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दिवाली आते ही जहां एक ओर देशभर में जश्न-आतिशबाजी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं, वहीं इस आतिशबाजी से निकले जहरीले धुएं पर भी बहस छिड़ जाती है. पिछले कुछ सालों से खासकर दिल्ली-एनसीआर के इलाकों में दीपावली के बाद बढ़े वायु प्रदूषण के चलते सरकार और अदालतें भी एक्टिव हो जाती हैं. दिल्ली सरकार ने तो इस बार आम पटाखों के साथ-साथ ग्रीन पटाखे चलाना भी बैन कर दिया है. दूसरी तरफ पब्लिक है जिसे ये नहीं समझ आ रहा कि दिवाली जैसा त्योहार भी भला पटाखों के बिना कैसे मनाया जा सकता है. पटाखों के समर्थक कई बार ये भी तर्क देते हैं कि इनसे उतना धुआं नहीं निकलता जितना इन्हें लेकर शोर किया जा रहा है. तो क्या वाकई जहरीले होते हैं पटाखे, अगर हां तो फिर कितने? आइये समझते हैं…
चीन ने छठी सदी में ही पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर मिलाकर बारूद बना लिया था. पटाखे भी इसकी ही देन है. भारत में भी पटाखों का इतिहास बहुत पुराना है. चाणक्य के अर्थशास्त्र में भी एक ऐसे चूर्ण का उल्लेख है जो तेजी से जलता था, तेज लपटें पैदा करता था और अगर इसे एक नलिका में भर दिया जाए तो हलका विस्फोट होता है.
दिवंगत इतिहासकार पीके गौड़ अपनी किताब 'History of Fireworks in India between 1400 and 1900' में लिखते हैं, '14वीं सदी में बारूद के आविष्कार के बाद भारत में पटाखों का इस्तेमाल आम हो गया होगा.'
इस किताब में पीके गौड़ एक किस्सा भी बताते हैं. वो एक पुर्तगाली यात्री दुआर्ते बार्बोसा के हवाले से बताते हैं कि 1518 में गुजरात में एक ब्राह्मण परिवार की शादी में जबरदस्त आतिशबाजी की गई थी. ये बताता है कि उस दौर में पटाखों का इस्तेमाल किस हद तक हुआ करता था.
सतीश चंद्रा अपनी किताब 'Medieval India: From the Sultanate to the Mughals' में लिखते हैं, '1609 में बीजापुर के सुल्तान इब्राहिम आदिल शाह के दरबारी की बेटी की शादी उनके शाही सेनापति मलिक अंबर के बेटे से हुई. इस शादी में सुल्तान ने 80 हजार रुपये सिर्फ आतिशबाजी पर खर्च किए थे.'
1820 में जब बड़ौदा के महाराजा सयाजी राव द्वितीय ने दूसरी शादी की, तो इसमें उन्होंने आतिशबाजी पर 3 हजार रुपये खर्च किए थे.
इसके अलावा पटाखों और आतिशबाजी का इस्तेमाल हाथी जैसे बड़े जानवरों को भगाने के लिए भी होता था. 1658 से 1669 के बीच फ्रेंच फिजिशियन फ्रैंकोसिस बर्नियर दिल्ली और आगरा की यात्रा पर आए थे. बर्नियर लिखते हैं, 'लड़ते हुए जानवरों को केवल उन पटाखों की आवाज से ही दूर किया जा सकता था. इसके लिए उनके पास बम का धमाका किया जाता था. वो (जानवर) स्वभाव से डरपोक थे. उन्हें आग से भी डर लगता था. यही वजह था कि बम-बारूद आने के बाद युद्ध में हाथियों का इस्तेमाल कम हो गया था.'
भारत में पटाखे बनाने वाली पहली फैक्ट्री 19वीं सदी में कोलकाता में शुरू हुई थी. आजादी के बाद तमिलनाडु का शिवाकाशी पटाखों का बड़ा हब साबित हुआ. शिवाकाशी की पटाखा इंडस्ट्री से 6.5 लाख परिवार जुड़े हुए हैं. इन परिवारों का खर्च इसी से चलता था. कोरोना से पहले यहां की पटाखा इंडस्ट्री हर साल लगभग 6 हजार करोड़ रुपये का कारोबार करती थी.
