बेरोजगारी आंदोलन की हुंकार धीरे- धीरे पूरे देश में फैलती जा रही है. सालों से चले आ रहे सरकारी सिस्टम के इस श्राप से देवभूमि उत्तराखंड भी पीछे नहीं है. पिछले साल दिसंबर में सामने आए एक सर्वे के अनुसार उत्तराखंड में बेरोजगारों की संख्या नौ लाख तक पहुंचने वाली है. इनमें तकरीबन 5.53 लाख पुरुष तो 3.45 लाख महिला बेरोजगार शामिल हैं.
हैरान करने वाली बात ये है कि सबसे अधिक बेरोजगार देहरादून में रजिस्टर हैं. आंकड़ों के अनुसार देहरादून में रजिस्टर महिला बेरोजगारों की संख्या पुरुष बेरोजगारों से अधिक है. यहां 94,582 महिला बेरोजगार और 88,364 पुरुष बेरोजगार रजिस्टर हैं.
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही जिम्मेदार-
बेरोजगारी के इस मसले को विपक्ष ने भराड़ीसैंण (गैरसैंण) में हुए पहले बजट सत्र में उठाया. हालांकि राज्य में बढ़े बेरोजगारी के आंकड़े के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही जिम्मेदार है. इसका नतीजा ये है कि आज यहां के युवा सरकारों से आस लगाकर हार चुके हैं, और सड़कों पर निराशा का प्रदर्शन कर अपनी हक की लड़ाई कर रहे हैं.
सचिवालय पर हल्ला बोल-
नतीजतन अस्थाई राजधानी देहरादून में सोमवार को उत्तराखंड बेरोजगार संघ के सैकड़ों युवाओं ने भारी तादात में राज्य की त्रिवेंद्र सरकार के खिलाफ महारैली निकाली. निराशा और इंतजार से भरे इन युवाओं की यह महारैली सचिवालय कूच करने वाली थी. हालांकि इससे पहले ही भारी पुलिस बल द्वारा प्रदर्शनकारियों को बेरिकेटिंग लगाकर रोक दिया गया, इस दौरान बेरोजगार संघ ने राज्य सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते हुए प्रदेश के युवाओं के खिलाफ अनदेखी का आरोप लगाया.
क्या है आरोप-
उत्तराखंड बेरोजगार संघ का आरोप है कि विभागों में खाली पड़े पदों पर सरकार कोई सुनवाई नहीं कर रही हैं, महीनों से जारी पदों की विज्ञप्ति पर कोई परीक्षाएं नहीं कराई जा रही हैं. सरकार रोजगार देने के नाम पर प्रदेश के शिक्षित युवाओं को ग़ुमराह कर रही है. जैसे कि राज्य की जनता को राजधानी के नाम पर लॉलीपॉप पकड़ाया जा रहा है. ऐसे में जिस तरह से युवा सड़कों पर उतर आए हैं उसको देखकर ये अंदाजा लगाना काफी है कि बेरोजगार युवा वर्ग अब हल्ला बोल चुका है.
2019 में आने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर इसे अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता, इसलिए अब त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनकी सरकार को वाकई गंभीरता से सोचने की जरूरत है और सही रास्ते अपनाकर कोई ना कोई हल निकालने की भी जरूरत है, क्योंकि युवा ही है जो देश की तकदीर बदलता है और उत्तराखंड के आने वाले चुनाव भी बहुत हद तक युवा वर्ग के ही हाथों में हैं जो लगातार फिसलता जा रहा है.
ये हैं बेरोजगार संघ प्रदर्शनकारियों की मांग-
-समूह- ग के खाली पड़े पद शीघ्र भरें जाएं, जारी की गई विज्ञप्तियों पर तत्काल परीक्षाएं करवाई जाएं
-पटवारी के खाली 1200 पद, 1500 वन आरक्षी के पद, 1500 पद पुलिस व आबकारी के पद की भर्ती प्रक्रिया पूरी की जाए.
-एलटी व प्रवक्ता के 7000 पद रिक्त हैं उन्हें 29 दिसंबर 2016 से पूर्व नियमावली के तहत बहाल किया जाए.
-प्रत्येक विद्यालय में योग शिक्षक के पद बहाल की जाएं
-बीएड, टीईटी-1 उत्तीर्ण योग्यता धारियों की प्राथमिकता शिक्षकों के रूप में नियुक्ति का निस्तारण 2019 तक किया जाए.
-पेयजल निगम व आयोग में इंजीनियरिंग के सभी पदों को जल्द से जल्द भरा जाए.
-डिप्लोमा फार्मेसी के पदों को तत्काल विज्ञप्ति जारी की जाए.
-राज्य लोक सेवा आयोग के परीक्षा में CSAT में केवल क्वालीफाई हो व राज्य लोकसेवा आयोग की परीक्षा UPSC के तर्ज पर हो.
-सहायक लेखाकार के पदों में 'O' लेवल की अनिवार्यता समाप्त की जाए.
आज बेरोजगारी की समस्या विकसित एवं अल्पविकसित दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं की प्रमुख समस्या बनती जा रही है. भारत जैसी अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में तो यह विस्फोटक रूप धारण किए हुए है. आने वाली पीढ़ियों के लिए घोर निराशा का कारण है क्योंकि देश में बेरोजगारी की इस खाई पर नए भारत और न्यू इंडिया की नींव नहीं रखी जा सकती.