उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर बनीं अवैध कॉलोनियों को हटाने के फैसला का विरोध बढ़ता ही जा रहा है. हजारों की तादाद में लोग खासकर महिलाएं, बच्चे सड़कों पर बैठकर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे हैं, सड़कों पर नमाज पढ़ रहे हैं और कैंडल मार्च निकाले रहे हैं.अब यह मामला राजनीतिक रंग लेता जा रहा है. पहले AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी प्रदर्शन कर रहे बनभूलपुरा निवासियों के समर्थन में आए. अब कांग्रेस नेता और उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत ने उनका साथ देने का ऐलान कर दिया है. वह आज इन लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए उपवास करेंगे.
ओवैसी ने 2 जनवरी को ट्वीट किया था कि इंसानियत की बुनियाद पर उत्तराखंड, हल्द्वानी के लोगों की मदद करनी चाहिए और उन्हें वहां से नहीं निकालना चाहिए. हल्द्वानी के लोगों के सर से छत छीन लेना कौन सी इंसानियत है? मालूम हो कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद बनभूलपुरा की गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती से रेलवे व सरकारी जमीन से अवैध अतिक्रमण हटाया जाएगा, जिससे 4,365 परिवारों के 50,000 से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे. करीब 2.2 किलोमीटर में यह अतिक्रमण फैला हुआ है. जानकारी के मुताबिक सेंट्रल पैरा मिलिट्री फोर्स और उत्तराखंड पुलिस 8 जनवरी 2022 को यहां अवैध अतिक्रमण हटाने पहुंचेंगे.
SC में कल होगी मामले की सुनवाई
1 जनवरी 2023 की सुबह बनभूलपुरा के लोगों को अखबारों के जरिए रेलवे द्वारा घर खाली करने का सार्वजनिक नोटिस मिला था. रेलवे ने नोटिस जारी हुए करते हुए कहा था कि वह तत्काल रेलवे स्टेशन के आसपास स्थित रेलवे की भूमि को तत्काल खाली करें.उत्तराखंड हाई कोर्ट की तरफ से अतिक्रमण हटाने के आदेश के बाद यह नोटिस जारी किया गया. अब हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी स्वीकार कर ली है. इस मामले में अब पांच जनवरी को सुनवाई होगी.
हाई कोर्ट के इस आदेश जो लोग प्रभावित होंगे, इनमें कुछ लोगों का कहना है कि वह इसी क्षेत्र में पैदा हुए और यहां रहते हुए उन्हें करीब 80 साल के हो चुके हैं. कुछ परिवार तो सन 1937 से यहां रह रहे हैं.
ऐसे समझें पूरा मामला
- 2013 में उत्तराखंड हाई कोर्ट में हल्द्वानी में बह रही गोला नदी में अवैध खनन को लेकर एक पीआईएल दाखिल की गई थी. यह नदी हल्द्वानी रेलवे स्टेशन और रेल पटरी के बगल से बहती है. इस पीआईएल में कहा गया कि रेलवे की भूमि पर अवैध रूप से बसाई गई गफूर बस्ती के लोग गोला में अवैध खनन करते हैं. इसकी वजह से रेल की पटरीयों को और गोला पुल को खतरा है. 2017 में रेलवे ने राज्य सरकार के साथ मिलकर क्षेत्र का सर्वे किया गया और 4365 अवैध कब्जेदारों को चिह्नित किया गया.
- हाई कोर्ट में फिर एक रिट पिटिशन दाखिल की गई, जिसमें कहा गया कि क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर किए गए अतिक्रमण को हटाने में देरी की जा रही है, जिस पर मार्च 2022 में हाई कोर्ट नैनीताल जिला प्रशासन को रेलवे के साथ मिलकर अतिक्रमण हटाने का प्लान बनाने का निर्देश दिया गया.
- अप्रैल 2022 में रेलवे के अधिकारियों और नैनीताल जिला प्रशासन ने बैठक की, जिसके बाद रेलवे ने HC में अतिक्रमण हटाने के संबंध में एक विस्तृत प्लान दाखिल किया. इसके बाद हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे को निर्देश दिया कि एक हफ्ते का नोटिस देकर भूमि से अवैध अतिक्रमणकारियों को तत्काल हटाया जाए.
- इस अतिक्रमण हटाओ अभियान में जिला प्रशासन को शामिल करें और अगर जरूरत पड़े तो पैरामिलिट्री फोर्स की मदद लें. अतिक्रमणकारियों को यह नोटिस अखबारों के माध्यम से और क्षेत्र में मुनादी करवाकर सुनाया जाए. नोटिस जारी होने के 7 दिन बाद भी अगर अतिक्रमणकारियों ने अतिक्रमण नहीं हटाए तो उसके बाद रेलवे बलपूर्वक अतिक्रमण को हटा सकती है.
14 कंपनी फोर्स, 1000 सिपाही होंगे तैनात: IG कुमाऊं
कुमाऊं के आईजी नीलेश आनंद भरणे ने बताया कि अतिक्रमण हटाने के लिए 14 कंपनी सीपीएमएफ सेंट्रल पैरामिलेट्री फोर्स और 5 कंपनी रैपिड एक्शन फोर्स की डिमांड की है. इसके अलावा गढ़वाल मंडल से लगभग 1000 पुलिस के सिपाही और होमगार्ड की भी डिमांड की गई है. फोर्स 8 जनवरी तक हल्द्वानी पहुंच जाएगी.
इसके अलावा जिला प्रशासन से जेसीबी, पोकलैंड, ड्रोन कैमरा, वीडियो कैमरा, बैरिकेट्स और अन्य चीजों जिला प्रशासन से मांगी गई हैं. उपद्रव या दंगा भगड़कने की आशंका को देखते हुए लोकल इंटेलिजेंस यूनिट से भी मदद मांगी गई है.
कांग्रेस, सपा, AIMIM कर रहीं अभियान का विरोध
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, एआईएमआईएम समेत कई सामाजिक संगठन एवं क्षेत्रीय पार्टियां इस अतिक्रमण हटाओ अभियान के खिलाफ लामबंद हो गई हैं. राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधिमंडल लगातार क्षेत्र में घूम कर रहे हैं. क्षेत्र के लोगों का कहना है कि वे वर्षों से सरकार को टैक्स दे रहे हैं. उनके यहां बिजली के कनेक्शन हैं, पानी के कनेक्शन हैं, उनके मकानों और जमीनों की रजिस्ट्री है फिर यह भूमि रेलवे की कैसे हो गई.