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Pushkar Singh Dhami: उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी का राजतिलक, सीएम की कुर्सी पर बैठते ही रहेंगी ये चुनौतियां

Uttarakhand CM oath ceremony: पुष्कर सिंह धामी बुधवार को उत्तराखंड के 12वें सीएम के तौर पर शपथ लेंगे.मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के साथ ही पुष्कर सिंह धामी को अग्निपरीक्षा से होकर गुजरना होगा. उपचुनाव जीतने से लेकर वरिष्ठ नेताओं के साथ संतुलन बनाने और स्थिर सरकार देने जैसे कई चुनौतियों का सामना करना होगा.

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उत्तराखंड: पुष्कर सिंह धामी
उत्तराखंड: पुष्कर सिंह धामी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पुष्कर सिंह धामी दूसरी बार सीएम बनने जा रहे हैं
  • पुष्कर धामी को छह महीने में विधायक बनना होगा
  • केंद्रीय नेतृत्व के उम्मीदों पर कैसे खरे उतरेंगे धामी

उत्तराखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी आज शपथ लेने जा रहे हैं. देहरादून के परेड ग्राउंड में गवर्नर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (रिटायर्ड) उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाएंगे. पुष्कर धामी भले ही सत्ता की कमान संभालने जा रहे हैं, लेकिन उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के साथ ही धामी को विधायक बनने से लेकर चुनाव में किए गए वादों को पूरा करना और वरिष्ठ नेताओं के साथ संतुलन बनाने की चुनौतियां से सामना करना होगा? 

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छह महीने में विधायक बनना
पुष्कर सिंह धामी के सिर भले ही मुख्यमंत्री का ताज सजने जा रहा है, लेकिन छह महीने के भीतर उन्हें विधानसभा का सदस्य बनना होगा. पुष्कर धामी अपनी सीट खटीमा विधानसभा क्षेत्र से हारने के बावजूद एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर राजनीतिक बाजीगर साबित हुए हैं. ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के तहत उन्हें छह महीने के भीतर विधानसभा सदन की सदस्यता लेनी होगी. 

पुष्कर सिंह धामी के सामने सबसे पहली चुनौती उपचुनाव की होगी. मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के लिए उन्हें किसी भी सूरत में उपचुनाव जीतना होगा. वो किस सीट से चुनाव में उतरते हैं देखना होगा, लेकिन उनके लिए पांच विधायक पहले ही अपनी सीट छोड़ने का ऐलान कर चुके हैं. धामी को ऐसी सीट का चयन करना है, जहां उनकी चुनावी डगर आसान हो. 

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वरिष्ठ नेताओं के साथ संतुलन
मुख्यमंत्री के तौर पर धामी के सामने सबसे बड़ी चुनौती वरिष्ठ नेताओं के साथ संतुलन बनाने की चुनौती होगी. धामी के पहले छह महीने के कार्यकाल में कई वरिष्ठ नेताओं के साथ लेकर नहीं चल सके, जिसके चलते हरक सिंह रावत से लेकर यशपाल आर्य जैसे नेता पार्टी छोड़ दिए थे. इसके अलावा कई नेताओं की नाराजगी की बातें सामने आईं थी. धामी के दूसरे कार्यकाल में सत्ता में दायित्वों का बंटवारा सबसे बड़ा सिरदर्द है. 

सरकार बनने के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, विधायकों को साथ लेकर चलने के लिए धामी को अपना राजनीतिक कौशल दिखाना होगा, क्योंकि वरिष्ठ नेताओं के साथ दायित्वों का बंटवारा किसी चुनौती से कम नहीं है? सूबे में मदन कौशिक, त्रिवेंद्र सिंह रावत, भुवन चंद्र खंडूरी, सतपाल महाराज और रमेश पोखरियाल निशंक जैसे वरिष्ठ नेता हैं, जिनके साथ संतुलन बनाए रखना होगा. 

