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घर के गहने गिरवी रख डाले ताकि उनसे मिले रुपयों से बेटे के पास उत्तरकाशी पहुंच सकूं... ये अल्फाज़ हैं उस पिता के जिनका बेटा 17 दिनों तक सिल्क्यारा सुरंग में फंसा था. लेकिन अब जब बेटा सुकुशल बाहर आ गया है तो पिता को कोई अफसोस नहीं है कि उनका इस दौरान कितना खर्च हो गया. उन्हें खुशी है कि उनका बेटा सुरक्षित है. दरअसल, यहां 12 नवंबर से 41 मजदूर फंसे हुए थे. मंगलवार शाम को इन सभी मजदूरों को एक-एक कर बाहर निकाला गया.
सभी मजदूर सुरक्षित हैं और चिन्यालीसौड़ के कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में इन्हें डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है. इन मजदूरों के बाहर आते ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने माला पहनाकर इनका स्वागत किया. वहीं, 17 दिन से अपनों के बाहर आने का इंतजार कर रहे परिजनों की आंखों में खुशी के आंसूं आ गए.
सिलक्यारा टनल में उत्तराखंड के 2, हिमाचल प्रदेश का 1, यूपी के 8, बिहार के 5, पश्चिम बंगाल के 3, असम के 2, झारखंड के 15 और ओडिशा के 5 मजदूर फंसे थे. झारखंड से आए एक शख्स ने बताया कि उनका बेटा भी इस सुरंग में फंसा था. लेकिन अब जब वो बाहर सुरक्षित आ गया है कि तो इससे ज्यादा खुशी की बात उनके लिए क्या हो सकती है?
यूपी के लखीमपुर से आए मजदूर मनजीत के पिता चौधरी ने बताया कि उनका एक बड़ा बेटा कुछ साल पहले मुबंई में एक सड़क हादसे में मारा गया था. जिसके बाद बहू अपने गहने उन्हें वापस देकर मायके चली गई थी. सुरंग में जो फंसा था वो उनका छोटा बेटा है. जब उन्हें पता चला कि उनका बेटा उत्तरकाशी में सुरंग में फंस गया है तो उनके होश उड़ गए. पूरा परिवार टेंशन में आ गया. उन्होंने कहा, ''मैंने बिना देर किए बेटे के पास जाने का प्लान बनाया. लेकिन आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के कारण इतने रुपये नहीं थे कि वे लखीमपुर खीरी से उत्तरकाशी जा सकें. फिर मैंने दिवंगत बेटे की पत्नी के उन गहनों को बेच दिया जिन्हें वो छोड़ गई थी. इसके बदले मुझे 9 हजार रुपये मिले. फिर मैंने उत्तरकाशी का टिकट करवाया और सिलक्यारा पहुंच गया.''
'मेरे पास बस 290 रुपये ही बचे हैं'
उन्होंने बताया, ''मैंने जैसे-तैसे इन रुपयों से यहां काम चलाया. बस रोज इंतजार करता था कि कब मेरा बेटा सुरक्षित बाहर आएगा. अब जब बेटा बाहर आ गया है तो मुझे बहुत ही ज्यादा खुशी है. 9 हजार लेकर मैं यहां आया था. अब मेरे पास सिर्फ 290 रुपये बचे हैं. लेकिन मुझे कोई अफसोस नहीं है कि मैंने गहने बेच दिए क्योंकि मेरा बेटा मुझे सुरक्षित वापस मिल गया है. फिलहाल बेटा अस्पताल में है. उसके ठीक होने के बाद हम ऋषिकेष जाएंगे और गंगा नदी में स्नान करेंगे.''
वहीं, मनजीत की मां ने बताया कि जैसे ही उन्हें पता चला कि उनका बेटा सकुशल सुरंग से बाहर निकल आया है तो घर में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. पटाखे जलाए गए. मनजीन की मां बोलीं, ''हम लोगों ने तो असल में अब जाकर दीवाली मनाई है. जब से पता चला था कि मनजीत सुरंग में फंस गया है, तब से हम लोग न तो ठीक से खा पा रहे थे और ही सो पा रहे थे. 17 दिन तक हमने रो-रोकर दिन गुजारे. देवी-देवताओं से प्रार्थना करते रहते थे कि वे हमारे बेटे की रक्षा करें. बेटा सुरक्षित बाहर निकल आया तो हमने राहत की सांस ली है. हम उत्तराखंड की सरकार और सभी रेस्क्यू टीमों का धन्यवाद करते हैं.''
7:47 बजे निकला पहला मजदूर
बता दें, इन मजदूरों को निकालने की खुशखबरी देश को मंगलवार को दिन में ही मिल गई, कि किसी भी पल मजदूर बाहर आ सकते हैं. लेकिन ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा होने में देर शाम हो गई. और शाम 7.47 बजे पहला मजदूर निकाला. रात 7.55 बजे 5 मजदूर निकाले गए. रात 8.05 बजे 9 मजदूर निकाले गए. रात 8.17 बजे 22 मजदूर निकाले.
रात 8.27 बजे 33 मजदूर निकाले. रात 8.36 बजे सभी 41 मजदूर निकाले गए. सुरंग से मजदूरों के बाहर निकलने की पहली तस्वीर रात 8.01 बजे सामने आई. मजदूरों को सुरंग से बाहर लाने का वीडियो भी रात 8.05 बजे सामने आया. इस रेस्क्यू ऑपरेशन में बीते 17 दिनों से सैकड़ों लोग लगे हुए थे.
कौन-कौन थे रेस्क्यू हीरोज?
यह ऑपरेशन बेहद मुश्किल भरा रहा. सरकारों और तमाम बचावकर्मियों को इस सफलता को पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है.रेस्क्यू ऑपरेशन में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ, आरवीएनएल, एसजेवीएनएल, ओएनजीसी, आईटीबीपी, एनएचएआईडीसीएल, टीएचडीसी, उत्तराखंड राज्य शासन, जिला प्रशासन, भारतीय थल सेना, वायुसेना समेत तमाम संगठनों, अधिकारियों और कर्मचारियों की अहम भूमिका रही. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात में सफल ऑपरेशन की सराहना करते हुए देश का नेतृत्व किया.