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उत्तराखंड में तबाही की दर्दनाक तस्वीर, अब तक 150 लोगों की मौत, अपनों को तलाश रहे लोग

उत्तराखंड में जो तबाही आई, उसने पूरे राज्य की सूरत ही बिगाड़ कर रख दी. ऐसी आफत आई कि पूरा केदारनाथ बर्बाद हो गया. जो भूमि कल तक आस्था के लिए मशहूर थी आज मरघट बनकर बर्बाद हो गई है.

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उत्तराखंड
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उत्तराखंड में जो तबाही आई, उसने पूरे राज्य की सूरत ही बिगाड़ कर रख दी. ऐसी आफत आई कि पूरा केदारनाथ बर्बाद हो गया. जो भूमि कल तक आस्था के लिए मशहूर थी आज मरघट बनकर बर्बाद हो गई है.

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बस तबाही, तबाही और तबाही. देवभूमि केदारनाथ में कुदरत का ऐसा कहर बरपा कि पूरा का पूरा शहर श्मशान बन गया. खूबसूरत पहाड़ों के बीच बसी देवभूमि अब मलबे में तब्दील हो चुकी है. सेना लगी हुई है. आसमान से भी राहत का काम चल रहा है. लेकिन तस्वीरें खुद बयां करती हैं कि कैसे लहरों के तांडव ने केदारनाथ को बर्बाद कर दिया. चारों तरफ आबादी के निशां भर बाकी हैं, सबकुछ बहती धारा और आसमान से गिरती आफत का शिकार हो चुका है.

जो लोग तीर्थ के लिए आए थे, उनमें से कई काल के ग्रास हो गए. जाने कहां से वो आफत आई, और सबकुछ बहाकर ले गई. जो बचे हैं, वो चाहे तो मलबों में फंसे हैं या फिर स्ट्रेचर पर पड़े जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. सेना के जवान दिन-रात बचाव और राहत काम में लगे हुए हैं. लेकिन, इलाके की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि राहत में भी भारी दिक्कतें हो रही हैं. सड़कें खत्म हो चुकी हैं. लोग पेड़ों पर चढ़कर राहत का रास्ता ढूंढ रहे हैं. लोग आंखों देखा हाल सुना रहे हैं. उस तबाही का मंजर बयां कर रहे हैं. लेकिन, प्रशासन का दावा है कि केदारनाथ को साफ करा लिया गया है. हालांकि केदारनाथ यात्रा फिर कब शुरू होगी, ये अभी बड़ा सवाल ही है.

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पीएम ने की राहत पैकेज की घोषणा
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बाढ़ से प्रभावित उत्तराखंड में राहत एवं पुनर्वास के लिए 1,000 करोड़ रुपये दिए जाने की घोषणा की. उन्‍होंने कहा कि बाढ़ प्रभावित उत्तराखंड को 145 करोड़ रुपये तुरंत दिए जाएंगे. बाढ़ प्रभावित उत्तराखंड का हवाई सर्वेक्षण करने के बाद मनमोहन सिंह ने कहा, 'मैंने और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जो देखा वह बहुत तकलीफदेह था. मरनेवाले लोगों के परिजनों को 2 लाख रुपये के मुआवजे का भी ऐलान किया गया.

कुछ नहीं बचा केदारनाथ में
बेजार, बेहाल देवभूमि केदारनाथ में अब कुछ नहीं बचा है. मंजर है बर्बादी का. बचाव में लगी सेना और सेना के हेलीकॉप्टर ढूंढ रहे हैं जिंदगी के निशां. लेकिन, मरघट में तब्दील हुए इस मंदिर के इलाके में मौत के सन्नाटे और खौफ के सिवा अब कुछ नहीं. उत्तराखंड में जारी विनाशलीला को तीन दिन गुज़र चुके हैं. जो कुदरत के कहर से किसी तरह बच भी गए, उनके सामने दूसरी समस्याएं खड़ी हैं. पहाड़ों पर बारिश तो थमी हुई है लेकिन सैलाब अब नदियों के रास्ते तबाही के नए निशान छोड़ रहा है.

बेहाल हुआ देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग में फैली आफत
बर्बाद हुआ पिथौरागढ़, काली नदी बन गई काल, बेहाल हुआ देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग में फैली आफत, उत्तरकाशी में मचा कोहराम. खूबसूरत पहाड़ियों के बीच बसे इस खूबसूरत राज्य की तस्वीर इतनी खौफनाक भी बन सकती है, कभी किसी ने सोचा नहीं था. आसमान से ऐसी आफत बरसी कि जमीन पर सबकुछ जमींदोज हो गया. लोग आए थे यहां की खूबसूरती देखने. कुछ लोग आए थे तीर्थ यात्रा के लिए. लेकिन ना भक्ति मिली और ना ही खूबसूरत एहसास बाकी है. कई लोग मौत के उस शिकंजे में फंस गए और जो बचे वो उस मंजर को यादकर सहम जाते हैं.

