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ओलंपिक में भारत का
स्वर्णिम इतिहास

Credits

Credits

Report: Bishwa Mohan Mishra

Creative producer: Rahul Gupta

Photo researcher: Vishal Ghavri

UI developers: Vishal Rathour, Mohd. Naeem Khan

के डी जाधव

के डी जाधव
स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता

कांस्य पदक: हेलसिंकी (1952)

खाशाबा दादासाहेब जाधव (KD Jadhav) व्यक्तिगत स्पर्धा में ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी थे. जाधव ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर भारत का परचम लहराया था. इससे पहले तक भारत के सभी पदक फील्ड हॉकी में आए थे, न कि व्यक्तिगत स्पर्धा में. वह एकमात्र ओलंपिक पदक विजेता रहे, जिन्हें पद्म पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया. केडी जाधव को छोटी हाइट के चलते ‘पॉकेट डायनेमो’ के नाम से भी जाना जाता था.

केडी जाधव का जन्म 1926 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था. उनके पिता दादासाहेब खुद भी पहलवान थे. छोटे कद के जाधव बेहद कमजोर दिखाई देते थे. इसी वजह से राजाराम कॉलेज के स्पोर्ट्स टीचर ने उन्हें वार्षिक खेलों की टीम में शामिल करने से इनकार कर दिया था. बाद में कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें प्रतियोगिता में भाग लेने की इजाजत दे दी थी.

घर गिरवी रखने को हुए मजबूर

1948 के लंदन ओलंपिक में केडी जाधव छठे स्थान पर रहे. लेकिन उन्होंने अपने खेल से काफी सुर्खियां बटोरीं. लंदन से वापस लौटते ही जाधव ने हेलसिंकी ओलंपिक खेलों की तैयारी शुरू कर दी. लेकिन जब हेलसिंकी जाने का समय आया, तो उनके पास पैसे ही नहीं थे. राजाराम कॉलेज के उनके पूर्व प्रिंसिपल ने 7000 रुपये की मदद दी. बाद में राज्य सरकार ने भी 4000 रुपये दे दिए, लेकिन यह रकम काफी नहीं थी. फिर जाधव ने अपना घर गिरवी रखकर और कई लोगों से उधार लेकर हेलसिंकी का सफर तय किया.

हेलसिंकी ओलंपिक में किया कमाल

जाधव बैंटमवेट फ्रीस्टाइल वर्ग में कनाडा, मैक्सिको और जर्मनी के पहलवानों को पछाड़कर फाइनल राउंड में पहुंचे थे. लेकिन वह सोवियत संघ के पहलवान राशिद मम्मादबेयोव से हार गए. अब उनके पास मुकाबलों के बीच में आराम करने का समय नहीं था. जाधव थक चुके थे. इसके बाद ही उन्होंने जापान के शोहाची इशी (स्वर्ण पदक विजेता) का सामना किया, जिनके खिलाफ वह हार गए. हालांकि भारत का यह दिग्गज कांस्य पदक जीतने में कामयाब रहा. ऐसा करके केडी जाधव स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता बने.

100 बैलगाड़ियों से स्वागत किया गया

केडी जाधव जब कांस्य पदक लेकर लौटे तो उन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ी. 100 बैलगाड़ियों से उनका स्वागत किया गया. स्टेशन से अपने घर तक पहुंचने में उन्हें 7 घंटे लगे, जो दूरी सिर्फ 15 मिनट में पूरी हो सकती थी.

1955 में उन्हें मुंबई पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी दी गई. पुलिस में बेहतरीन परफॉर्मेंस की बदौलत जाधव रिटायरमेंट से 6 महीने पहले असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर बनाए गए थे.

सड़क दुघर्टना में गंभीर रूप से घायल इस दिग्गज को बचाया नहीं जा सका. 58 साल के केडी जाधव ने 1984 में दुनिया को अलविदा कह दिया. देश के लिए पहला पदक जीतने वाले जाधव को भारत सरकार जीते जी उचित सम्मान नहीं दे सकी. ओलंपिक पदक जीतने के 50 साल बाद 2001 में उन्हें मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 2010 में दिल्ली के इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुश्ती स्टेडियम का नामकरण केडी जाधव के नाम पर हुआ.

लिएंडर पेस

लिएंडर पेस
44 साल बाद भारत के लिए पहला व्यक्तिगत पदक जीता

कांस्य पदक: अटलांटा (1996)

जब भी भारतीय टेनिस की बात होती है, तो लिएंडर पेस (Leander Paes) का नाम सबसे पहले सामने में आता है. पेस ने 1996 के अटलांटा ओलंपिक में पुरुष एकल में कांस्य पदक जीता था. पेस ने 1952 में हेलसिंकी ओलंपिक में पहलवान केडी जाधव के कांस्य पदक के बाद भारत को पहला व्यक्तिगत पदक दिलाया.

लिएंडर पेस लगातार 7 ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले दुनिया के एकमात्र टेनिस खिलाड़ी हैं. वह 7 बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले एकमात्र भारतीय हैं, जिसके लिए उन्हें सर्टिफिकेट भी मिल चुका है. अपने सुनहरे करियर में पेस 18 ग्रैंड स्लैम खिताब जीत चुके हैं, जिसमें 8 डबल्स और 10 मिक्स्ड डबल्स खिताब शामिल हैं.

नंबर-1 बन गए थे जूनियर पेस

लिएंडर पेस का जन्म 17 जून 1973 को कोलकाता में हुआ था. उनके पिता वेस पेस 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडलिस्ट भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रह चुके हैं. वहीं, मां जेनिफर पेस ने 1980 के एशियन बास्केटबॉल चैम्पियनशिप में भारतीय टीम की कप्तान रह चुकी हैं. 1990 में पेस ने सिर्फ 17 साल की उम्र में विम्बलडन का ‌जूनियर खिताब अपने नाम किया. 1991 में यूएस ओपन का जूनियर खिताब जीतकर इस कैटेगरी में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी बने. अगले साल 1992 में पेस ने रमेश कृष्णन के साथ बार्सिलोना ओलंपिक में भाग लिया.

