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चमोली आपदा के रेस्क्यू ऑपरेशन में 'बेजुबान सैनिक' बने SDRF की ताकत

चमोली में आई भीषण आपदा के बाद राहत और बचाव कार्य का आज दूसरा दिन है. तपोवन की टनल में फंसे सभी लोगों को निकालने के लिए राहत बचाव कार्य शुरू कर दिया गया है.

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रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी एसडीआरएफ की डॉग स्क्वायड टीम
रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी एसडीआरएफ की डॉग स्क्वायड टीम
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चमोली में ग्लेशियर टूटने के बाद त्रासदी
  • दूसरे दिन भी जारी है राहत व बचाव कार्य

चमोली में आई भीषण आपदा के बाद राहत और बचाव कार्य का आज दूसरा दिन है. तपोवन की टनल में फंसे के सभी लोगों को निकालने के लिए राहत बचाव कार्य शुरू कर दिया गया है. इसके साथ ही तपोवन से आगे रैणी गांव में भी ऑपरेशन तेज कर दिया गया है. रैणी गांव में ही सैलाब के कहर की शुरुआत हुई थी.

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रैणी स्थित ऋषि गंगा हाइड्रो प्रोजेक्ट पूरी तरह तबाह हो गया. बड़ी बड़ी जेसीबी मशीनें रैणी गांव में मलबा हटाने का काम कर रही हैं. इस काम में आइटीबीपी, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, बीआरओ, उत्तराखंड पुलिस साझा ऑपरेशन चला रही है. मलबे में फंसे जिंदा या मृत को निकालने का काम जारी है.
 
जहां बड़ी-बड़ी मशीनें काम नहीं आ रही हैं, वहां एसडीआरएफ के फौजी कुत्ते मिशन में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. एसडीआरएफ के खोजी कुत्तों की एक टुकड़ी तपोवन में रेस्क्यू ऑपरेशन कर रही है तो दूसरी टुकड़ी के खोजी कुत्ते रैणी गांव में मिशन पर है. स्ट्राइकर और डस्टिन (खोजी कुत्ते) का काम इस इलाके में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ग्लेशियर से टूट कर आया सारा मलबा ऋषि गंगा हाइड्रो प्रोजेक्ट को जमींदोज कर गया.

मलबा ज्यादा होने के चलते जेसीबी मशीनों से काम लिया जा रहा है, लेकिन एसडीआरएफ के खोजी कुत्ते सूंघकर यह पता लगा रहे हैं कि मलबे के नीचे कोई जिंदा या मृत व्यक्ति तो नहीं. एसडीआरएफ के कांस्टेबल शैलेंद्र मलिक इन खोजी कुत्तों के साथ ऑपरेशन चला रहे हैं.

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आज तक से बात करते हुए शैलेंद्र मलिक ने कहा कि जहां मशीन और इंसान काम नहीं आता वहां यह बेजुबान सबसे महत्वपूर्ण काम करते हैं, जो पता लगाते हैं कि वहां कोई जिंदा या मृत व्यक्ति दफन तो नहीं है. शैलेंद्र मलिक के मुताबिक, यह कुत्ते जहां किसी इंसान की मौजूदगी सुन पाते हैं, वहां खोदना शुरू कर देते हैं और इससे रेस्क्यू ऑपरेशन में काम कर रहे लोगों को पता चल जाता है कि यहां मलबे के नीचे कोई दबा हो सकता है.
 
मंगलवार की सुबह 11:00 बजे तक मलबे से 2 शव निकाले जा चुके थे, जो ऋषि गंगा हाइड्रो प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे. सैलाब और तबाही की विभीषिका को देखते हुए एसडीआरएफ के इंस्पेक्टर हरक सिंह राणा ने आजतक से बातचीत करते हुए यह अंदेशा जताया कि किसी के जिंदा बचने की संभावना कम है.

ड्रोन के जरिए मोबाइल सेवा शुरू करने की कोशिश
ड्रोन की तीसरी आंख का इस्तेमाल अब तक आपने सर्विलांस या मॉनिटरिंग के लिए ही देखा होगा, लेकिन ड्रोन का इस्तेमाल चमोली में मोबाइल सेवा को शुरू करने के लिए किया गया. मोबाइल कंपनी के कर्मचारियों ने उत्तराखंड के ड्रोन एप्लीकेशन और रिसर्च सेंटर की मदद से जो उनका इस्तेमाल करते हुए फिशिंग नेट वायर को ऋषि गंगा नदी के एक बार से दूसरी तरफ भेजा.

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ड्रोन के कैरियर में फिशिंग नेट को बांधकर रैणी गांव के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक नदी पार करके उड़ा कर भेजा गया. उसके बाद रस्सी से एक दूसरी रस्सी और फिर उस रस्सी के साथ ऑप्टिकल फाइबर केबल को नदी के एक तरफ से दूसरी तरफ भेजा गया.

दरअसल, रैणी गांव का दूसरा हिस्सा और कई गांव मुख्य चमोली जिले से पूरी तरह कट चुके हैं, ऐसे में गांव के दूसरे हिस्सों में मोबाइल सुविधाओं पर भी असर पड़ा है. घाटी चौड़ी है और दूसरे हिस्से तक पहुंच पाना मुश्किल था. ऐसे में ड्रोन ने वह कर दिखाया जो अद्भुत और अविस्मरणीय हो गया था.

 

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