चुनावी वादों को पूरा करने की चुनौती
पुष्कर सिंह धामी के सत्ता संभालने के साथ ही चुनावी वादों को पूरा करने की चुनौती होगी. उत्तराखंड चुनाव के दौरान पार्टी ने तमाम बड़े वादे किए हैं, जिन्हें अमलीजामा पहनाने का जिम्मा धामी के कंधों पर होगा. लव जिहाद कानून को और कठोर बनाना, समान नागरिक संहिता, भू कानून, जनसंख्या नियंत्रण सरीखे वादों को भी पूरा करने का दबाव रहेगा. इसके अलावा किसानों के खाते में 12 हजार रुपये देने का वादा है. गरीब घरों को साल में 3 सिलेंडर निशुल्क और बीपीएल परिवार की महिलाओं को 2000 प्रतिमाह, गरीब बच्चों को 1 हज़ार प्रति माह देने जैसे लोकलुभाने वादे हैं. इन्हें सत्ता पर काबिज होते ही पूरा करने की चुनौती होगी? 

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नौकरशाही पर अंकुश
धामी मुख्यमंत्री की भूमिका में अपनी छोटी लेकिन तेजतर्रार पारी खेली है. धामी ने अपने पिछले छह महीने के कार्यकाल में नौकरशाही पर लगाम कसने की कोशिश की. उनकी एक कुशल प्रशासक की छवि बनी भी. अब पार्टी ने उन्हें पांच साल के लिए सत्ता की कमान सौंपी है. इन पांच साल में वह नौकरशाही पर अंकुश लगा पाएंगे, उनके लिए यह कम बड़ी चुनौती नहीं होगी. अफसरशाही को साधकर चलना भी हर सरकार के लिए चुनौती रहा है. उत्तराखंड में माना जाता रहा है कि नौकरशाही कभी सरकार के नियंत्रण में नहीं रही. पिछली सरकार में तमाम मंत्री अफसरों के सामने अपनी लाचारी की पीड़ा सार्वजनिक रूप से जाहिर करते रहे हैं. अफसरों को नियंत्रित रखना और उनमें पब्लिक सर्वेंट की भावना जागृत करना सीएम के लिए बड़ी चुनौती. ऐसे में देखना होगा कि धामी किस तरह से नौकरशाही पर अंकुश लगाते हैं? 

केंद्र की उम्मीदों पर खरा उतरना
बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने जिस तरह से पुष्कर सिंह धामी को चुनाव हारने के बावजूद सत्ता की कमान सौंपी है, उससे उनकी चुनौती और जिम्मेदारी बढ़ गई है. अब केंद्रीय नेतृत्व की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती होगी. पीएम नरेंद्र मोदी ऐलान कर चुके हैं कि अगला दशक उत्तराखंड का होगा. 2025 तक उत्तराखंड आदर्श राज्य होगा. मोदी के इस विजन को जमीन पर उतारने की चुनौती धामी के सामने है. इसके बाद शहरी निकाय चुनाव, फिर 2024 का लोकसभा चुनाव की चुनौती धामी के सामने होगी. पिछले दो लोकसभा चुनाव से बीजेपी क्लीन स्वीप कर रही है, जिसे 2024 में बरकरार रखना होगा. लोकसभा के लिए महज दो साल का ही वक्त धामी के सामने होगा. 

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पांच साल तक सीएम रहने की चुनौती
पुष्कर सिंह धामी दूसरी बार सत्ता की कमान संभालकर सियासी इतिहास रचने जा रहे हैं, लेकिन चुनौती पांच साल के सफर को तय करने की है. उत्तराखंड के 20 साल के इस सफर में प्रदेश को 11 मुख्यमंत्री मिले हैं और धामी 12वें सीएम. भाजपा ने सात मुख्यमंत्री दिए हैं, तो कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश को तीन मुख्यमंत्री दिए हैं. सूबे के सभी मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ कांग्रेस नारायण दत्त तिवारी ही अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए थे जबकि बीजेपी का कोई नेता पांच साल तक सीएम नहीं रहा सका. बीजेपी ने पिछले कार्यकाल में दो सीएम बदले हैं. ऐसे में बीजेपी को राज्य में एक स्थाई चेहरे की तलाश, जिसके क्या पुष्कर सिंह धामी पूरा कर पाएंगे. 

 

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