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ऐसा कोई साल नहीं है जब उत्तराखंड आपदा की चपेट में न आता हो. इस साल तो अभी मॉनसून की महज शुरुआत ही हुई थी कि 17 जून को इस बरसात ने पिथौरागढ़ जिले को अपनी चपेट में ले लिया. पिथौरागढ़ के सुदूर कई गांव में असर दिखाई पड़ा जहां गौरी नदी का उफान अपने साथ घरों को लील गया तो लैंडस्लाइड के चलते पहाड़ किसी मिट्टी के टीले की तरह भरभरा कर गिरने लगे. राष्ट्रीय राजमार्ग भी पांच दिनों तक बाधित हो गया और लोग जहां-तहां फंस गए.
पिथौरागढ़ से मुंसियारी जाने वाला ऑल वेदर मो टेबल मार्ग भी त्रासदी का शिकार हो गया है. ब्रहम गांव से आगे ब्रिज का एक बड़ा हिस्सा मलबा बनकर नदी में चला गया तो पुल बंद हो जाने से आगे के लगभग 60 से 70 गांव मुख्य जिले और पूरे राज्य से कट चुके हैं. गौरी नदी अभी भी उफान पर है और ब्रिज के हिस्से को धीरे-धीरे काट रही है. मुख्य ब्रिज की सड़क धंसने लगी है.
मेतली गांव के पुष्कर सिंह हर आने-जाने वालों को वापस लौटा रहे हैं. पुष्कर सिंह का कहना है कि ऑल वेदर रोड बंद हो जाने से मुनस्यारी तक लगभग 60 से 70 गांव पूरी तरह पिथौरागढ़ और राज्य के दूसरे हिस्सों से कट चुके हैं. उनका कहना है कि लैंडस्लाइड और गौरी नदी का जलस्तर बढ़ने से आगे की तरफ कई गांव में खतरा मंडरा रहा है.
लुम्पी गांव के पास की तस्वीर और भी खौफनाक है. मुनस्यारी को जोड़ने वाली मुख्य सड़क का 500 मीटर से भी ज्यादा का हिस्सा गौरी नदी के प्रवाह में बह गया. नदी के किनारे बसे गांव प्रवाह की चपेट में आ गए हैं तो दूसरे किनारे का हिस्सा लैंडस्लाइड के खतरे से जूझ रहा है. लुम्पी गांव के रहने वाले मुन्ना हमें इस जगह तक ले कर आए. मुन्ना कहते हैं कि पिछले दो-तीन दिनों में बरसात तेज हो गई और नदी का पानी ज्यादा हो गया. इसके चलते पीछे गांव में कई सारे लोग जंगलों में जान बचाने के लिए भाग गए और दूसरी तरफ मलबा गिरने के चलते कई लोगों को वहां से निकालना पड़ा. मुन्ना कहते हैं कि लोगों को जल्दी से जल्दी गांव से निकालना जरूरी है.
पिथौरागढ़ के डीएम और एसपी सुखबीर सिंह भी मंगलवार की दोपहर इलाके का मुआयना करने पहुंचे. उन्होंने बताया कि प्रशासन की टीम मुआयना कर रही है और हेलीकॉप्टर की भी मदद ली जाएगी. सुखबीर सिंह के मुताबिक हेलीकॉप्टर ने बचाव कार्य की कोशिश की थी लेकिन मौसम खराब होने के चलते उसे दूसरे इलाकों में प्रभावित लोगों की मदद के लिए भेजा गया लेकिन प्रशासन की कोशिश होगी कि गांव में कोई भी भूखा ना सोए और खतरे में रहने वाले लोगों को नदी के किनारे से जल्दी-जल्दी निकाला जा सके.
मुनस्यारी के पास का इलाका सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है. लैंडस्लाइड की चपेट में आए लोगों को जिले के ब्रहम गांव के रिलीफ कैंप में लाया गया है. कमला देवी अपने परिवार और छोटे बच्चे के साथ इस राहत केंद्र में 18 जून से रह रही हैं. गुजारा करने के लिए जो सामान मौजूद था उसी से चल रहा है क्योंकि प्रशासन की ओर अब तक मदद नहीं पहुंची है. कमला देवी कहती हैं कि वो मंजर बहुत खतरनाक था जब उनके गांव लुम्पी में तेज बरसात के चलते गौरी नदी का स्तर बढ़ने लगा और पहाड़ खिसक कर गिरने लगे.
मोरीगांव के रहने वाले व्यास सिंह भी अपनी बेटी, बहू और पोते-पोतियों के साथ रिलीफ कैंप में चले आए हैं. व्यास सिंह कहते हैं कि पिछले साल भी हमारे गांव में आपदा आई थी और इस साल भी मुश्किल हुई है, लेकिन मदद हमारी कोई नहीं करता.
अब लोगों को इस बात की चिंता सता रही है कि उत्तराखंड में अभी मॉनसून की पहली लहर आई है, जबकि पूरा जुलाई और अगस्त का महीना बाकी है. प्रकृति अभी से ही अपना प्रकोप दिखा रही है तो न जाने आगे क्या होगा?