वरिष्ठ पत्रकार और नक्सलियों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली गौरी लंकेश की बेंगलुरु में उनके घर पर ही गोली मारकर हत्या कर दी गई. 1962 में जन्मी गौरी ने पत्रकारिता की शुरुआत बैंगलुरू में एक अंग्रेजी अखबार से की थी. यहां कुछ समय काम करने के बाद वो दिल्ली चली गईं. दिल्ली में भी कुछ साल काम करने के बाद वो दोबारा बैंगलुरू लौट आईं और यहां 9 साल तक संडे नाम की मैग्जीन में काम किया.पत्रकार होने के साथ गौरी एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं. गौरी के पिता पी लंकेश कन्नड़ में 'पत्रिका' नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका निकालते थे. पिता के निधन के बाद गौरी इसकी संपादक बनीं.लेकिन साल 2005 में नक्सलियों से जुड़ी एक खबर के चलते गौरी ने "पत्रिका" छोड़ दी. इसके बाद गौरी ने अपना खुद की साप्ताहिक कन्नड़ गौरी लंकेश पत्रिका निकालनी शुरू की.