उदासियों के पर्वतों पर बैठा मैं उत्तराखंड आज सुनाने जा रहा हूं हिंदुस्तान तुम्हें अपनी व्यथा की कथा. पूछूंगा कुछ सवाल. शपथ लेने को नहीं कहूंगा तुमसे. क्योंकि मैं जानता हूं अदालतों में इंसाफ की यात्रा गीता की शपथ के फरेब से शुरू होती है. इसीलिए इस आडंबर से मुक्त करता हूं तुम्हें लेकिन सच बोलना अगर हो सके तो.