अटलांटा ओलंपिक बना यादगार

अटलांटा में पेस ने अपने सिंगल्स अभियान का शानदार आगाज करते हुए पहले दौर में अमेरिका के रिची रेनबर्ग को पटखनी दी. इसके बाद पेस ने दूसरे दौर में वेनेजुएला के निकोलस परेरा और तीसरे दौर में स्वीडन के दिग्गज थॉमस एनक्विस्ट को मात दी. क्वार्टर फाइनल में लिएंडर पेस ने इटली के रेंजो फुरलान को हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई.

सेमीफाइनल में लिएंडर पेस का सामना दुनिया के शीर्ष खिलाड़ियों में से एक आंद्रे अगासी से हुआ. पहला सेट टाई ब्रेकर तक खिंचा, लेकिन पेस के हाथ से निकल गया. फिर अगासी ने पेस को कोई मौका नहीं देते हुए 7-6, 6-3 से मैच जीतकर करोड़ों भारतीय फैन्स की उम्मीदें तोड़ दीं.

पेस को हराने के बाद अगासी स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रहे. दूसरी ओर लिएंडर पेस के पास अब भी कांस्य पदक जीतने का एक मौका था. ब्राजील के फर्नांडो मेलीजेनी के खिलाफ मैच में पेस को पहला सेट उन्हें 3-6 से गंवाना पडा. लेकिन इसके बाद लिएंडर पेस ने शानदार वापसी करते हुए 3-6, 6-2, 6-4 से मुकाबला जीतकर भारत का नाम पदक तालिका में ला दिया. पूरा देश जश्न में डूब उठा, क्योंकि 44 साल बाद किसी भारतीय एथलीट ने व्यक्तिगत स्पर्धा में ओलंपिक मेडल अपने नाम किया था.

कर्णम मल्लेश्वरी ‌

कर्णम मल्लेश्वरी ‌
ओलंपिक में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी

कांस्य पदक: सिडनी (2000)

भारत की ‘आयरन लेडी' के नाम से मशहूर कर्णम मल्लेश्वरी (Karnam Malleswari) ओलंपिक में पदक जीतने पहली भारतीय महिला हैं. 2000 के सिडनी ओलंपिक में मल्लेश्वरी ने यह उपलब्धि हासिल की थी. तब उन्होंने वेटलिफ्टिंग के 69 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक हासिल किया था.

करियर बनाने के लिए दिल्ली शिफ्ट हुईं

कर्णम मल्लेश्वरी का जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में 1 जून 1975 को हुआ था. मल्लेश्वरी ने 12 साल की उम्र से ही वेटलिफ्टिंग का अभ्यास शुरू कर दिया. बाद में वेटलिफ्टिंग में अपना करियर बनाने के लिए वो अपनी बहन के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गईं. यहां स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया(SAI) की नजर उन पर पड़ी. 1990 में मल्लेश्वरी नेशनल कैंप का हिस्सा बनीं और चार साल बाद 54 किलो भारवर्ग में वो विश्व चैम्पियनशिप जीतने में सफल रहीं. उन्होंने 1993 से 1996 के बीच विश्व वेटलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में दो गोल्ड और दो ब्रॉन्ज मेडल जीते थे. 1994 और 1998 के एशियन गेम्स में उन्होंने सिल्वर मेडल पर भी कब्जा जमाया.

सिडनी ओलंपिक में पदक दिलाया

कर्णम मल्लेश्वरी ने प्रतियोगिता के दिन कुल 240 किलो वजन उठाया था. उन्होंने 'स्नैच' में 110 किलो और 'क्लीन एंड जर्क' में 130 किलो वजन उठाया, जो कांस्य पदक जीतने के लिए काफी था. हालांकि आखिरी लिफ्ट में मल्लेश्वरी ने अपने कोच की सलाह पर 137 किलो वजन उठाने का फैसला किया, जो उनकी पिछली लिफ्ट से 7 किलो ज्यादा थी. कर्णम मल्लेश्वरी यह निर्णायक वजन नहीं उठा सकीं. उन्होंने बारबेल को थोड़ी जल्दी उठा दिया और उनके घुटने पर चोट लगी, जिससे वह गिर गईं. 69 किलो भारवर्ग में चीन की लिन वेनिंग को स्वर्ण और हंगरी की अरसेबेत मार्कस को रजत पदक मिला.

... और बन गईं 'भारत की बेटी'

जब कर्णम मल्लेश्वरी पदक जीतकर भारत आईं, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनको भारत की बेटी नाम से संबोधित किया था. कर्णम मल्लेश्वरी ने 2002 के राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने की योजना बनाई, लेकिन अपने पिता के निधन के कारण वह ऐसा कर नहीं सकीं. एथेंस 2004 ओलंपिक में पदक जीतने में विफल रहने के बाद उन्होंने रिटायरमेंट की घोषणा की. 1997 में मल्लेश्वरी ने अपने साथी वेटिलिफ्टर राजेश त्यागी से शादी कर ली. 2001 में उन्होंने बेटे को जन्म दिया था.

मल्लेश्वरी को 1994 में अर्जुन पुरस्कार और सिडनी ओलंपिक से एक साल खेल रत्न से सम्मानित किया गया. उन्हें इसी साल पद्मश्री सम्मान भी दिया गया था. मल्लेश्वरी फिलहाल फूड कॉरपोरेशन में ऑफ इंडिया में चीफ जनरल मैनेजर हैं. हाल ही में वह दिल्ली स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी की पहली कुलपति बनी हैं.

राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ‌

राज्यवर्धन सिंह राठौड़  ‌
ओलंपिक में व्यक्तिगत रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय

रजत पदक: एथेंस (2004)

कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ (Rajyavardhan Singh Rathore) ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट हैं. 2004 एथेंस ओलंपिक में उन्होंने पुरुषों के डबल ट्रैप इवेंट में यह पदक जीता था. इसके अलावा वह मैनचेस्टर और मेलबर्न के राष्ट्रमंडल खेलों और कायरो वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में भी गोल्ड मेडल जीत चुके हैं. 2005 में राठौड़ को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न और अर्जुन पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है.