भारत जब आजाद हुआ, तब भी पटाखे फोड़े गए थे, आतिशबाजी की गई थी. लेकिन आज ये पटाखे बुरे हो गए हैं. कुछ सालों से दिवाली आते ही पटाखों की बिक्री और उपयोग पर रोक लगा दी जाती है. खासकर दिल्ली-एनसीआर और आसपास के इलाकों में. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि खराब होती हवा को और खराब होने से बचाया जा सके.
फरवरी 2018 में यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड पॉलिसी ने दिल्ली की खराब हवा पर पटाखों के असर पर एक स्टडी की थी. इसके लिए 2013 से 2016 तक का डेटा लिया गया था. डेटा के आधार पर दावा किया गया था कि दिवाली के अगले दिन दिल्ली में हर साल PM2.5 की मात्रा 40% तक बढ़ गई थी. वहीं, दिवाली की शाम 6 बजे से रात 11 बजे के बीच PM2.5 में 100% की बढ़ोतरी हुई थी.
इसी तरह मई 2021 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में 2020 की दिवाली के पहले और बाद के वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण की जानकारी दी गई थी. इस रिपोर्ट में दिल्ली, भोपाल, आगरा, बेंगलुरु समेत 8 शहरों का डेटा था.
इस रिपोर्ट में बताया गया था कि दिवाली के बाद अगले दिन 8 शहरों में PM10 की मात्रा में 22% से 114% की बढ़ोतरी हो गई थी. इसके मुताबिक, दिवाली के बाद दिल्ली में PM10 की मात्रा 67.1% बढ़ गई थी. जबकि, लखनऊ में ये 114% बढ़ गई थी. वहीं, दिल्ली में PM2.5 की मात्रा 82.9% और लखनऊ में 67.6% तक बढ़ गई थी.
वातावरण में मौजूद PM2.5 बेहद खतरनाक होता है, क्योंकि ये हमारे बालों से भी 100 गुना छोटा होता है. PM2.5 का मतलब है 2.5 माइक्रॉन का कण. माइक्रॉन यानी 1 मीटर का 10 लाखवां हिस्सा. हवा में जब इन कणों की मात्रा बढ़ जाती है तो विजिबिलिटी प्रभावित होती है. ये इतने छोटे होते हैं कि हमारे शरीर में जाकर खून में घुल जाते हैं. इससे अस्थमा और सांस लेने में दिक्कत होती है.
एक रिपोर्ट बताती है कि खराब हवा की वजह से उम्र भी कम हो जाती है. दुनिया में ये एवरेज 2.2 साल का है. जबकि, दिल्ली में 9.7 साल और उत्तर प्रदेश में 9.5 साल का है. यानी, अगर आप दिल्ली में हैं तो खराब हवा की वजह से आपकी उम्र में 9 साल 7 महीने की कमी आ सकती है.
दिवाली वाले पटाखे कितने खतरनाक होते हैं? इसे कुछ आंकड़ों से भी समझा जा सकता है. पिछले साल 4 नवंबर को दिवाली थी. CPCB का डेटा बताता है कि 3 नवंबर को दिल्ली में AQI 314 के स्तर पर था, जो 4 नवंबर को बढ़कर 382 पर आ गया और अगले दिन यानी 5 नवंबर को 462 पर आ गया.
हवा कितनी खराब या अच्छी है, ये AQI यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स से ही पता चलता है. AQI जब 0 से 50 के बीच होता है, उसे अच्छा माना जाता है, जबकि 401 से 500 के बीच होने पर इसे गंभीर माना जाता है.
आंकड़े बताते हैं कि दिवाली के अगले दिन दिल्ली की हवा बहुत खराब हो जाती है. पिछले साल ही दिवाली के अगले दिन दिल्ली का AQI 462 पर पहुंच गया था. इसे 'गंभीर' माना जाता है.
साइंस जर्नल लैंसेट की एक स्टडी बताती है कि 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 16.7 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल खराब हवा की वजह से 70 लाख लोग बेमौत मारे जाते हैं. इतना ही नहीं, दुनिया की 99% आबादी 'खराब हवा' में सांस ले रही है.