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टिहरी से लेकर यमुनोत्री तक सबका हाल बुरा है. देहरादून से लेकर हरिद्वार तक के अस्पताल मरीजों से भरे पड़े हैं. राहत के काम में भी भारी दिक्कत हो रही थी. अब बारिश थमने के बाद बचाव में थोड़ी तेजी आई है. लेकिन जो लोग इस प्रलय के शिकार हो गए, वो तो बस यादों में ही रह गए.

पहाड़ से लौटे पर्यटकों ने सुनाई कुदरत के कहर की दास्तां
भारी बारिश के बाद उफनाई नदियों के तांडव में फंसे और किसी तरह जान बचा कर लौटे आकाश और उसके तीन दोस्तों ने उत्तराखंड में हुई तबाही का आंखों देखा हाल बताया. उनकी कार नदी के तेज बहाव में फंस कर बह गई और वे असहाय रह गए. हरिद्वार लौटने के बाद उन लोगों ने बताया कि एक निजी हेलीपैड पर शरण लेकर वे प्रकृति के कहर का शिकार होने से बच गए. चारों मित्र महसूस करते हैं कि उन्हें नया जीवन मिला है.

उत्तराखंड में 150 से ज्यादा जिंदगियों को लील लेने वाली विध्वंसकारी बाढ़ को देख कर एक समय तो उनलोगों ने जीने की उम्मीद ही छोड़ दी थी. उत्तराखंड में तबाही का सबसे ज्यादा शिकार हुए केदारनाथ की यात्रा पर लखनऊ से गए दल में शामिल एक अन्य जीवित बचे व्यक्ति ने बताया, 'हमने घरों और होटलों को इस तरह ध्वस्त होते देखा जैसे वे कार्डबोर्ड के बने हों.'

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पिछले सप्ताह भारी बारिश, भूस्खलन और बादल फटने की घटना के बाद मची तबाही के बाद अधिकारियों ने राहत और बचाव के काम में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और सेना की भी मदद ली. वहां से बच कर लौटे हर किसी ने डरावनी दास्तान सुनाई. लौटने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि किस तरह उनके दल से आगे चल रही एक लड़की अचानक पानी के तेज बहाव की चपेट में आकर बह गई. सोनप्रयाग के समीप 100 से ज्यादा लोग जिनमें अधिकांशत: तीर्थयात्री शामिल हैं, अभी तक फंसे हुए हैं.

नक्‍शे से गायब हुई सड़कें
शैलेंद्र प्रकाश सिंह नाम के एक यात्री ने बताया कि तबाही का आलम यह था कि उनके पास सिर्फ बदन पर कपड़े ही बचे हैं. इसके अलावा जो कुछ था वह सब जाता रहा. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष रामपति राम त्रिपाठी उत्तरकाशी स्थित गढ़वाल पर्यटन अतिथिगृह में फंसे हुए हैं. उन्हें वहां से निकालने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने अपने पार्टी सहयोगियों को बताया कि गंगोत्री से लौटने के क्रम में वे 15 जून से ही फंसे पड़े हैं. उनके मुताबिक सभी प्रमुख सड़कें नक्शे से गायब हैं. उन्होंने फोन पर शिकायत की है, 'हमारी सहायता के लिए कोई भी नहीं आया है. न तो बिजली है न खाने के लिए कुछ है. हमें बस यहां ठहरने की जगह मिली हुई है.' विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि लखनऊ से 20 लोग और उत्तर प्रदेश से 30 परिवार उत्तराखंड में आई आफत में फंसे हुए हैं. कुछ लोग सौभाग्यशाली रहे जिन्होंने मोबाइल फोन का नेटवर्क खत्म होने से पहले अपने परिवार को अपनी स्थिति की सूचना दे दी.

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इस बीच उत्तराखंड सरकार ने बुधवार को पुष्टि की कि तेज बहाव में बह गए दो पुलिसकर्मियों और आईटीबीपी के तीन जवानों के शव मिल गए हैं. पुलिस महानिदेशक सत्यव्रत ने कहा कि पुलिस बल के कुछ और लोग मारे गए हो सकते हैं. उन्होंने बताया, 'रामबादा अस्थायी पुलिस चौकी में पदस्थापित पुलिसकर्मियों का अभी तक पता नहीं चल पा रहा है और हमें यह जानकारी नहीं कि उनके साथ क्या हुआ.' रामबादा केदारनाथ के मार्ग में अवस्थित है. उत्तरकाशी और रूद्रप्रयास के लौटकर आने वाले लोगों की देखरेख में कई निजी कंपनियां और हरिद्वार के गायत्री परिवार जैसे सामाजिक संगठन जुटे हुए हैं.

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