मां की सलाह के बाद क्रिकेट छोड़ा

राज्यवर्धन सिंह राठौड़ का जन्म 29 जनवरी 1970 को राजस्थान के जैसलमेर में हुआ था. राठौड़ को निशानेबाजी के साथ ही क्रिकेट का भी शौक था. उन्हें मध्य प्रदेश की रणजी टीम में भी चुना गया था. लेकिन राज्यवर्धन ने अपनी मां की सलाह के बाद क्रिकेट छोड़ दिया, ताकि पढ़ाई बाधित न हो. बाद में उन्हें नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) में चुना गया, जहां से ट्रेनिंग प्राप्त करने के बाद वह भारतीय सेना के साथ जुड़ गए. जम्मू-कश्मीर में अपनी तैनाती के दौरान राठौड़ आतंकवाद रोधी अभियान टीम का भी हिस्सा रहे. 1998 में 28 साल की उम्र में उन्होंने निशानेबाजी मुकाबले में भाग लेना शुरू किया, जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

एथेंस में सिल्वर पर निशाना साधा

एथेंस ओलंपिक खेलों से पहले राठौड़ को सेना की मार्कमैनशिप यूनिट के साथ दो साल के लिए दिल्ली तैनात किया गया था. जिससे उन्हें तुगलकाबाद शूटिंग रेंज में अभ्यास करने में मदद मिली. एथेंस ओलंपिक में राठौड़ ने क्वालिफायर में 5वां स्थान हासिल कर फाइनल के लिए क्वालिफाई किया. फाइनल में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के शेख अहमद अलमकतूम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया. राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को पोडियम फिनिश करने के लिए चीन के वांग झेंग और स्वीडिश शूटर हाकन डाहल्बी से कड़ी चुनौती मिली. एक रोमांचक मुकाबले में भारतीय निशानेबाज ने वांग झेंग को एक प्वाइंट से पीछे छोड़ रजत पदक सुनिश्चित किया.

... शुरू हुआ राजनीतिक करियर

सेना से रिटायरमेंट के बाद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ 2013 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. 2014 के लोकसभा चुनावों में वह पार्टी के टिकट से चुनाव लड़कर संसद पहुंचे. नवंबर 2014 में उन्हें पिछली मोदी सरकार में सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद राठौड़ को 2017 में युवा मामलों और खेल (स्वतंत्र प्रभार) के लिए राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था. फिलहाल वह राजस्थान की जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट से सांसद हैं.

अभिनव बिंद्रा

अभिनव बिंद्रा
भारत के लिए पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता

स्वर्ण पदक, बीजिंग ओलंपिक (2008)

अभिनव बिंद्रा (Abhinav Bindra) ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय हैं. ये एक ऐसा रिकॉर्ड है जो अभी भी उनके ही नाम है, उन्होंने 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था. अपने 22 साल के सुनहरे करियर में अभिनव ने 150 से ज्यादा पदक जीते. 2018 में अंतरराष्ट्रीय शूटिंग स्पोर्ट फेडरेशन (ISSF) ने अभिनव को शूटिंग का सर्वोच्च सम्मान 'ब्लू क्रॉस' से सम्मानित किया. अभिनव बिंद्रा वर्तमान में आईओसी एथलीट आयोग के सदस्य हैं.

माता-पिता ने घर में ही शूटिंग रेंज बनवा दी

अभिनव बिंद्रा का जन्म 28 सितंबर 1982 को देहरादून में हुआ था. शूटिंग के प्रति रुझान को देखते हुए उनके माता-पिता ने घर में ही शूटिंग रेंज बनवा दी थी, ताकि उन्हें प्रैक्टिस करने में कोई परेशानी न हो. 1998 में अभिनव ने महज 15 साल की उम्र में राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लिया था. फिर 2000 के सिडनी ओलंपिक खेलों में वह सबसे कम उम्र के भारतीय प्रतिभागी बने. उस ओलंपिक में बिंद्रा ने क्वालिफाइंग रांउड में 11वां स्थान हासिल किया, जिसके चलते वह फाइनल के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाए.

2001 के म्यूनिख विश्व कप में अभिनव ने 597/600 के नए जूनियर विश्व रिकॉर्ड स्कोर के साथ उन्होंने कांस्य पदक जीता था. उन्होंने उस साल विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कुल छह स्वर्ण पदक अपने नाम किए थे.

बीजिंग ओलंपिक में साधा अचूक निशाना

2002 से लेकर 2014 के हरेक कॉमनवेल्थ गेम्स में अभिनव बिंद्रा ने गोल्ड मेडल जीता. 2004 के एथेंस ओलंपिक में अभिनव ने रिकॉर्ड तो कायम किया, लेकिन वह पदक जीतने से चूक गए. इसके बाद 2006 में जागरेब में आयोजित विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने बीजिंग ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया.

बीजिंग ओलंपिक में अभिनव ने क्वालिफिकेशन राउंड में 600 में से 596 पॉइंट लिए थे. फाइनल में आखिरी शॉट से पहले तक हेनरी हेक्कीनेन 598 पॉइंट के साथ उनके बराबर थे. लेकिन अभिनव बिंद्रा ने आखिरी शॉट जहां 10.8 का लगाया, जबकि हेक्कीनेन को 9.7 पॉइंट मिले. बिंद्रा ने कुल 700.5 अंकों के साथ स्वर्ण पदक पर कब्जा कर इतिहास रच डाला. एथेंस ओलंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट झू किनान को रजत और हेक्कीनेन को कांस्य पदक हासिल हुआ.

... लेकिन रियो में पदक से चूक गए

अभिनव बिंद्रा 2012 के लंदन ओलंपिक में फाइनल के लिए क्वालिफाई करने से चूक गए. 2014 के ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता. इसके बाद 2016 के रियो ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा भारतीय दल का ध्वजवाहक चुना गया था. रियो ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा कुछ प्वाइंट्स के फासले से पदक जीतने से चूक गए. फाइनल मुकाबले में तीसरे स्थान के लिए हुए शूटआउट में अभिनव को यूक्रेन के एस. कुलिश ने मात दे दी थी. 5 सितंबर 2016 को अभिनव बिंद्रा ने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी.