हवा पहले से ही खराब है और पटाखे इस हवा को और खराब कर देते हैं. पटाखे हवा में मौजूद पॉल्यूटेंट्स को और बढ़ा देते हैं. इतना ही नहीं, पटाखों में मौजूद अलग-अलग केमिकल हवा में मिल जाते हैं. ये न सिर्फ वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य पर भी इसका असर पड़ता है.
2016 में पुणे स्थित चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन की एक स्टडी आई थी. इस स्टडी में जो जानकारी सामने आई थी, वो बताती है कि जितना हम सोचते हैं, पटाखे उससे भी ज्यादा 'खतरनाक' हैं.
2932 सिगरेट जलाने पर जितना प्रदूषण होता है, उतना दिवाली पर एक सांप की गोली जलाने पर दर्ज किया जाता है. यानी इतनी सिगरेट से निकले PM2.5 के प्रदूषणकारी तत्व एक सांप की गोली जलाने पर निकल जाते हैं.
एक सिगरेट जलाने पर PM2.5 के 22 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर पार्टिकल्स निकलते हैं. वहीं, सांप की गोली जलाने पर 64,500 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर पार्टिकल्स निकलते हैं. इस हिसाब से सांप की गोली जलाने पर 2,932 सिगरेट के बराबर PM2.5 पार्टिकल्स निकलते हैं.
दिवाली आते ही दिल्ली-एनसीआर समेत कई शहरों में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक लगा दी जाती है. दिल्ली में इस बार भी पटाखों की बिक्री, भंडारण और उपयोग पर रोक लग गई है
दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय के मुताबिक, दिल्ली में पटाखों पर 1 जनवरी 2023 तक पूरी तरह रोक रहेगी. उन्होंने बताया कि सभी तरह के पटाखों पर बैन रहेगा. इसकी ऑनलाइन बिक्री भी नहीं हो सकेगी.
हालांकि, एक्सपर्ट मानते हैं कि वायु प्रदूषण कम करने के लिए सिर्फ पटाखों पर प्रतिबंध ही काफी नहीं है. ग्रीनपीस इंडिया से जुड़े अविनाश चंचल ने न्यूज एजेंसी से कहा था कि ये सही है कि पटाखे प्रदूषण बढ़ाते हैं, लेकिन इसके अलावा और दूसरे सोर्स भी हैं जो हवा खराब करते हैं. जैसे- ट्रांसपोर्ट, इंडस्ट्री, कंस्ट्रक्शन और थर्मल पावर प्लांट.
दिल्ली में 1.22 करोड़ से ज्यादा गाड़ियां रजिस्टर्ड हैं. ये आंकड़ा मुंबई से लगभग तीन गुना ज्यादा है. मुंबई की सड़कों पर 42.33 लाख से ज्यादा गाड़ियां दौड़ती हैं. इन गाड़ियों से जो धुंआ निकलता है, वो भी हवा खराब करता है.
इसके अलावा इसी मौसम में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान पराली जलाते हैं. पराली जलाने से भी हवा खराब होती है.
पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक नहीं है. पिछली साल दिल्ली में वायु प्रदूषण पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पटाखों के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं है और केवल उन पटाखों पर रोक है जिनमें बेरियम सॉल्ट होता है. दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण को सुप्रीम कोर्ट ने 'इमरजेंसी' बताया था.
इससे पहले 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल को लेकर गाइडलाइन जारी की थी. इसके मुताबिक, ग्रीन पटाखे या ईको फ्रेंडली पटाखे ही जलाए जा सकते हैं. पटाखे भी सिर्फ लाइसेंसधारी दुकानदार ही बेच सकेंगे.
गाइडलाइन में पटाखों को फोड़ने का समय भी तय किया गया था. दिवाली के दिन रात 8 से 10 बजे तक पटाखे फोड़े जा सकते हैं. वहीं, क्रिसमस और न्यू ईयर की रात 11:55 से 12:30 बजे तक पटाखे फोड़ सकते हैं. हालांकि ये गाइडलाइंस कितनी पालन की गईं ये भी बहस का विषय है. बहस और विवाद फिर शुरू होगा क्योंकि अगले महीने दिवाली है और फिर से पटाखे कटघरे में हैं.