शौचालय जरूरी है या देवालय? सवाल यहां इंसानी जरूरत या आस्था का नहीं है बल्कि सवाल है कि क्या नरेंद्र मोदी की ये तुलना वाकई विकास की राह बता रही है या फिर सियासी मजबूरी का नकाब पहनकर मोदी ने ये बयान दिया है. आज की तारीख में इस का जवाब मुश्किल है लेकिन फिलहाल बहस का ये मुद्दा जरूर बन चुका है.