अवॉर्ड और सम्मान

  • 2000 - अर्जुन पुरस्कार
  • 2002 - राजीव गांधी खेल रत्न
  • 2009 - पद्म भूषण

सुशील कुमार

सुशील कुमार
इकलौते भारतीय- व्यक्तिगत इवेंट में दो ओलंपिक मेडल

कांस्य पदक, बीजिंग ओलंपिक (2008)

रजत पदक, लंदन ओलंपिक (2012)

सुशील कुमार (Sushil Kumar) ओलंपिक में दो पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं. सबसे पहले सुशील ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था. इसके बाद 2012 के लंदन ओलंपिक में पदक का रंग बदलते हुए रजत पदक अपने नाम किया. सुशील कुमार को अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न और पद्म श्री से नवाजा जा चुका है. सुशील फिलहाल युवा पहलवान सागर धनखड़ की हत्या के आरोप में कानून के शिकंजे में हैं.

शुरुआती करियर

सुशील कुमार का जन्म 26 मई 1983 को दिल्ली के बाहरी हिस्से में बसे गांव बपरोला में हुआ. सुशील कुमार के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. उनके पिता डीटीसी में कंडक्टर थे, जिससे पूरे परिवार का गुजर-बसर होता था. सुशील से ही प्रेरित होकर उनके चचेरे भाई संदीप भी रेसलिंग से जुड़े, लेकिन परिवार सिर्फ सुशील का ही खर्च उठा सकता था. ऐसे में संदीप को पहलवानी छोड़नी पड़ी.

14 साल की उम्र में सुशील प्रशिक्षण के लिए दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में चले गए. सुशील की कड़ी मेहनत आखिरकार रंग लाई. सबसे पहले उन्होंने 1998 में पोलैंड में हुए विश्व कैडेट खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर सुर्खियां बटोरीं. इसके बाद उन्होंने 2000 में एशियाई जूनियर कुश्ती चैम्पियनशिप भी जीती. इसके बाद सुशील ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए.

बीजिंग ओलंपिक

सुशील कुमार को 2008 के बीजिंग ओलिंपिक में 66 किलो फ्रीस्टाइल वर्ग‌के पहले ही राउंड में एंड्री स्टाडनिक ने हरा दिया था. स्टाडनिक फाइनल में पहुंच गए थे, जिसके चलते सुशील को रेपचेज रांउड खेलने का मौका मिला. ऐसे में उन्होंने पहले डग स्वाब और फिर दूसरे राउंड में अल्बर्ट बाटीरोव को मात दी. इसके बाद सुशील ने कांस्य पदक के मुकाबले में लियोनिड स्पिरिडोनोव को 3-1 से हराकर इतिहास रच दिया. वह केडी जाधव के बाद ओलंपिक में पदक जीतने वाले दूसरे भारतीय रेसलर बन गए थे. जाधव ने 1952 में हेलसिंकी ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था.

लंदन ओलंपिक

बीजिंग खेलों में कांस्य पदक जीतने के बाद सुशील देश के हीरो बन चुके थे. 2012 के लंदन ओलंपिक में भारतीय फैन्स सुशील से गोल्ड मेडल की उम्मीद कर रहे थे. सुशील ने पहले दौर में बीजिंग ओलंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट रमजान साहिन को हराकर बेहतरीन शुरुआत की. इसके बाद अगले दो मुकाबले जीतकर सुशील ने फाइनल में जगह बनाई. फाइनल में सुशील को जापानी पहलवान तत्सुहीरो योनेमित्सु के हाथों 1-3 से हार झेलनी पड़ी और उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा.

पहले भी रहे विवादों में

हत्या के आरोपी सुशील 2016 में सबसे पहले साथी पहलवान नरसिंह यादव के साथ विवाद के चलते सुर्खियों में आए थे. सुशील कुमार पहले 66 किलोग्राम वर्ग में खेलते थे, लेकिन उन्होंने 2016 में हुए रियो ओलंपिक के लिए अपना वजन बढ़ा लिया था और वह 74 किलोग्राम वर्ग में आ गए थे. इस वर्ग में भारत का ओलंपिक कोटा नरसिंह यादव ने हासिल किया था. ऐसे में इन दोनों पहलवानों के बीच ओलंपिक में जाने को लेकर विवाद हो गया था. इसके बाद दिसंबर 2017 में राष्ट्रमंडल खेलों के क्वालिफाइंग मुकाबले के दौरान भी सुशील कुमार विवादों में घिरे थे. सुशील ने क्वालिफाइंग मुकाबले के सेमीफाइनल में प्रवीण राणा को मात दे दी थी. जिसके बाद सुशील और प्रवीण के समर्थक आपस में भिड़ गए थे.

विजेंदर सिंह

विजेंदर सिंह
ओलंपिक खेलों में भारत के पहले मुक्केबाजी पदक विजेता

कांस्य पदक: बीजिंग ओलंपिक (2008)

विजेंदर सिंह (Vijender Singh) भारत को बॉक्सिंग में पहला ओलंपिक पदक दिलाने वाले भारतीय मुक्केबाज हैं. 2008 के बीजिंग ओलंपिक में विजेंदर ने मिडिलवेट केटेगरी में कांस्य पदक जीता था. विजेंदर को राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड, पद्म श्री से सम्मानित किया जा चुका है. 2015 में विजेंदर ने पेशेवर मुक्केबाजी में कदम रखा, जिसके चलते वह भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं. 2009 के विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीत चुके विजेंदर को 'रिंग ऑफ किंग' भी कहा जाता है.

वह बॉक्सिंग के अलावा बॉलीवुड में भी अपनी किस्मत आजमा चुके हैं. 2014 में उन्होंने फिल्म 'फगली' में काम किया, जिसने बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठाक प्रदर्शन किया था.

