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त्रिवेंद्र सिंह रावत रचेंगे इतिहास या छोड़ेंगे कुर्सी? उत्तराखंड में बीजेपी का कोई CM 5 साल नहीं टिक सका

उत्तराखंड में बीजेपी के कई विधायकों की नाराजगी के चलते मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी पर संकट मंडराता नजर आ रहा है. हालांकि, वो अपने हाथों से सत्ता की कमान छोड़ेंगे कि नहीं यह तस्वीर साफ नहीं है. उत्तराखंड के सियासी इतिहास में नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर कांग्रेस और बीजेपी का कोई भी सीएम अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. 

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सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत
स्टोरी हाइलाइट्स
  • उत्तराखंड की बीजेपी सरकार में सियासी संकट गहराया
  • उत्तराखंड में बीजेपी का कोई सीएम पांच साल नहीं रहा
  • नारायण दत्त तिवारी पांच साल रहे उत्तराखंड के सीएम

उत्तराखंड में बीजेपी की सियासत एक बार फिर करवट ले रही है. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अचानक दिल्ली तलब कर प्रदेश की सियासी धड़कन बढ़ा दी है. बीजेपी के कई विधायकों की नाराजगी के चलते मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी पर संकट मंडराता नजर आ रहा है. हालांकि, वो अपने हाथों से सत्ता की कमान छोड़ेंगे कि नहीं, यह तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन उत्तराखंड के सियासी इतिहास में नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर कांग्रेस और बीजेपी का कोई भी सीएम अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है. 

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उत्तराखंड का सियासी मिजाज ही अस्थिरता वाला रहा है. राज्य की सत्ता में बीजेपी तीसरी बार विराजमान है, लेकिन पार्टी का एक भी सीएम पांच साल तक कुर्सी पर नहीं रह सका है. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी की सरकार के कार्यकाल में 2000 में उत्तराखंड राज्य के सपना साकार हुआ था. उत्तर प्रदेश से अलग होकर बने उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार बनी और दो साल में दो मुख्यमंत्री बने. 

उत्तरखंड के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर बीजेपी के नेता नित्यानंद स्वामी ने 9 नवम्बर 2000 को शपथ ली, लेकिन एक साल भी वो कुर्सी पर नहीं रह सके. नित्यानंद के खिलाफ बीजेपी नेताओं ने मोर्चा खोल दिया, जिसके बाद 29 अक्टूबर 2001 को उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. नित्यानंद के इस्तीफा देने के बाद बीजेपी ने अपने दिग्गज नेता भगत सिंह कोश्यारी को विधायक दल का नेता चुना. 

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भगत सिंह कोश्यारी ने नित्यानंद के इस्तीफा देने के दूसरे दिन 30 अक्टूबर 2001 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. वो सीएम की कुर्सी पर 1 मार्च 2002 तक ही रह सके. उत्तराखंड में साल 2002 के विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें बीजेपी कोश्यारी के अगुवाई में चुनाव लड़ी थी. यह चुनाव बीजेपी के लिए मंहगा पड़ा और पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा और कांग्रेस के हाथ सत्ता की कमान लगी. इस तरह से भगत सिंह कोश्यारी महज 123 दिन ही मुख्यमंत्री के पद पर रह सके थे. 

साल 2002 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीतने के बाद नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया और उन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. साल 2002 से लेकर 2007 तक मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी मात मिली और बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई. इस तरह से नारायण दत्त तिवारी राज्य के एकलौते सीएम हैं, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है. 

साल 2007 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला. 2007 से 2012 के बीच यानी पांच साल के कार्यकाल में बीजेपी ने उत्तराखंड में तीन बार मुख्यमंत्री बदले. 2007 में सत्ता में वापसी आने के बाद बीजेपी ने 8 मार्च 2007 को भुवन चन्द्र खंडूरी को सीएम बनाया, लेकिन वह 23 जून 2009 तक ही इस पद रह सके. इसके बाद बीजेपी ने खंडूरी की जगह रमेश पोखरियाल निशंक को सत्ता की कमान सौंपी. 

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निशंक ने 24 जून 2009 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली, लेकिन चुनाव से ठीक चार महीने पहले उनकी कुर्सी चली गई. 10 सितम्बर 2011 को निंशक को बीजेपी ने हटाकर भुवन चन्द्र खंडूरी को दोबारा से सीएम बना दिया, लेकिन साल 2012 के चुनाव में सत्ता में वो पार्टी की वापसी नहीं करा सके. इस तरह कांग्रेस के हाथों बीजेपी को मिली हार के बाद खंडूरी को 13 मार्च 2012 को कुर्सी छोड़नी पड़ गई.

2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई, लेकिन पांच साल के कार्यकाल में दो सीएम बदलने पड़ गए. सबसे पहले कांग्रेस ने 13 मार्च 2012 को विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन दो साल के बाद ही उन्हें पार्टी ने हटा दिया और हरीश रावत के हाथ सत्ता की कमान लगी. हरीश रावत ने 1 फरवरी 2014 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन वो अपनों से ही जूझते रहे. 

साल 2016 में कांग्रेस विधायकों के बागवत के चलते राष्ट्रपति शासन लगा, जिसके चलते उनकी कुर्सी चली गई. इसके बाद कोर्ट से राहत मिली और दोबारा से सत्ता पर काबिज हुए. इसके बाद 2017 के चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी के हाथों करारी हार मिली, जिसके बाद रावत को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. 

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साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला तो सत्ता की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को मिली. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 18 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली, जिसके बाद से वह अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं. त्रिवेंद्र बीजेपी में सबसे लंबे समय तक सीएम की कुर्सी पर रहने वाले नेताओं में शामिल हैं, लेकिन चार साल के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ पार्टी और विधानमंडल दल में बगावत से संकट गहरा गया है. ऐसे में बीजेपी ने पर्यवेक्षक के रूप में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को देहरादून पहुंचकर रायशुमारी करने के लिए भेजा था, जिसके बाद से ही सीएम बदलने की चर्चा तेज हो गई हैं. 

सीएम की रेस में ये नाम
उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री की रेस में राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी, नैनीताल से लोकसभा सांसद अजय भट्ट और मंत्री सतपाल महाराज का नाम आगे चल रहा है. तीनों में से किसी एक नेता के नाम पर बीजेपी राज्य में अगला विधानसभा चुनाव लड़ सकती है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम की कुर्सी से हटाती है या फिर वो पांच साल का कार्यकाल पूरा कर बीजेपी में इतिहास रचेंगे. 


 

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