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अकेले पंजाब नहीं....देवभूमि उत्तराखंड में ड्रग्स बना बड़ी समस्या, नौजवानों का जीवन हो रहा बेकार

उत्तराखंड में ड्रग्स एक बड़ी समस्या बन गया है. कहने को पंजाब इसका सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है, लेकिन इस रेस में अब उत्तराखंड का नैनीताल ज्यादा पीछे नहीं है.

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देवभूमि उत्तराखंड में ड्रग्स बना बड़ी समस्या
देवभूमि उत्तराखंड में ड्रग्स बना बड़ी समस्या

नशे में डूब रही जवानी के लिए अब तक पंजाब ही बदनाम था लेकिन किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि जिसको देवभूमि कहा जाता है, जहां गंगा यमुना का उद्गम है, अब वही उत्तराखंड नशे का शिकार हो रहा है. राज्य के कई जिले नशे की गिरफ्त में हैं और राज्य की अगली पीढ़ी बर्बाद हो रही है. इन सब में सबसे ज्यादा प्रभावित है जिला नैनीताल. देवभूमि उत्तराखंड के नैनीताल जिले का हल्द्वानी शहर ड्रग्स के कारोबारियों का अड्डा बन गया है

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हल्द्वानी के नौजवान युवक ही नहीं किशोर और किशोरियां भी तेजी से स्मैक और अन्य नशीले मादक पदार्थों के दलदल में बुरी तरह फंस चुके हैं. शराब और चरस के बाद यहां के युवाओं की नशों में स्मैक घुल रहा है. नशे की लत में पड़कर किशोर से लेकर युवा आपराधिक वारदातों को अंजाम देने लगे हैं, चोरी और झपटमारी की घटनाओ में अधिकांश नशेडी ही पकड़ में आ रहे हैं.

स्कूली छात्र कैसे बन रहे ड्रग तस्करों का शिकार?

नशे के कारोबारी पब्लिक और सरकारी स्कूलों के बच्चों और हॉस्टल में रहने वाले छात्र छात्राओं को अपना निशाना बना रहे हैं. शहर के कई नामी स्कूलों के बच्चे तेजी से स्मैक के नशे के आदी बन रहे हैं. स्मैक बेचने वाले तस्कर स्कूल खुलने, इंटरवल और छुट्टी के समय स्कूलों के आस पास खड़े होकर इन बच्चों को स्मैक बेचते हैं. स्मैक का लती बनाने के बाद इसको खरीदने के लिए पैसे न होने पर तस्कर इन बच्चों को कैरियर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.

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उत्तर प्रदेश के कई जिलो के साथ बरेली, बिलासपुर, बहेड़ी, रामपुर आदि से भारी मात्रा में स्मैक की खेप हल्द्वानी और वहां से पहाड़ पहुंच रही है. बरेली के ड्रग पेडलर्स नशीली दवाओं के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं. कुछ समय पहले बरेली पुलिस ने अंतरराज्यीय गिरोह का भंडाफोड़ किया और पूछताछ में खुलासा हुआ कि गिरोह ये स्मैक उत्तराखंड, हरियाणा और दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों में आपूर्ति करता था. स्मैक के तस्करों की तेजी से बढती संख्या के पीछे नशे की लत के साथ ही हर पुडिया में दो से तीन गुना मुनाफा होना है.

भ्रष्टाचार और ड्रग्स कारोबार का कनेक्शन

भ्रष्टाचार के तेजी से फैलने का एक कारण समाज में इसकी स्वीकार्यता को ठहराया जाता है. आज के युग में भ्रष्ट अधिकारी या कर्मचारी आंखों की किरकिरी नहीं बनता क्योंकि ले देकर काम करना या करवाना अब हमारी राष्ट्रीय संस्कृति का हिस्सा बन चुका है. रोजमर्रा की जिंदगी इसे अब कोई भी चरित्रिक कमजोरी या अनैतिक नहीं मानता.

कुछ ऐसा ही युवा वर्ग में प्रचलित नशाखोरी के संबंध में भी कहा जा सकता है. नशे की स्वीकार्यता इस कदर बढ़ रही है, खासकर युवा और किशोरों के बीच कि ग्रास, एक्सटेसी, स्मैक जैसे नाम आधुनिकता के पर्याय बन चुके हैं. उम्र के एक खास पड़ाव में आने तक अगर आप ड्रग्स और इनके सेवन के कथित रूप से 'वर्णनातीत' अनुभव से नहीं गुजरे हैं तो संभव है आपकी गिनती उन पिछड़ों में होने लगे जो जिंदगी का आनंद उठाना नहीं जानते.

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नशा अब अपने पैर पहाड़ों पर भी फैलाने लगा है, पर्यटन के अपशिष्ट के रूप में फैली अपसंस्कृति के भीतर अब इस विकृति की जड़ें बहुत गहरी बैठ चुकी हैं. तराई भावर के कस्बा नुमा शहरों से होता हुआ नशाखोरी का जहर अब नैनीताल जैसे कभी एलीट कहे जाने वाले शहर को भी अपनी गिरफ्त में ले चुका है.

कैसे काम कर रहा है ये रैकेट?