शुरुआती करियर

विजेंदर सिंह का जन्म 29 अक्टूबर 1985 को हरियाणा के भिवानी जिले में हुआ. उनके पिता बस ड्राइवर थे, जिन्होंने विजेंदर और उनके भाई मनोज की पढ़ाई के लिए ओवरटाइम ड्यूटी की. विजेंदर ने अपने भाई को देखकर ही मुक्केबाजी में कदम रखा था. 2003 में एफ्रो एशियन गेम्स जीतने के बाद इस मुक्केबाज ने एथेंस गेम्स 2004 के लिए क्वालिफाई कर सभी को चौंका दिया. हालांकि युवा विजेंदर का ओलंपिक का सफर पहले ही राउंड में खत्म हो गया. उन्हें तुर्की के मुस्तफा कारागोलु ने 25-20 से मात दी थी.

बीजिंग ओलंपिक

दो बार विफल रहने के बाद विजेंदर ने अंतिम क्वालिफाइंग टूर्नामेंट के जरिए बीजिंग ओलिंपिक में जगह बनाई थी. बीजिंग में अनुभवी बॉक्सर अखिल कुमार के क्वार्टर फाइनल में हार जाने के बाद विजेंदर मुक्केबाजी में पदक की एकमात्र उम्मीद बचे थे. विजेंदर ने उम्मीदों पर खरा उतरते हुए क्वार्टर फाइनल में इक्वाडोर के कार्लोस गोंगोरा को हराकर कांस्य पदक पक्का कर लिया. इसके बाद विजेंदर को सेमीफाइनल में क्यूबा के एमिलियो कोरिया के हाथों 5-8 से हार का सामना करना पड़ा. सेमीफाइनल मुकाबले में हार के बावजूद विजेंदर भारत के लिए इतिहास रच चुके थे.

बने नंबर वन बॉक्सर

अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी एसोसिएशन(AIBA) ने 2009 में विजेंद्र को 75 किलो मिडिलवेट नंबर-1 रैंक दिया. 2010 के ग्वांगझू एशियन गेम्स में विजेंदर सिंह ने स्वर्ण पदक जीता. उन्होंने फाइनल मुकाबले में दो बार के विश्व चैम्पियन उज्बेकिस्तान के अब्बोस एटोव को 7-0 से हराया था. इसके बाद 2012 के लंदन ओलंपिक मे विजेंदर क्वार्टर फाइनल में हारने के बाद अपना दूसरा ओलंपिक पदक जीतने से वंचित रह गए.

पेशेवर बॉक्सिंग करियर

10 अक्टूबर 2015 को सोनी व्हाइटिंग के खिलाफ विजेंदर सिंह ने अपनी पहली पेशेवर बॉक्सिंग फाइट लड़ते हुए आसानी से जीत दर्ज की. विजेंदर सिंह प्रोफेशनल बॉक्सिंग में 13 मुकाबले लड़ चुके है, जिनमें से लगातार 12 मुकाबले में उन्होंने जीत दर्ज की. इस साल रूसी बॉक्सर आर्टीश लोपसान ने विजेंदर सिंह को हराकर उनका विजय रथ रोक दिया था.

ड्रग्स विवाद में आया था नाम

विजेंदर सिंह का विवादों से भी पुराना नाता रहा है. 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में विवाद के चलते उन पर 4 अंकों का जुर्माना लगा, जिसके चलते उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था. 2012 में एक छापे के दौरान पंजाब पुलिस को 26 किलो हेरोइन मिली थी. इस दौरान जो कार बरामद हुई थी, वो विजेंदर की पत्नी के नाम पर थी. राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA) की जांच में पाया गया कि विजेंदर ने ड्रग्स नहीं लिया था.

... राजनीतिक पारी

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विजेंदर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए. दक्षिण दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते हुए विजेंदर तीसरे नंबर पर रहे और उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी.

गगन नारंग

गगन नारंग
लंदन में भारत के लिए पदकों का खाता खोला

कांस्य पदक: लंदन ओलंपिक (2012)

लंदन ओलंपिक भारत के लिए सबसे सफल रहा था, जिसमें भारत की झोली में 6 पदक आए थे. दिग्गज निशानेबाज गगन नारंग (Gagan Narang) लंदन ओलंपिक के क्वालिफाई करने वाले पहले भारतीय थे. संयोग से भारत के लिए पदकों का खाता भी गगन नारंग ने ही खोला था. ‌गगन 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में भारत के लिए कांस्य पदक जीतने में कामयाब रहे थे.

लंदन ओलंपिक से पहले ही गगन नारंग निशानेबाजी की दुनिया में अपनी पहचान बना चुके थे. 2006 और 2010 में हुए कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान उन्होंने कुल 8 गोल्ड मेडल हासिल किए थे. इस प्रदर्शन के चलते 2011 उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से नवाजा गया था. गगन नारंग आईएसएसएफ शूटिंग प्रतियोगिता में भी तीन स्वर्ण पदक जीत चुके हैं.

दो साल की उम्र में शुरू की शूटिंग

गगन नारंग का जन्म 6 मई 1983 को चेन्नई में हुआ था. गगन के पिता भीमसेन नारंग एयर इंडिया में मुख्य प्रबंधक के पद पर नियुक्त थे. नौकरी में तबादले के बाद भीमसेन नारंग का परिवार नन्हे गगन के साथ हैदराबाद जा बसा. गगन नारंग ने महज दो साल की उम्र में ही 'टॉय गन' से गुब्बारे को उड़ा दिया था. नन्हे गगन के इस करामात से सभी हैरान रह गए थे. उसके बाद उनका झुकाव शूटिंग की ओर बढ़ता चला गया. 1997 में गगन के पिता ने उनकी प्रतिभा को देखकर एक एयर पिस्टल भेंट की. साथ ही, उन्होंने गगन के अभ्यास के लिए घर में एक शूटिंग अखाड़ा भी बनवा दिया था. 2003 में गगन नारंग ने हैदराबाद में एफ्रो एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे.

लंदन ओलंपिक

2008 के बीजिंग ओलंपिक में गगन नारंग पदक जीतने से चूक गए थे, लेकिन लंदन में गगन का ओलंपिक पदक जीतने का सपना पूरा हुआ. गगन नारंग ने क्वालिफाइंग राउंड में 598 अंक हासिल करते हुए तीसरा स्थान प्राप्त किया. वहीं, दूसरी तरफ बीजिंग ओलंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा इस स्पर्धा के फाइनल में नहीं पहुंच सके थे. गगन नारंग ने फाइनल में 103.1 अंक जुटाए और कुल 701.1 के स्कोर के साथ कांस्य पदक जीता.

