स्वाधीनता की खुली हवा में सांस लेते-लेते इस देश की पीढ़ियां जवान हो गईं. लेकिन जिस कुर्बानी की कीमत पर आजादी मिली है, उसका क्या? आज़ादी से इश्क करते हुए हंसते-हंसते फांसी चढ़ने वालों को आखिर वतन के रखवालों ने क्या दिया? दिलेरी और देशभक्ति के बदले गरीबी और उपेक्षा. हम आपको झकझोरना चाहते हैं. जरा उस कुर्बानी को याद कीजिए. जरा देखिए 64 साल की आजादी में उन कुर्बानियों की कतनी कद्र रह गई है.