उत्तराखंड (Uttarakhand Rains) में पिछले दिनों बारिश ने भारी तबाही मचाई है, जिसमें अबतक 54 लोगों की मौत हो चुकी है. नैनीताल शहर बारिश से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा. वहां नैनी झील ने तल्लीताल को डुबो दिया था और मॉल रोड पर जहां आम दिनों में पैर रखने की जगह नहीं होती वहां नावें तैर रही थीं.
उत्तराखंड में हालात ऐसे थे कि अलग-अलग इलाकों में लोग फंस गए थे. होटलों के पार्किंग एरिया में खड़ी गाड़ियां पानी में मानों तैर रही थीं. फिर लैंडस्लाइड ने लोगों की दिक्कतों को और बढ़ा दिया था. कई सड़कें बंद हो गई थी. चारधाम की यात्रा को भी रोकना पड़ा था, जिसे अब फिर से शुरू किया गया है. स्थिति इतनी क्यों बिगड़ी इसकी अब कई वजहें सामने आ रही हैं.
सामने आए वीडियोज में साफ दिख रहा है कि झील से निकासी वाले दोनों गेट बंद हैं. कंट्रोल रूम में भी पानी भर गया था और ऑफिस से सभी कर्मचारी नदारद थे. यह भी देखने को मिला कि मशीन ऑटोमोड से हटाकर मैन्युअल कर दी गई थी. कई ऐसे पुराने वीडियोज भी हैं जिसमें ऑटोमेटिक तरह से गेट खुलते दिख रहे हैं जिससे पानी आसानी से निकल जाता है.
अन्य वजह यह भी मानी जा रही है कि झील में काफी बड़ी मात्रा में सिल्ट (मलबा) भर गया है, जिससे यहां पानी थमने की क्षमता बहुत कम रह गई है. बताया गया है कि पिछले 8 सालों से वहां से मलबा नहीं निकाला गया है. दरअसल, झील के चारों तरफ 60 नाले हैं. लोग निर्माण का सारा मलबा नाले में गिरा देते हैं वह बरसात में सीधा झील में आता है. वहीं एक वजह नैनीताल के चारों तरफ बनी 79 किलोमीटर की रोड का CC का होना भी है. पहले इन कच्ची सड़कों में पानी रिस जाता था और पानी झील में नहीं जाता था. लेकिन अब सारा पानी झील में जाता है.
झील की गहराई हो रही कम
1985 में पाषाण देवी मंदिर के पास नैनी झील की गहराई 27 मीटर थी ठीक उसी पॉइंट पर 2020 में गहराई सिर्फ 17 मीटर थी. वैज्ञानिकों ने अपनी राय दी है कि आने वाले समय में झील से पानी निकासी के लिए गेटों की संख्या को बढ़ाना चाहिए, जो कि अभी सिर्फ दो हैं.
मौसम पर निर्भर प्राकृतिक झील है नैनी झील
नैनी झील को पूरी तरह मौसम पर निर्भर प्राकृतिक झील माना जाता है. इसमें मौसम के हिसाब से पानी घटता, बढ़ता रहता है. वैज्ञानिक भाषा में इसे (Intermittent Drainage Lake) यानी आंतरायिक जल निकास प्रणाली वाली झील कहते हैं.
पानी की निकासी की बात करें तो सर्वाधिक 56 फीसदी पानी तल्लीताल निकासी गेट से बाहर निकलता है, 26 फीसदी पानी पंपों की मदद से पेयजल आपूर्ति के लिये निकाला जाता है, 10 फीसद पानी झील के अंदर से बाहरी जल साधनों की तरफ रिस जाता है. जबकि शेष आठ फीसदी पानी सूरज की गरमी से वाष्पीकृत होकर नष्ट होता है. नैनी झील का कुल क्षेत्रफल 44.838 हैक्टेयर यानी आधे वर्ग किमी से भी कम है.
अंग्रेजी दौर में तल्लीताल में झील के सिरे पर गेट लगाकर झील के पानी को नियंत्रित करने का प्रबंध हुआ था. इसे स्थानीय तौर पर डांठ कहा जाता है. गेट कब खोले जाऐंगे, इसका बकायदा कलेंडर बना, जिसका आज भी पालन किया जाता है. इसके अनुसार जून में 7.5, जुलाई में 8.5, सितंबर में 11 तथा 15 अक्टूबर तक 12 फीट जल स्तर होने पर ही गेट खोले जाते हैं. नैनी झील के गेट खुलते हैं तो इससे झील की एक तरह से ‘फ्लशिंग’ हो जाती है.
नैनीताल में मानसून में भारी बारिश होती है. 1880 के जल प्रलय के बाद जल निकासी के लिए झील के निचले भाग में अंग्रेज इंजीनियरों ने मजबूत जल फाटक (डांठ) लगाये थे जो डेढ़ सदी तक जल जमाव से इस शहर को बचाते रहे. लेकिन 80 के दशक में पुनर्निमाण कर नैनीताल में डांठ के ऊपर बस अड्डा बनाकर नीचे नाले की जगह पाइप डाल दिए गए, जो जल की सामयिक निकासी में फेल हुए, परिणाम प्रलय के रूप में सबके सामने है.
कुमाऊं में सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन जियोलॉजी विभाग के भूवैज्ञानिक प्रोफेसर बहादुर सिंह कोटलिया कहते हैं कि सीमेंटेड रोड (पक्की सड़क) ही इसकी प्रमुख वजह है. उन्होंने आगे कहा कि ब्रिटिश इंजीनियर्स ने बलिया नाले की तरफ झील के पानी निकासी वाले कुल पांच गेट बनाए थे, सभी मैनुअल थे. लेकिन अब इनकी संख्या दो कर दी गई है. प्रोफेसर बहादुर सिंह कोटलिया ने आगे बताया है कि इस बार 600 मिलीमीटर बरसात हुई. ऐसे में 3 दिन में झील को तो ओवरफ्लो होना ही था. उस ओवरफ्लो पानी को बाहर निकालने के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करना चाहिए. क्योंकि पुराने पैसेज को मोडिफाई करके और कम कर दिया गया है. प्रोफेसर ने कहा कि पानी को पैसेज के माध्यम से बाहर निकलना चाहिए ना कि पाइप के माध्यम से.
नाराज होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश शाह ने कहा कि ब्रिटिश काल में झील के 7 गेट हुआ करते थे और अब इन्हें कम करके दो कर दिया गया है, और वे भी बंद थे.
प्रोफेसर ने भी माना कि झील से पानी निकासी के लिए गेटों की संख्या को बढ़ाना चाहिए, साथ ही पैसेज को बढ़ाना चाहिए, चौड़ा करना चाहिए ना कि उसको पतला किया जाए. उन्होंने गेट के हाइड्रोलिक सिस्टम पर भी सवाल खड़े किए.
सिंचाई विभाग ने कहा - उम्मीद से ज्यादा हुई बरसात
दूसरी तरफ सिंचाई विभाग के एग्जिक्यूटिव इंजिनियर के एस चौहान ने सफाई में कहा है कि जो नया सिस्टम लगाया गया है उसका रोल केवल पानी को डिस्चार्ज करने का है, जिसमें गेट ऑटोमेटिक तरीके से खुल जाते हैं. उन्होंने कहा कि उम्मीद से ज्यादा बारिश हुई, इसमें बहुत कम समय में बहुत ज्यादा पानी बरस गया और निकासी का सिस्टम उसके साथ मैच नहीं कर पाया, जिससे बाढ़ जैसे हालात बने.