साल 2013 में केदारनाथ में आई आपदा में एक ओर जहां हजारों लोग अपनी जान बचाने के लिए जूझ रहे थे, वहीं राहत और बचाव में लगे अधिकारी भ्रष्टाचार के जरिये अपनी काली कमाई में मशगूल थे. एक आरटीआई आवेदन के जरिए यह खुलासा हुआ है. ऐसे संवेदनशील मामलों में भी भ्रष्टाचार की इस घटना से घिरी मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार ने मुख्य सचिव को जांच के आदेश दिए हैं.
केदारनाथ आपदा के बाद तब के सीएम विजय बहुगुणा को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी. 200 से अधिक पेजों के आरटीआई रिकॉर्ड से यह बात सामने आई है कि आपदा के बाद राहत और बचाव के दौरान एक ओर जहां लोग खुले आसमान के नीचे भूख से परेशान थे, वहीं बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित रूद्रप्रयाग जिले में अधिकारियों ने रोजाना 900 रुपये प्रति व्यक्ति सिर्फ खाने पर खर्च किया था.
आरटीआई से पता चला है कि लोगों को राहत पहुंचाने के लिए ड्यूटी पर तैनात अधिकारी चिकन-मटन और दूध-घी उड़ा रहे थे. इतना ही नहीं अधिकारियों ने इस दौरान होटल के जो कमरे किराए पर लिए थे, उनकी कीमत साढ़े 7 हजार रुपये दिखाई थी. आधे किलो दूध की कीमत 195 रुपये तक दिखाई गई थी.
उत्तराखंड के भीषण प्राकृतिक आपदा की चपेट में रहने के दौरान हुई इन कथित अनियमितताओं का संज्ञान लेते हुए राज्य के सूचना आयुक्त अनिल शर्मा ने सीबीआई जांच की सिफारिश की है. शिकायतकर्ता और नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस के सदस्य भूपेंद्र कुमार की शिकायत पर सुनवाई करते हुए जारी 12 पन्नों के आदेश में शर्मा ने आरटीआई आवेदनों के जवाब में विभिन्न जिलों द्वारा उपलब्ध कराए गए बिलों का संज्ञान लिया है.