चुनाव में नेताओं का विमर्श और भाषण गधे के स्तर पर उतर आया है. आज तक के मंच पर देश के तमाम बड़े मंचीय कवि इकट्ठा हुए, जिन्होंने गधों और राजनेताओं के तालमेल को अपनी कविताओं में पिरोकर श्रोताओँ के सामने रखा. इस सम्मेलन में डॉक्टर सुनील जोगी ने गधों पर शानदार कविता सुनाई. बस्ती गधों की हो गई, जंगल गधों का हो....इतने दलों के बीच में एक दल गधों को हो.