं पर तमाम तरह की सख्ती बरत कर हिन्दुओं की आस्था से क्यों खिलवाड़ किया जा रहा है.  

प्रयागराज और हरिद्वार में कुंभ के आयोजन की तुलना की जाए तो इनके मेला क्षेत्र से ही एक अंदाज लगाया जा सकता है. 2019 में प्रयागराज में कुंभ मेला क्षेत्र 1900 हेक्टेयर से बढ़ाकर 3200 हेक्टेयर कर दिया गया था, वहीं हरिद्वार में सिर्फ 600 हेक्टेयर क्षेत्र में ही कुंभ का आयोजन हो रहा है. हरिद्वार में कुंभ की बात करने से पहले जान लिया जाए कि दो साल पहले प्रयागराज में कुंभ के आयोजन के दौरान क्या क्या हुआ था खास? 

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प्रयागराज कुंभ 2019 में क्या क्या हुआ था खास? 

प्रयागराज में कुंभ के आयोजन से दो साल पहले ही यूनेस्को ने इसे अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित कर दिया था. 2019 में दिव्य और भव्य कुंभ कराने की परिकल्पना के साथ योगी आदित्यनाथ सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया. पूरे शहर को ही कुंभ महानगर में तब्दील कर किया गया.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रयागराज कुंभ में 12 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पहुंचे थे लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इससे दुगनी संख्या में श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था कर रखी थी. 2019 में वैसे तो कुम्भ मेले की अवधि 14 जनवरी से 4 मार्च यानि मकर संक्रांति से शिवरात्रि तक थी, लेकिन ये कई हफ्ते अधिक तक चला. 

प्रयागराज में 2019 में कुंभ की भव्यता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि तब चार विश्व रिकॉर्ड बने थे. ये चारों रिकॉर्ड सफाई, टायलेट्स की संख्या, सबसे ज्यादा बस चलाने और हाथों की उंगलियों की छाप से संबंधित थे. तब कुंभ मेला क्षेत्र में 1,22,500 टॉयलेट्स बनाए गए जो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ.

ढाई सौ किलोमीटर के क्षेत्र में हर 250 से 300 मीटर की दूरी टॉयलेट्स बनाए गए थे. कुंभ मेले में 35 हजार सफाईकर्मियों की तैनाती की गई. कुंभ के लिए विशेष 22 पीपे के पुल बनाए गए. प्रयागराज कुंभ के लिए 93 मेला स्पेशल ट्रेन चली थीं. इनके अलावा बड़ी संख्या में अतिरिक्त बस भी लगाई गई थीं. 

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पर्याप्त संख्या में बेड्स के साथ अस्पतालों के अलावा 150  एंबुलेंस, बोट एंबुलेंस और एयर एंबुलेंस की व्यवस्था की गई. प्रयागराज कुम्भ में बड़ी संख्या में विदेशी श्रद्धालु भी पहुंचे थे.  

जहां तक खर्च की बात है तो प्रयागराज में कुंभ के आयोजन के दौरान स्थायी, अस्थायी विकास कार्यों और श्रद्धालुओं के ली की गई व्यवस्थाओं पर करीब 4200 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. 

हरिद्वार कुंभ: सीमित अवधि, सीमित क्षेत्र, असीमित बाध्यताएं 

हरिद्वार को आध्यात्मिक राजधानी और पुण्य की नगरी माना जाता है. वैसे हर 12 साल बाद यहां कुंभ का आयोजन होता है लेकिन इस बार 11 साल बाद हो रहा है. हिन्दुओं की आस्था के सबसे बड़े आयोजन के लिए हरिद्वार को तैयार किया जा रहा है. तीर्थनगरी में भगवा और पीले रंग की वॉल पेंटिंग्स से इसकी छटा देखते ही बन रही है. इनमें उत्तराखंड के चारों धामों- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के नाम पर द्वार, देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों के जगह जगह चित्र देखे जा सकते हैं.   

कोरोना के खतरे को देखते हुए शासन-प्रशासन के लिए हरिद्वार में इतने बड़े धार्मिक आयोजन का किसी चुनौती से कम नहीं. चार शाही स्नानों की तिथियों- 12 मार्च, 12 ,14, 27 अप्रैल पर श्रद्धालुओं की भीड़ सबसे ज्यादा रहने की संभावना को देखते हुए हर मुमकिन तैयारी की जा रही है. 

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फिलहाल अभी हरिद्वार कुंभ की आधिकारिक अधिसूचना जारी होना बाकी है. वैसे देखा जाए तो अधिसूचना से आध्यात्मिक आयोजनों पर कोई असर नहीं होता वो तो मकर सक्रांति से ही शुरू हो गए.  लेकिन अधिसूचना जारी होने के बाद प्रशासनिक व्यवस्थाएं पूरी रफ्तार पकड़ पाती हैं. 