नैनीताल एक चिरपरिचित पर्यटक शहर के अलावा नामी गिरामी पब्लिक और कॉन्वेंट स्कूल्स के लिए भी देश विदेश में खास पहचान रखता है. कुमाऊं विश्वविद्यालय के कैंपस कॉलेज के अलावा देश के अन्य कई नामी शिक्षण संस्थान इस क्षेत्र में हैं. जाहिर है नशे के कारोबार के फलने फूलने के लिए स्थितियां यहां बहुत अनुकूल हैं, खासकर तब जब कि बोर्डिंग स्कूल्स में पढ़ने वाले छात्रों छात्राओं में अधिकांश ऐसे एकल परिवारों से हैं जहां किसी पारिवारिक मजबूरी के चलते बच्चों को परिवार से दूर रखना एक सहज और तत्कालिक विकल्प बन गया हो, और फिर नशे के व्यापार को आराम से पैर फैलाने की सुविधा तब और आसानी से मिल जाती है, जब स्थानीय पुलिस एक सोची समझी नीति के तहत सोशल मीडिया में अपनी दमदार उपस्थिति दिखा कर और थाना स्तर पर मीडिया को मैनेज कर लेने भर को ही अपनी पेशेवर दक्षता का पैमाना समझ लेती है.

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शहर के कुछ जाने पहचाने नुक्कड़ों पर स्मैक और चरस जैसा नशा आसानी से उपलब्ध है. खरीदारी के लिए सप्ताह के निश्चित दिनों में शहर आने वाले आवासीय विद्यालयों के छात्रों के मध्य स्कूल यूनिफॉर्म बदल कर शराब की दुकानों से रंगहीन-गंधहीन वोदका जैसी शराब की खरीदारी एक खासा एडवेंचर बन गया है. 

नैनीताल नगर के अलावा रामनगर, काठगोदाम हल्द्वानी जैसे इलाकों में भी चरस और स्मैक बच्चों और युवाओं को तबाह कर रहा है. शहर की गलियों में, ‌ सुनसान कोनों में नैनीताल के युवा चरस स्मैक की कश‌ और हाथों में सुईया चुभा कर अंधकार को गले लगा रहे हैं. काठगोदाम की कई गलियों बगीचों आदि में ऐसी तस्वीरें आम हैं.

पुलिस ने क्या एक्शन लिया है?

पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड द्वारा समय समय पर नशा मुक्ति अभियान पूरे प्रदेश में चलाया जाता है और इस अभियान के दौरान पुलिस ताबड़तोड़ कार्रवाई करती है. 

22 में कुमाऊं मंडल में पिछले छह माह में छह जिलों की पुलिस द्वारा की गई सात करोड़ की ड्रग्स की बरामदगी की गई है.

देहरादून पुलिस ने अकेले ही छः माह में लगभग छः करोड़ की ड्रग्स बरामद की तो पुलिस महानिरीक्षक कुमाऊं के कार्यालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार कुमाऊं के छः जिलों को मिलाकर पिछले 6 माह में अल्मोड़ा में लगभग 4 लाख, बागेश्वर में 9 लाख, पिथौरागढ़ में लगभग आठ लाख, चंपावत में लगभग 80 लाख, नैनीताल में लगभग 3 करोड़, उधम सिंह नगर में लगभग तीन करोड़ कुल मिलाकर पूरे कुमाऊं मंडल में लगभग 7 करोड़ रुपए के मादक पदार्थ पुलिस ने बरामद किए जिसमें स्मैक, चरस, अफीम, गांजा और नशीले इंजेक्शन आदि.

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कुमाऊं के पुलिस महानिरीक्षक नीलेश आनंद भरणे कहते हैं कि पुलिस अब कुमाऊं एसटीएफ के साथ मिलकर ड्रग्स के सप्लायरों तक पहुंचने का पूरा प्रयास कर रही है जो उत्तर प्रदेश से ड्रग्स की सप्लाई करते हैं और इन सप्लायर के खिलाफ गैंगस्टर की कार्रवाई करने के साथ-साथ इनकी संपत्ति को ज़ब्त करने की कार्यवाही भी की जाएगी। डीआईजी कहते हैं कि ड्रग्स की ओर आकर्षित हो रही युवा पीढ़ी को रोकने के लिए स्कूलों में पुलिस द्वारा बच्चों को जागरूक करने के लिए पुलिस द्वारा हर सप्ताह वर्कशॉप आयोजित कर ड्रग्स के दुष्परिणामों के बारे में युवाओं को जागरूक किया जाएगा.

ऐसा भी नहीं है कि इस नशे के मकड़जाल की जानकारी प्रशासन को नहीं है. नशा नैनीताल के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है जिसके लिए पुलिस की ओर से लगातार कार्रवाई भी हो रही है, साथ ही जन जागरूकता अभियान भी चल रहा है, उसके साथ ही तस्करों के खिलाफ गुंडा एक्ट के तहत भी कार्रवाई की जा रही है. पुलिस इन स्रोतों के खिलाफ क्रैकडाउन तो कर रही है लेकिन नशे के स्रोत बाहर के प्रदेशों से हैं.

नशे का एक काला साया पिछले कुछ सालों से ही उत्तराखंड के ऊपर मंडरा रहा है लेकिन हालात बद से बदतर हो रहे हैं ऊपर से सरकार और राजनीति है कि इसकी सुध ही नहीं लेती, इसे मुद्दा ही नहीं समझती। सियासत से चलने वाले इस देश के पहाड़ी राज्य में बर्बाद हो रही युवा पीढ़ी के सामने खड़ी सबसे बड़ी चुनौती को ही सियासत बड़ा मुद्दा नहीं मान रही,लेकिन जनता के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है। फिलहाल यही सबसे बड़ा मुद्दा है क्योंकि बात उनके अपने बच्चों की है? उनके भविष्य की है? देखना होगा कि सरकार,स्थानीय प्रशासन, पुलिस और स्थानीय जनता कब तक एक तटस्थ दर्शक बने रहना चाहेगी?

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