उत्तराखंड में पिछले महीने आई जलप्रलय ने कई लोगों की जान ले ली. सबके बारे में बात करना तो मुश्किल है, लेकिन 15 वर्षीय पूजा सिंह थियाल की कहानी ऐसी है, जिसे आपसे साझा करना जरूरी है. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के सेला गांव की रहने वाली पूजा भूस्खलन (लैंडस्लाइड) से 85 फुट गहरे गड्ढे में जा गिरी. सबने सोचा कि वह मर गई, लेकिन उसमें जान बाकी थी. सेना ने उसे वहां से निकाला और अस्पताल पहुंचाया. कई दिनों तक जिंदगी की जंग लड़ने के बाद पूजा ने दिल्ली के एम्स में दम तोड़ दिया.
उत्तराखंड में 17 जून की जलप्रलय से तो पूजा का गांव बच गया, लेकिन 7 जुलाई को जो हुआ, वह गांव के लिए ट्रेडजी बन गया. 7 जुलाई को गांव में भूस्खलन हो गया. लोग सुरक्षित जगह तलाशने लगे. पूजा और उसका परिवार भी बचने की कोशिश में था.
पूजा का परिवार तो सुरक्षित जगह पर पहुंच गया, लेकिन पूजा सिंह थियाल का पैर फिसला और वह 85 फुट गहरे गड्ढे में जा गिरी. जिन्होंने यह घटना देखी, उन्होंने मान लिया कि पूजा जिंदा नहीं रही. लेकिन तीन दिन बाद रेस्क्यू के लिए पहुंची सेना ने परिवार को बताया कि पूजा जिंदा है, मगर वह बुरी तरह घायल है. पूजा के पिता फल सिंह थियाल ने सेना को धन्यवाद देते हुए बताया कि आर्मी के लोग उसे पास के अस्पताल में ले गए थे.
पूजा को कई स्पाइनल इंजरी हुई थीं. पहले उसे धारचुला ले जाया गया फिर पिथौरागढ़ बेस अस्पताल पहुंचाया गया. लेकिन दोनों अस्पतालों ने उसका इलाज कर सकने में असमर्थता जताई. फिर उसे सेना के ही हेलीकॉप्टर से हलद्वानी अस्पताल ले जा गया गया. यहां के डॉक्टर्स ने भी जब कहा कि यहां उसका इलाज संभव नहीं है, तो पूजा को 19 जुलाई को एम्स के जय प्रकाश नारायण ट्रॉमा सेंटर के लिए रेफर कर दिया गया.
ट्रॉमा सेंटर के न्यूरोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. दीपक अग्रवाल ने बताया कि जब पूजा को यहां लाया गया था तो उसकी हालत बहुत गंभीर थी. उसकी गर्दन और स्पाइनल कॉर्ड में फ्रैक्चर था. चोटों की वजह से वह पैरालाइज हो गई थी. डॉक्टर्स ने बहुत कोशिश की, लेकिन पूजा को बचाया नहीं जा सका.
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि पूजा के स्पाइनल कॉर्ड की सर्जरी करने की योजना बना ली गई थी, लेकिन उसका घायल शरीर इसके लिए तैयार नहीं था.
पूजा के पिता फल सिंह थियाल ने कहा कि वे आर्मी के लोगों के आभारी हैं कि उन्होंने पूजा को बचाने की पूरी कोशिश की. लेकिन फल सिंह यह भी सोचते हैं कि यदि रेस्क्यू ऑपरेशन थोड़ा जल्दी किया गया होता तो शायद पूजा को बचाया जा सकता था.