विजय कुमार

विजय कुमार
सिल्वर के साथ देश का नाम रोशन किया

रजत पदक: लंदन ओलंपिक (2012)

विजय कुमार (Vijay Kumar) ने 2012 के लंदन ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर सभी को चौंका दिया था. विजय ने पुरुषों की 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल प्रतियोगिता में यह पदक अपने नाम किया था. निशानेबाजी की दुनिया में विजय कुमार पहले भी बेहतरीन प्रदर्शन कर चुके थे, लेकिन लंदन ओलंपिक में शायद ही किसी ने इस करिश्मे की उम्मीद की होगी.

शुरुआती करियर

विजय कुमार का जन्म 19 अगस्त 1985 को हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में हुआ. विजय कुमार पिता बंकू राम भी रिटायर्ड फौजी हैं और वे सुबेदार की पोस्ट से रिटायर हुए थे. विजय 2001 में फौज में बतौर सिपाही शामिल हुए थे और दो साल बाद उन्हें मध्य प्रदेश के महू में आर्मी मार्क्समैन यूनिट में शामिल किया गया. इस यूनिट में सेना के प्रतिभावान निशानेबाज होते हैं.

विजय ने अपनी काबिलियत का परिचय देते हुए 2006 कॉमनवेल्थ गेम्स में दो स्वर्ण पदक जीते और फिर उसी साल 25 मीटर पिस्टल में एशियन गेम्स में भी कांस्य पदक पर कब्जा जमाया. इसके बाद विजय ने 2009 ISSF वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में देश के लिए रजत पदक जीता. विजय ने 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में तीन स्वर्ण पदक और एक रजत पदक अपने नाम किया और फिर एशियन गेम्स में भी कांस्य पदक जीता.

लंदन ओलंपिक

विजय कुमार ने 2011 के ISSF वर्ल्ड शूटिंग में एक बार फिर रजत पदक जीतते हुए पहली बार ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर लिया. लंदन ओलंपिक में 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल के क्वालिफिकेशन राउंड में विजय चौथे स्थान पर रहे. इसके बाद उन्होंने फाइनल में 40 में से 30 अंक बटोर कर रजत पदक अपने नाम किया था. इस स्पर्धा का स्वर्ण पदक क्यूबा के ल्यूरिस प्यूपो ने वर्ल्ड रिकॉर्ड 34 अंकों के साथ जीता.

विजय को 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय दल का ध्वजवाहक चुना गया. हालांक वह ग्लास्गो में पदक जीतने में कामयाब नहीं हो सके. कॉमनवेल्थ गेम्स की नाकामी को भुलाकर विजय ने इंचिओन एशियन गेम्स में 25 मीटर सेंटर फायर पिस्टल के टीम इवेंट का सिल्वर मेडल जीता.

2017 में सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. विजय की उपलब्धि का सम्मान करते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार ने उन्हें पुलिस में डीएसपी का पद दिया.

अवॉर्ड और सम्मान

  • 2007- अर्जुन पुरस्कार
  • 2012- राजीव गांधी खेल रत्न
  • 2013- पद्म श्री

योगेश्वर दत्त

योगेश्वर दत्त
रेपचेज में चला हरियाणा के पहलवान का दांव

कांस्य पदक: लंदन ओलंपिक (2012)

पहलवान योगेश्वर दत्त (Yogeshwar Dutt) ने 2012 में लंदन ओलंपिक में देश को कांस्य पदक दिलाया था. उन्होंने 60 किलोग्राम फ्रीस्टाइल भारवर्ग में यह पदक अपने नाम किया था. हालांकि योगेश्वर को प्री-क्वार्टर फाइनल में ही हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन योगेश्वर दत्त को पदक जीतने में किस्मत का साथ मिला. क्योंकि उन्हें हराने वाले रूसी पहलवान कुदुकोव फाइनल में पहुंच गए. जिसके चलते योगेश्वर को रेपचेज में खेलने का अवसर मिला था. 2014 एशियन गेम्स के गोल्ड मेडलिस्ट योगेश्वर को राजीव गांधी खेल रत्न और पद्म श्री से नवाजा जा चुका है.

शुरुआती करियर

योगेश्वर दत्त का जन्म 2 नवंबर 1982 को हरियाणा के सोनीपत जिले में हुआ था. योगेश्वर ने 8 साल की उम्र से ही कुश्ती में हाथ आजमाना शुरू किया था. कुश्ती में बलराज पहलवान उनकी प्रेरणा बने, जो हरियाणा में उन्हीं के गांव से ताल्लुक रखते थे. बाद में योगेश्वर दत्त ने अपने कोच रामफाल से कुश्ती की ट्रेनिंग ली और पहलवानी के दांव-पेच सीखे.

योगेश्वर के रेसलिंग करियर में उस समय अहम मोड़ आया, जब उन्होंने 2003 में लंदन में हुई कॉमनवेल्थ कुश्ती चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. फिर 2006 में उन्होंने दोहा में हुए एशियाई खेलों का ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. इसके बाद योगेश्वर ने 2007 के कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप और 2008 में एशियन चैम्पियनशिप का गोल्ड मेडल अपने नाम किया.

लंदन ओलंपिक

योगेश्वर दत्त ने लंदन में शानदार शुरुआत करते हुए पहले मैच में बुल्गारिया के पहलवान एनोतोली को हराकर प्री-क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई. लेकिन, इसके बाद उन्हें दूसरे ही दौर में रूसी पहलवान बेसिक कुदुकोव से हार झेलनी पड़ी. इसके बाद रेपचेज राउंड में योगेश्वर दत्त को ब्रॉन्ज मेडल जीतने के लिए लगातार तीन मैच जीतने थे. रेपचेज के पहले राउंड में योगेश्वर ने प्यूर्तो रिको के पहलवान मातोज फ्रैंकलिन को आसानी से मात दी. फिर अगले राउंड में योगेश्वर ने ईरानी पहलवान मसूद इस्माइलपूरजोबरी को हराया. इसके बाद योगेश्वर ने शानदार प्रदर्शन करते हुए उत्तर कोरिया के जांग म्यांग री को मात देकर कांस्य पदक जीत लिया. घुटने में लगी हुई चोट और एक सूजी हुई आंख के बाद भी उन्होंने पदक जीतने का जश्न मनाया.

