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आखिरी संबोधन में हिंसा का दर्द

आखिरी संबोधन में हिंसा का दर्द

राष्ट्रपति के तौर पर प्रणब मुखर्जी के आखिरी संबोधन में हिंसा का दर्द साफ नजर आया. उन्होंने कहा-हिंसा की जड़ में अज्ञानत, भय और अविश्वास है. विदाई भाषण में प्रणब मुखर्जी ने अपने सार्वजनिक जीवन को याद किया. बोले- 50 साल के सार्वजनिक जीवन में मेरा ग्रंथ रहा संविधान, संसद मेरे लिए मंदिर, लोगों की सेवा अंतिम जुनून. सोमवार रात को राष्ट्र के नाम अपने अंतिम संबोधन में प्रणब मुखर्जी ने बहुलता और सहिष्णुता के मूल्यों को बनाए रखने पर जोर दिया.

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