हरिद्वार में कुंभ को लेकर आजतक ने उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार से बात की तो उन्होंने कहा कि कोरोना के खतरे को देखते हुए कुंभ की अवधि को कम करने का फैसला किया गया. उन्होंने कहा, “हमारी तरफ से सारी तैयारियां की जा रही हैं. लेकिन एक बात समझने की जरूरत है. प्रयाग में कुंभ का क्षेत्रफल 3000 हेक्टेयर से अधिक था जबकि हरिद्वार में ये 600 हेक्टेयर ही है. थोड़े क्षेत्र में बड़ी संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्थाओं को देखते हुए हमारी चुनौती कहीं बड़ी है. वो भी ये देखते हुए कि इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को साथ स्नान करते हुए कोरोना से सुरक्षित रखा जाए.  

डीजीपी अशोक कुमार के मुताबिक 2010 में हुए अर्धकुंभ में हरिद्वार में 1.6 करोड़ श्रद्धालु आये थे और इस बार श्रद्धालुओं की संख्या उससे कहीं ज्यादा होने की उम्मीद है. सुरक्षा भी बड़ा मुद्दा है. कुंभ के लिए  

20,000 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की तैनाती की व्यवस्था है. अगर जरूरत हुई तो पड़ोसी राज्यों से भी इस विषय में मदद ली जाएगी.  

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कुंभ मेला अधिकारी दीपक रावत ने आजतक को बताया कि कोविड-19 प्रोटोकॉल को लेकर खास सतर्कता बरती जा रही है, घाटों पर स्नान के दौरान पर श्रद्धालु सुरक्षित रहें, सोशल डिस्टेंसिंग आदि को लेकर प्लानिंग हो रही है. रावत ने कहा कि सबसे पहल सुरक्षित कुंभ ही हमारा लक्ष्य है जिससे कि इस बड़े आयोजन के दौरान कोविड-19 के और फैलने का जोखिम न रहे.  

हरिद्वार कुंभ का बजट 900 करोड़  

हरिद्वार में कुंभ के आयोजन पर खर्च को लेकर मेला अधिकारी दीपक रावत का कहना है कि इसके लिए 721 करोड़ रुपए का बजट मंजूर है जो बढ़कर 900 करोड़ तक जा सकता है. कुंभ मेला अधिकारी रावत का कहना है कि कुंभ के स्थायी काम की वैल्यू लगभग 321 करोड़ है, जिसको अभी और बढ़ाया गया है. इनमें 7 पुल, कांवड़ पटरी की बाइंडिंग, चिल्ला रोड की बाइंडिंग, सिडकुल धनौरी मार्ग नए सिरे से बनाना, हरिद्वार की सारी रोड्स, पानी के कार्य,  बिजली के दो बड़े आधुनिक सब स्टेशन, घाटों का निर्माण जैसे टेम्परेरी वर्क्स किए गए हैं. 

साधु संतों के सभी अखाड़ों को दिए गए हैं एक एक करोड़ 

कुम्भ मेले में आने वाले साधु संतों की मूलभूत सुविधाओं और रहने आदि के लिए उत्तराखण्ड सरकार की ओर से सभी अखाड़ों को एक-एक करोड़ रुपए दिए गए हैं. इस रकम से अखाड़ों में निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं.  

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क्या कह रहे हैं हरिद्वार के कारोबारी और पुरोहित? 

हरिद्वार में कुंभ की अवधि घटाए जाने और तमाम तरह की एसओपी को लेकर स्थानीय पुरोहित, व्यापारी सवाल उठा रहे हैं कि अगर यूपी में इस साल प्रयागराज में माघ मेले में बड़ी संख्या में श्रद्दालु आ सकते हैं,  वृंदावन महोत्व की तैयारी की जा सकती है, को हरिद्वार में ही कोरोना के नाम पर इतनी सख्ती क्यों बरती जा रही है. वो किसानों के आंदोलन और बिहार-बंगाल जैसे राज्यों में चुनाव के दौरान राजनीतिक रैलियों में जुटने वाली लोगों की भीड़ का भी हवाला देते हैं.  

उत्तराखंड सरकार की ओर से हरिद्वार में कुंभ मेले के लिए स्पेशल ट्रेन-बसें न चलाने के फैसले से भी हरिद्वार का व्यापारी वर्ग नाराज है. उसका कहना है स्थानीय व्यापारी का काम कोरोना की वजह से पहले से ही एक साल चौपट रहा, कुंभ के आयोजन से कारोबार पटरी पर आने की उम्मीद थी, लेकिन कुंभ चार महीने की जगह 28 दिन का रह जाने से वो भी टूट गई है.

 

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