चुनाव आते ही देश को जहरीले बोल की पुरानी बीमारी ने हमेशा की तरह फिर से जकड़ लिया है. देवभूमि उत्तराखंड भी इस बीमारी से अछूती नहीं रही. धर्म संसद के नाम पर जो कुछ भी हरिद्वार में हुआ, उसके बाद से पूरा उत्तराखंड न सिर्फ हैरत में है, बल्कि यह सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि चुनावों के ठीक पहले, राज्य में ऐसा माहौल क्यों. यूं तो उत्तराखंड की राजनीति में हमेशा से धर्म और धर्म गुरुओं का प्रभाव दिखाई देता रहा है, लेकिन आस्था के विश्वविख्यात केंद्र में धर्म के नाम पर जो कुछ भी इस बार हरिद्वार ने देखा, उससे देवभूमि की छवि को गहरा आघात पहुंचा है.
नफरत बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी गई
तीर्थ नगरी हरिद्वार में 17-19 दिसंबर को धर्म संसद के नाम पर खुद को धर्म गुरु कहने वाले लोगों ने अनाप-शनाप बयानबाजी करके, देश के संविधान और कानून दोनों को चुनौती दी. कथित धर्म संसद में एक धर्म विशेष के खिलाफ भड़काऊ बयान दिए गए. हिंदू महासभा के जनरल सेक्रेटरी और निरंजनी अखाड़ा महामंडलेश्वर अन्नपूर्णा ने इस सभा को संबोधित करते हुए हिंदुओं से आह्वान किया कि वे कॉपी किताब छोड़कर शस्त्र उठा लें. विवादास्पद बयानों के लिए चर्चा में आए यती नरसिंहानंद ने भी धर्म विशेष के खिलाफ नफरत बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी और हिंदुओं से हथियार उठाने की मांग की.
छत्तीसगढ़ में भी दूसरी धर्म संसद लगा ली
धर्म के नाम पर बुलाई गई कथित साधु-संतों की यह संसद जब सवालों के घेरे में आई तो उत्तराखंड पुलिस को भी कार्यवाही के लिए मजबूर होना पड़ा. उत्तराखंड पुलिस ने भड़काऊ भाषण देकर नफरत फैलाने संबंधी वायरल हो रहे वीडियो पर संज्ञान लेते हुए वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी और अन्य के खिलाफ कोतवाली हरिद्वार में धारा 153A IPC के अंतर्गत केस दर्ज किया. इधर हरिद्वार में हुई धर्म संसद पर कानूनी कार्यवाही के नाम पर प्रशासन सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ता रहा, तो ऐसे में धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले कथित संतों की टोली ने छत्तीसगढ़ में भी दूसरी धर्म संसद लगा ली, जहां हरिद्वार के घटनाक्रम की पुनरावृत्ति हुई.
घटना को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा
उत्तराखंड पांच राज्यों के साथ विधानसभा चुनावों के मुहाने पर खड़ा है, जहां अगले कुछ हफ्तों में नई सरकार के लिए लोग मताधिकार का प्रयोग करेंगे, लेकिन देवभूमि में धर्म के नाम पर चुनावों से ऐन वक्त पहले, समाज में विष घोलने वाली कथित धर्म संसद ने सियासी मोड़ भी लिया. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोशल मीडिया के जरिए सीधे-सीधे हरिद्वार की घटना को लेकर, बीजेपी पर निशाना साधा और कहा कि हिंदुत्ववादी हमेशा नफरत और हिंसा फैलाते हैं, जबकि हिंदू- मुसलमान- सिख और ईसाई इसकी कीमत चुकाते हैं. लेकिन अब और नहीं.
'गुंडे भगवा वस्त्र धारण कर लें तो संत नहीं कहलाते'
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रायपुर में हुई धर्म संसद में जहर उगलने वाले कथित संतों को लेकर यहां तक कह दिया कि अगर गुंडे भगवा वस्त्र धारण कर लें तो संत नहीं कहलाते. एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी हरिद्वार की घटना पर सवाल उठाए. वहीं जमात उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री उसका सिंह धामी को धर्म संसद के संचालक पर कार्रवाई की मांग को लेकर चिट्ठी भी लिखी. समूचे विपक्षी नेताओं ने इस घटना की निंदा की और सीधे-सीधे बीजेपी पर सवाल उठाए.
