दीवाली के अगले दिन आ जाता है अंधविश्वास का अमावस. फटने लगते हैं परंपरा के बम, चलने लगते हैं परंपरा के पत्थर, शुरू हो जाती है पाखंड की अंधी दौड़. आज सबसे सवाल यही है कि कब मिटेगा यह अंधविश्वास.