सलमान से लिया था 'पंगा'

बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान को रियो ओलंपिक के लिए भारत की तरफ से गुडविल एम्बेसडर बनाया गया था. जिसके बाद योगेश्वर दत्त ने इस फैसले का विरोध किया था. योगेश्वर ने ट्वीट किया था, 'एम्बेसडर का क्या काम होता है कोई मुझे बता सकता है क्या. क्यूं पागल बना रहे हो देश की जनता को. पीटी उषा, मिल्खा सिंह जैसे बड़े स्पोर्ट्सस्टार हैं, जिन्होंने कठिन समय में देश के लिए मेहनत की. खेल के क्षेत्र में इस एम्बेसडर (सलमान खान) ने क्या किया?' हालांकि, योगेश्वर दत्त रियो ओलंपिक में पहले ही रांउड में हारकर बाहर हो गए थे, जिसके बाद सलमान के फैन्स ने योगेश्वर दत्त को जमकर ट्रोल किया था.

राजनीतिक पारी

योगेश्वर दत्त 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. उस चुनाव में बीजेपी ने उन्हें बरोदा विधानसभा में सीट से टिकट दिया. लेकिन वह कांग्रेस के कृष्ण हुड्डा से चुनाव में पराजित हो गए थे. 2020 में बरोदा विधानसभा सीट के उपचुनाव में बीजेपी ने योगेश्वर को फिर से अपना उम्मीदवार बनाया. लेकिन योगेश्वर दत्त को उपचुनाव में भी हार का मुंह देखना पड़ा.

साइना नेहवाल

साइना नेहवाल
ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय शटलर

कांस्य पदक: लंदन ओलंपिक (2012)

साइना नेहवाल (Saina Nehwal) ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं. साइना ने 2012 के लंदन ओलंपिक में महिला एकल बैडमिंटन स्पर्धा का कांस्य पदक जीत था. पूर्व वर्ल्ड नंबर-1 साइना ने अब तक दो दर्जन से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय टाइटल जीते हैं. साइना को खेल के क्षेत्र में किए गए अतुलनीय योगदान के लिए पद्मश्री, पद्म भूषण, अर्जुन पुरस्कार और राजीव गांधी खेल रत्न से नवाजा जा चुका है.

दुर्भाग्य से 31 साल की साइना टोक्यो ओलंपिक नहीं खेल सकेंगी, क्योंकि बीडब्ल्यूएफ ने कोरोना महामारी के कारण आखिरी तीन क्वालिफायर टूर्नामेंट रद्द कर दिए थे.

बचपन में था कराटे का शौक

साइना नेहवाल का जन्म 17 मार्च 1990 में ‌हिसार में हुआ था. हिसार में स्कूली शिक्षा दौरान ही उनके पिता हरवीर नेहवाल का ट्रांसफर हैदराबाद हो गया, जिसके चलते फैमिली भी वहां शिफ्ट हो गई. हैदराबाद शिफ्ट होने के बाद साइना ने कराटे में ब्राउन बेल्ट हासिल कर ली. लेकिन समय के साथ-साथ उनका लगाव बैडमिंटन के प्रति बढ़ने लगा. साइना की मां भी हमेशा से यही चाहती थीं कि उनकी बेटी नेशनल चैम्पियन बने और देश के लिए ओलंपिक मेडल लेकर आए. 2006 में साइना पहली बार चर्चा में आईं, जब 16 साल की उम्र में उन्होंने राष्ट्रीय अंडर-19 चैम्पियनशिप जीती.

इंटरनेशनल करियर

2008 में साइना ने वर्ल्ड जूनियर चैम्पियनशिप जीतकर बता दिया था कि वह बड़े मंच पर अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं. उसी साल उन्होंने बीजिंग ओलिंपिक खेलों के लिए भी क्वालिफाई किया था. बीजिंग ओलंपिक में क्वार्टर फाइनल तक पहुंचकर उन्होंने पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बनने का गौरव हासिल किया. इसके बाद 2009 में साइना बीडब्ल्यूएफ सुपर सीरीज का टाइटल जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं. 2010-11 साइना के करियर के लिए बेहद सफल रहा. इस दौरान उन्होंने सिंगापुर सुपरसीरीज, इंडोनेशिया सुपरसीरीज, हॉन्गकॉन्ग सुपरसीरीज समेत कई खिताब जीते.

लंदन ओलंपिक

लंदन ओलंपिक 2012 में साइना को चौथी वरीयता मिली थी. साइना ने अपने शुरुआती दो मैचों में आसान जीत दर्ज कर प्री-क्वार्टर फाइनल में पहुंच गई थीं. इसके बाद साइना ने प्री-क्वार्टर फाइनल मुकाबले में नीदरलैंड्स की जी याओ और क्वार्टर फाइनल में डेनमार्क की टिने बाउन को हराया. साइना को सेमीफाइनल में चीन की वांग यिहान ने हरा दिया, जिसके बाद उन्हें कांस्य पदक के लिए चीन की ही दूसरी वरीय शिन वैंग से मुकाबला करना पड़ा. उस मुकाबले में शिन वैंग ने घुटने में चोट के चलते मैच से हटने का फैसला किया, जिसके चलते साइना को कांस्य पदक मिला. वैंग के मुकाबले से हटने के वक्त साइना पहला गेम गंवाने के बाद मैच में 18-21, 0-1 से पिछड़ रही थी.

नंबर -1 बनकर रचा इतिहास

साइना नेहवाल अप्रैल 2015 में दुनिया की नंबर वन महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बन कर इतिहास रचा दिया था. साइना यह उपलब्धि हासिल करने पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी थीं. हालांकि साइना से पहले प्रकाश पादुकोण (1980) पुरुष वर्ग में दुनिया के नंबर वन खिलाड़ी रह चुके थे. साइना ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं. 2015 के चैम्पियनशिप में साइना ने चीन की सून यू को सीधे सेटों में 21-13, 21-13 में हराकर यह मुकाम हासिल किया था.