आज पश्चाताप नहीं करते कई स्वयंभू महंत
हरिद्वार की धर्म संसद को लेकर जब बवाल हुआ तो धर्म संसद में शामिल लोगों के सुर अब नरम पड़ने लगे हैं, लेकिन उस घटना का खुलकर बचाव भी करते हैं. विवादों के बाद भी उस कथित धर्म संसद में शामिल होने आए कई स्वयंभू महंत आज भी अपने शब्दों पर पश्चाताप नहीं करते, हालांकि अब जब बवाल खड़ा हुआ है, तब उनकी बोली में नरमी जरूर आई है.
क्या कहते हैं स्वयंभू महंत
अखंड परशुराम अखाड़ा से जुड़े हरिद्वार के अधीन कौशिक कहते हैं कि पहले भी हमने कई धर्म संसद की हैं, लेकिन जब हमारे धर्म पर बात आएगी तो माला काम नहीं आएगी, बल्कि शस्त्र काम आएगा. धर्म संसद पर सवाल पूछे गए तो अधीर कौशिक जैसे स्वयंभू महंत ने जनसंख्या की बहस छेड़ दी और कहा कि जब जिहादी हमारी बहन बेटियों पर हमला करेंगे, तो हम भी उनके खिलाफ आवाज उठाएंगे. अपने बयानों के बचाव में अधीर कौशिक जैसे लोगों के पास ओवैसी के भाषण का सहारा है.
जब उनसे यह सवाल पूछा कि आखिर क्या सनातन धर्म हथियार उठाने और हिंसा की अनुमति देता है? तो धर्म के कथित ठेकेदार अधीर कौशिक ने कहा कि आदिकाल में जब राक्षस हावी होते थे, तब शस्त्र उठते थे. हम सनातन धर्म को मानते हैं, उसका प्रचार करते हैं. हमने कहा था कि अगर हमारी बहू-बेटियों और बहनों पर कोई हमला करता है, तो हमें शस्त्र रखने भी चाहिए और उठाने भी चाहिए.
सवाल पूछा तो ओवैसी के बयान का दिया हवाला
हरिद्वार के रहने वाले, खुद को महंत कहने वाले लोकेश भी धर्म संसद का समर्थन करते हैं. कहते हैं कि धर्म उन्हें हथियार रखने की इजाजत देता है. लोकेश की दलील है कि अगर कश्मीर में लोगों के पास हथियार होता, तो कश्मीरी हिंदुओं को पलायन नहीं करना पड़ता. धर्म संसद में विश्व अमन के मुद्दे पर जब सवाल पूछा गया, तो लोकेश दास ने ओवैसी के बयान का हवाला दे दिया.
धर्म संसद से बड़े महामंडलेश्वर और संन्यासी असहमत
हालांकि इस धर्म संसद को लेकर हरिद्वार के बड़े महामंडलेश्वर और संन्यासी असहमत हैं और धर्म संसद में कही बातों से इत्तेफाक नहीं रखते. निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज ने इस धर्म संसद को लेकर सवाल खड़े किए और कहा कि सनातन संस्कृति संतों को ऐसी बातें कहने की अनुमति नहीं देती, क्योंकि धर्म समावेशी होता है और साधु सबके साथ. संत शांत होता है. कैलाशानंद ने कहा कि संत समाज में हिंसा की कोई जगह नहीं है, न तो हिंसा की बातों के लिए.
निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज कहते हैं कि मौजूदा समय में समभाव और समानता को बनाकर रखना जरूरी है और देश उस स्थान पर स्थापित है कि भारतीय संस्कृति राम राज्य की स्थापना चाह रहा है, लेकिन साम्राज्य युद्ध से नहीं, बल्कि समन्वय से आएगा. सनातन धर्म में हिंसा की कहीं बात आती ही नहीं है, बल्कि यह अहिंसा परमो धर्म की बात करता है. लाखों साधु संन्यासी मेरे अनुयायी हैं और मुझे लगता है कि सनातन धर्म स्थापना की बात करता है. निरूपण की बात करता है.
