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क्या त्रिवेंद्र रावत के दबाव में बैकफुट में आए पुष्कर धामी? अब राजद्रोह केस में वापस नहीं लेंगे एसएलपी

उत्तराखंड सरकार ने विधायक उमेश शर्मा से जुड़े राजद्रोह के केस में यू-टर्न ले लिया है. धामी सरकार ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के राज में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एसएलपी वापस लेने की अर्जी दी थी. इस पर राजनीति शुरू होने के बाद अब सरकार ने अर्जी वापस न लेने का फैसला किया है. इस संबंध में गृह मंत्रालय ने वकील को पत्र भी लिख दिया है.

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18 नवंबर को उत्तराखंड सरकार ने SC से एसएलपी वापस लेने की अपील की थी (फाइल फोटो)
18 नवंबर को उत्तराखंड सरकार ने SC से एसएलपी वापस लेने की अपील की थी (फाइल फोटो)

उत्तराखंड बनाम उमेश शर्मा मामले में धामी सरकार अब बैकफुट पर आ गई है. सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) वापस लेने के फैसला को रद्द कर दिया है. उसने खानपुर के निर्दलीय विधायक उमेश शर्मा के विरुद्ध एसएलपी यथावत रखने का मन बना लिया है. 

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उत्तराखंड के गृह विभाग ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की वकील वंशजा शुक्ला को पत्र भेजकर कहा है कि 26 सितंबर 2022 को SLP वापसी के बाबत सुप्रीम कोर्ट में दी गई अर्जी को राज्य सरकार ने जनहित में निरस्त करने का फैसला किया है.

इससे पहले उत्तराखंड सरकार ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एसएलपी वापस लेने की अर्जी दी थी. यह एसएलपी 27 अक्टूबर 2020 को नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी.

तो क्या इसलिए वापस लिया फैसला

त्रिवेंद्र रावत और पुष्कर धामी के बीच लगातार राजनीतिक खींचतान की बातें सामने आती रही हैं. सीएम पुष्कर धामी के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार पर राजद्रोह का मुकदमा चलाने के विरुद्ध एसएलपी वापस लेने के फैसले ने राजनैतिक चर्चा गरमा दी थी. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत इन दिनों दिल्ली में हैं. ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि केंद्र के दबाव के बाद यह फैसला लिया गया है. 

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HC ने सीबीआई जांच के दिए थे आदेश

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ गंभीर आरोपों को देखते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. कोर्ट ने यह आदेश उमेश शर्मा व अन्य के खिलाफ राजद्रोह मामले में सुनवाई के बाद दिया था. कोर्ट ने पत्रकार के खिलाफ चल रहे राजद्रोह के मामले को रद्द कर दिया था. 

हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस रवींद्र मैठाणी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर एक पत्रकार द्वारा लगाए गए रिश्वत के आरोपों की जांच के आदेश दिए थे.कोर्ट ने कहा था सीएम रावत पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई करेगी. साथ ही पत्रकार उमेश शर्मा व अन्य के खिलाफ राजद्रोह मामले में राज्य सरकार द्वारा दर्ज FIR समाप्त करने के आदेश दिए थे.

जस्टिस रवींद्र मैठाणी की एकल जज पीठ के फैसले में साफ लिखा था कि इस याचिका में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं. राज्य के हित में भी यही होगा कि इस बारे में सच्चाई सबके सामने आए. सीबीआई मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू करे, ताकि आरोपों की जांच करके सच्चाई की तह तक पहुंचा जा सके. जांच होगी तभी आरोपों की सच्चाई सामने आ सकेगी.

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अध्यक्ष पद पर लूस लेकर नियुक्ति का आरोप

पत्रकार उमेश शर्मा ने आरोप लगाया था कि 2016 में झारखंड के  'गौ सेवा आयोग' के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति को लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने घूस ली थी. तब त्रिवेंद्र रावत बीजेपी के झारखंड प्रभारी थे.उन्होंने यह भी दावा किया था कि घूस की रकम उनके  रिश्तेदारों के खातों में ट्रांसफर की गई थी.

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