सपनों का शहर शर्मिंदगी में डूबा हुआ था, सहमा हुआ समाज सड़कों पर था और सूबे की सरकार सोच में पड़ी हुई थी. ऐसे में संसद को भी बोलना पड़ा. नेताओं ने भी चुप्पी तोड़ी.