'उत्तराखंड के शांत माहौल को खराब करने की कोशिश'
धार्मिक क्षेत्र होने और चुनावी माहौल के चलते उत्तराखंड में माहौल गर्म है और इस घटना को लेकर लोगों के बीच चर्चा है, लेकिन इस घटना को लेकर लोगों के जेहन में फिक्र भी है. हरिद्वार के स्थानीय लोग और व्यापारी मानते हैं कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, माहौल खराब करने की कोशिश हो रही है. यह धर्म संसद उत्तराखंड के शांत माहौल को खराब करने की कोशिश है.
हरिद्वार के रहने वाले रविंद्र मिश्रा कहते हैं कि उत्तराखंड शांत, सौम्य और हरियाली के लिए जाना जाता है. हमारे राज्य का स्लोगन भी है 'स्वर्ग से सुंदर उत्तराखंड', लेकिन जो कुछ भी यहां हुआ, वह निंदनीय है. ऐसा नहीं होना चाहिए था, क्योंकि हम शब्द ही बना है हिंदू और मुसलमान से. रविंद्र सिंह कहते हैं कि आजादी की लड़ाई में जितना योगदान भगत सिंह ने दिया उतना ही अशफ़ाकउल्लाह ने दिया.
हमारे यहां चार धाम हैं और यहां 12 साल में कुंभ लगता है, लेकिन पास में ही कलेर शरीफ भी है. इसी तरह हिंदू और मुसलमान भारत माता की दो आंखें हैं. संविधान इजाजत नहीं देता कि आप उन्माद बढ़ाने का काम करें. जब खून से खून मिलता है तो रंग लाल होता है, फिर जाति का क्यों सवाल होता है.
हरिद्वार के रहने वाले संजय त्रिपाल कहते हैं कि चुनाव के समय ऐसी घटनाओं से किसी एक पार्टी को फायदा होता है, लेकिन यह जो किया गया यह निंदनीय है. अजय रावल कहते हैं कि जो जानकारी सामने आई है, उसके अनुसार यहां गलत हुआ है. हमारे हरिद्वार में यह नहीं होना चाहिए.
तेज प्रकाश साहू कहते हैं कि धर्म संसद के नाम पर जो जमावड़ा हुआ है, यहां के बड़े साधु संत मानते ही नहीं कि यह कोई धर्म संसद थी. यह राजनीतिक लोगों का जमावड़ा था, जो चुनाव की बेला पर बैठे हैं, क्योंकि आचार संहिता लगने से पहले चाहते हैं कि लोगों को धर्म जाति में बांट दें. तेज प्रकाश साहू कहते हैं कि हम सभी धर्म के लोगों की पूजा पद्धति अलग है. सबके अपने अधिकार हैं और यह लोकतंत्र है. चुनाव के पहले कोई जाति और धर्म बदल ले रहा है तो अब जब चुनाव नजदीक हैं तो मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है.
मनोज बिश्नोई कहते हैं कि उत्तराखंड में माहौल बेहद शांत है, लेकिन माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है. चुनाव से पहले इसका सीधा असर हमारे व्यापार पर पड़ेगा. बिश्नोई कहते हैं कि चुनाव से पहले ऐसे माहौल खराब करने की कोशिशों का हम कड़ा विरोध करते हैं.
दीपक कुमार कहते हैं कि हमारे देश की छवि वसुधैव कुटुंबकम की है, जहां सभी जातियों धर्मों के लोग रहते हैं, लेकिन किसी धर्म के लोग उठकर ऐसी बातें करते हैं तो यह निंदनीय है. यह अशोभनीय है, क्योंकि यह सब लोगों को बांटा जा रहा है और माहौल खराब करने की कोशिश हो रही है. दीपक कुमार कहते हैं कि आज की तारीख में सबसे बड़ा हमारे लिए मुद्दा रोजगार है, क्योंकि स्थिति दयनीय हो रही है.
आदित्य जेटली कहते हैं कि धर्म चाहे किसी का भी हो, धर्म महत्वपूर्ण होता है. हर धर्म का हम सम्मान करते हैं, लेकिन हमारे हरिद्वार क्षेत्र में कभी भी सांप्रदायिक माहौल नहीं बिगड़ा और यहां हिंदू मुसलमान दोनों प्यार से रहते हैं.
