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उत्तराखंड आपदा के 9 साल बाद विश्व प्रसिद्ध सिद्धपीठ धारी देवी मूल स्थान में विराजमान

विश्व प्रसिद्ध सिद्धपीठ धारी देवी 16-17 जून 2013 की आपदा के नौ वर्षों बाद अस्थायी परिसर से स्थायी परिसर में विराजमान हो गयी हैं. मां का पौराणिक मंदिर 2013 की आपदा में श्रीनगर जल विद्युत परियोजना में जलमग्न हो गया था. पर मां धारी को काली रूप में पूजा जाता है. देवी को उत्तराखंड के चारों धामों का क्षेत्र रक्षक भी माना जाता है.

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धारी देवी
धारी देवी

बद्रीनाथ हाईवे के निकट श्रीनगर से लगभग 15 किमी दूर कालियासोड में विश्व प्रसिद्ध सिद्धपीठ धारी देवी 16-17 जून 2013 की आपदा के नौ वर्षों बाद अस्थायी परिसर से स्थायी परिसर में विराजमान हो गयी हैं. मां धारी का नया मंदिर मूल स्थान से अलकनंदा नदी के ऊपर बनाया गया है. मां का पौराणिक मंदिर 2013 की आपदा में श्रीनगर जल विद्युत परियोजना में जलमग्न हो गया था. शनिवार को मंदिर में दर्शन करने के लिए भारी संख्या में भक्त पहुंचे. मंदिर को भव्य तरीके से सजाया भी गया था.

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मां धारी को काली रूप में पूजा जाता है
कालियासोड में सिद्धपीठ मां धारी का मंदिर स्थित है. यहां पर मां धारी को काली रूप में पूजा जाता है. देवी को उत्तराखंड के चारों धामों का क्षेत्र रक्षक भी माना जाता है. 16-17 जून 2013 की आपदा से पहले मां धारी देवी का पौराणिक मंदिर अलकनंदा नदी किनारे स्थित था.

16 जून 2013 की आपदा के समय मंदिर नदी में डूब गया
श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के चलते नदी में झील बन गयी और 16 जून 2013 की आपदा के समय मंदिर नदी में डूब गया. इसके बाद आनन फानन में मंदिर को दूसरी जगह स्थापित किया गया. 

आपदा के नौ वर्षों बाद अब मां धारी का नया मंदिर बनकर तैयार हो गया है. हालांकि नया मंदिर पौराणिक मूल स्थान के ठीक ऊपर अलकनंदा नदी के ऊपर बनाया गया है. देवी को मूल स्थान पर विराजमान करने के लिए मंदिर समिति की और से लम्बी लड़ाई लड़ी गयी.

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आखिरकार अब नया मंदिर बनने के बाद देवी को नये मंदिर में विराजमान किया गया है. धारी देवी मंदिर समिति के सचिव और मंदिर के पुजारी जगदम्बा प्रसाद पांडये ने बताया की शनिवार को विधि विधान से मां धारी देवी को नये मंदिर में विराजमान किया गया है.
 

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