उत्तराखंड जब से अस्तिव में आया है कि अब तक नेता विकास के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक कुर्सी के लिए ही आपस में लड़ते आ रहे हैं. फिर बात चाहे कांग्रेस शासन की हो या फिर भाजपा शासन की. मोदी लहर के बाद प्रचंड बहुमत में आई भाजपा की कमान उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्वम सेवक संघ के प्रचारक रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत के हाथों में आई है. मगर सत्ता की कुर्सी इतने बहुमत के बाद भी स्थिर नज़र नहीं आ रही है. बता दें कि संघ के करीबी त्रिवेंद्र के खिलाफ विरोध की आग लगातार भड़कती जा रही है.
बता दें कि कांग्रेस में सालों सेवा करते आये सतपाल महाराज ने अचानक कांग्रेस को छोड़ भाजपा का साथ पकड़ सबसे पहले बगावत की चिंगारी जलाई थी. उसके बाद लगातार कांग्रेस के पुराने स्तम्भ गिरते चले गए. भाजपा उनको संभालती रही. इतना की जब भाजपा सत्ता में आई तो सरकार में आधे मंत्री वही बने जो कभी कांग्रेस की सरकार के हुआ करते थे. कांग्रेस सरकार की कैबिनेट की शान भी हुआ करते थे.
पर्यटन मंत्री को पर्यटन विभाग के कार्यक्रम से दूर रखा गया
त्रिवेंद्र के विरुद्ध नाराज़गी के सुर सबसे पहले सतपाल महाराज के द्वारा ही उठाये गए. जब पर्यटन विभाग के भी कई कार्यक्रम में पर्यटन मंत्री को ही कार्यक्रम से दूर रखा गया था. बात चाहे बद्रीनाथ में आये रेल मंत्री सुरेश प्रभु के रेल प्रोजेक्ट के शिलायन्यास के कार्यक्रम में अनदेखी की हो. चाहे फिर चमोली जिले के वाण गावं में लाटू देवता मंदिर के कपाट खुलने के मौके की हो. जहां उनको मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होना था. या फिर द्रोणागिरी पर्वत पर जाने की जहां पर्यटन मंत्री को जोशीमठ में छोड़कर ही हेलीकॉप्टर वहां से उड़ गया. ऐसा कहकर कि अभी थोड़ी देर में वापस आकर उनको द्रोणागिरी पर्वत पर छोड़ देगा. घंटो इंतज़ार के बाद भी हेलीकॉप्टर नहीं आया. सतपाल महाराज को वापिस लौटना पड़ा.इश पर उन्होंने मख्यमंत्री को पत्र लिखकर नाराज़गी जातई.
हालाकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने घटनाओ को बहुत मामूली बताते हुए कहा है की ये सब होता रहता है. इसमें उड्डयन विभाग को क्लीन चिट देते हुए खुद मुख्यमंत्री ने कहा की विभाग पहले सेफ्टी देखता है. उसके बाद ही वो आगे कदम बढ़ाता है.
मंत्रियों के बीच तनातनी
जहां एक तरफ सतपाल महाराज और धन सिंह रावत की नाराज़गी किसी से छुपी नहीं है. तो वहीँ दूसरी ओर विश्वसनीय सूत्रों की माने तो त्रिवेन्द समर्थक विधायक तीन बार किसी गुप्त स्थान पर कांग्रेस से आये नए मेहमानो के खिलाफ मीटिंग कर चुके हैं. साथ ही मौके की तलाश में हैं की कैसे अपने नए मेहमानो को विदा किया जा सके. क्यूंकि जिस प्रचंड बहुमत से भाजपा सत्ता में है उसको अब कांग्रेस से आये मेहमानों की जरुरत भी नहीं है. नई सरकार में मंत्रियों के बीच की तनातनी सामने आ रही है. तो वहीँ दूसरी ओर पुराने भाजपा के विधायक जो की अपने आप को मंत्री पद न मिलने से नाराज़ है.