चौपाल में लोग बोले: राजनीतिक दल हिंदू-मुस्लिम फसाद कराने की कोशिश करेंगे
स्थानीय लोगों को लगता है कि इस मामले में कार्यवाही करके पुलिस मिसाल कायम कर सकती थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अब इस घटना के चलते राजनीतिक दल हिंदू-मुस्लिम फसाद कराने की कोशिश करेंगे तो व्यापारियों का मानना है कि यह चुनाव के माहौल में तनाव फैलाने की कोशिश की जा रही है, ताकि राजनीतिक दलों को फायदा हो. स्थानीय लोग घटना में शामिल तमाम लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग करते हैं और कहते हैं कि ऐसे समय पर जनता जो बेरोजगारी और महंगाई से त्रस्त है, उनकी बात होनी चाहिए.
चुनावों को लेकर उठाए जा रहे हैं सांप्रदायिक मुद्दे
तेज प्रकाश साहू कहते हैं कि कहां तो विकास की गंगा बहाने की बात थी और कहां अभी तक नाली भी नहीं शुरू हुई. ऊपर से महंगाई को छोड़कर उन मुद्दों को दबाने के लिए सांप्रदायिक मुद्दे उठाए जा रहे हैं, ताकि चुनाव की वैतरणी पार कर सकें.
हरिद्वार की घटना के बाद यहां रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों में भी तनाव का माहौल है. ज्वालापुर इलाके में रहने वाले मुस्लिम समाज के लोग मानते हैं कि ऐसी घटनाओं का चुनाव से ठीक पहले होना मात्र संयोग नहीं है. हरिद्वार के ज्वालापुरी इलाके में 25 सालों से कारोबार कर रहे मोहम्मद अलाउद्दीन कहते हैं कि जो कुछ इस बार सुनाई पड़ा, हरिद्वार में इसके पहले ना कभी देखा गया ना सुना गया.
'भाई भाई की तरह रहते हैं हिंदू मुसलमान सिख ईसाई'
मुस्लिम समुदाय के दूसरे लोगों का भी कहना है कि जो गलत है, वह गलत है. ज्वालापुरी के मुस्लिम समाज के युवा मुरसालीन कहते हैं कि हिंदुस्तान एक प्यारा मुल्क है और यहां की मिट्टी भी अलग है, जहां हिंदू मुसलमान सिख ईसाई भाई-भाई की तरह रहते हैं. चुनाव आए जाएं, कोई समस्या नहीं होती. मुसलमान चाहता है कि सब मिलजुल कर रहें. मुस्लिम कहते हैं कि ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए, लेकिन चुनाव आ रहा है. शायद इसलिए यह बातें निकल रही हैं. अगर हम किसी गैर मुस्लिम के धर्म को कुछ कहेंगे तो हम भी गलत हैं और कोई हमारे मजहब पर कुछ कहेगा तो वह भी गलत है.
हरिद्वार के रहने वाले नईम कुरैशी कहते हैं कि जब सरकार अपनी जगह फेल हो गई है, तब हिंदुत्व को बढ़ावा देकर हिंदू भाइयों के अंदर ऐसी भावना बढ़ा रहे हैं, ताकि मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैले. हम उत्तराखंड में अमन के साथ हरिद्वार की पवित्र नगरी में गंगा जमुनी तहजीब के साथ हिंदू मुसलमान भाई रहते चले आए.
ओवैसी से भी किनारा करने लगे मुसलमान
हरिद्वार के मुसलमान ओवैसी से भी किनारा करने लगे हैं. नईम कुरैशी कहते हैं कि भले ही ओवैसी संसद में बात अच्छे से रखते हैं, लेकिन जो बातें उनकी वायरल हो रही हैं, हम उन से इत्तेफक नहीं रखते और यह गलत है.
धर्म के नाम पर कथित साधु की संसद और वहां जो कुछ भी कहा गया, उससे हरिद्वार की जनता इत्तेफाक नहीं रखती, यह जरूर है कि उन्हें लगता है चुनावों से पहले यह घटना संजोग से परे है. इसलिए लोग एकजुट भी हैं, सतर्क भी हैं. आज भी हरिद्वार के लोगों के सामने बुनियादी मुद्दे ज्वलंत खड़े हैं. इसलिए उन्हें लगता है कि धर्म के शोर में उनकी आवाज दवाई जा रही है. हालांकि बेवजह फैल रहा तनाव राज्य की छवि उसकी प्रतिष्ठा और उसकी संस्कृति को नुकसान जरूर पहुंचा रहा है.