कश्यप आए साइना की जिंदगी में

साइना नेहवाल ने दिसंबर 2018 में बैडमिंटन खिलाड़ी पारुपल्ली कश्यप के साथ शादी के बंधन में बंध गईं. साइना और पारुपल्ली कश्यप की मुलाकत एक अभ्यास शिविर के दौरान हुई थी. साइना नेहवाल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह 2000 में पहली बार 10 साल की उम्र में कश्यप से मिली थीं और 2010 के दौरान उन्हें पहली बार लगा था कि कश्यप वह शख्स हैं, जिन्हें वह अपना जीवनसाथी बना सकती हैं.

साइना नेहवाल की जिंदगी पर बायोपिक भी बन चुकी है, जिसमें अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा ने साइना का किरदार निभाया था. इस साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर मुंबई में फिल्म का ट्रेलर लॉन्च किया गया था. फिल्म 'साइना' 23 अप्रैल को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर को रिलीज की गई थी.

एमसी मेरीकॉम

एमसी मेरीकॉम
ओलंपिक में पदक जीतने वाली इकलौती भारतीय महिला मुक्केबाज

कांस्य पदक: लंदन ओलंपिक (2012)

एमसी मेरीकॉम (Mangte Chungneijang Mary Kom) ओलंपिक में पदक जीतने वाली इकलौती भारतीय महिला मुक्केबाज हैं. मेरीकॉम ने लंदन ओलंपिक 2012 के 51 किलोग्राम फ्लाइवेट वर्ग में कांस्य पदक जीता था. मेरीकॉम के नाम विश्व चैम्पियनशिप में सर्वाधिक मेडल (6 गोल्ड+ एक सिल्वर+एक ब्रॉन्ज) जीतने का रिकॉर्ड है. वह इस मामले में पुरुष मुक्केबाज क्यूबा के फेलिक्स सेवॉन को पीछे छोड़ चुकी हैं, जिनके नाम विश्व चैम्पियनशिप में 7 पदक थे.

मेरीकॉम को 'सुपरमॉम' के नाम से भी जाना जाता है और उनके तीन बच्चे हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बॉक्सिंग नहीं छोड़ी. मेरीकॉम को लेकर बॉलीवुड में फिल्म भी बन चुकी है, जिसमें मेरीकॉम की भूमिका प्रियंका चोपड़ा ने निभाई थी.

शुरुआती जीवन

मेरीकॉम का जन्म 24 नवंबर 1982 को मणिपुर के गरीब किसान परिवार में हुआ था. उनके मन में बॉक्सिंग का आकर्षण 1999 में उस समय उत्पन्न हुआ, जब उन्होंने खुमान लम्पक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुछ लड़कियों को रिंग में लड़कों के साथ बॉक्सिंग के दांव-पेच आजमाते देखा था. 2000 में मेरीकॉम ने जब बॉक्सिंग शुरू की थी, तो उन्हें अपने घर से सपोर्ट नहीं मिला था. घर वाले मेरीकॉम के बॉक्सिंग के खिलाफ थे, लेकिन कड़ी मेहनत और लगन ने उनके घर वालों को भी मना लिया.

लंदन ओलंपिक

ओलंपिक खेलों के इतिहास में पहली बार लंदन गेम्स में महिला मुक्केबाजी को शामिल किया गया था. मेरीकॉम ने शानदार आगाज करते हुए प्री-क्वार्टर फाइनल में पोलैंड की कैरोलिना मिचालजुक को 19-14 हराया. फिर क्वार्टर फाइनल में ट्यूनिशिया की मारोआ रहाली को 15-6 से पराजित कर कांस्य पदक पक्का किया. बाद में मेरीकॉम को सेमीफाइनल में ग्रेट ब्रिटेन की निकोला एडम्स के हाथों 6-11 से हार का सामना करना पड़ा. 2016 में मेरीकॉम विश्व चैम्पियनशिप के दूसरे दौर में हार गई, जिसके चलते वह रियो ओलंपिक में भाग नहीं ले सकीं.

टोक्यो में पदक जीतने की है उम्मीद

एमसी मेरीकॉम ने एशिया/ओसनिया ओलंपिक क्वालिफायर के सेमीफाइनल में पहुंचकर टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया था. दूसरी वरीय मेरीकॉम ने क्वार्टर फाइनल में फिलीपींस की आयरिश मैग्नो पर 5-0 जीत दर्ज कर दूसरी बार ओलंपिक का टिकट हासिल किया. मेरीकॉम से पूरा देश टोक्यो ओलंपिक में पदक की आस लगाए बैठा है. खुद मेरीकॉम भी टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर अपने करियर का समापन करना चाहती हैं.

अवॉर्ड और सम्मान:

  • 2003- अर्जुन पुरस्कार
  • 2006- पद्म श्री
  • 2009- राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार
  • 2013- पद्म भूषण
  • 2020- पद्म विभूषण

साक्षी मलिक

साक्षी मलिक
ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान

कांस्य पदक: रियो डी जेनेरियो (2016)

रेसलर साक्षी मलिक (Sakshi Malik) ने रियो ओलंपिक के 58 किलो भारवर्ग की फ्रीस्टाइल कुश्ती में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था. वह ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन गई थीं. साक्षी ने रेपचेज के प्लेऑफ मुकाबले में किर्गिस्तान की पहलवान एसुलू तिनिवेकोवा को मात देकर रियो ओलंपिक में भारत के पदक का सूखा खत्म किया था. साक्षी को इस शानदार उपलब्धि के लिए राजीव गांधी खेल रत्न (2016) और पद्म श्री (2017) से नवाजा जा चुका है.

शुरुआती करियर

साक्षी मलिक का जन्म 3 सितंबर 1992 को हरियाणा के रोहतक जिले के मोखरा गांव में हुआ था. साक्षी को कुश्ती विरासत में मिली थी. उनके दादा बदलू राम जाने-माने पहलवान थे. 12 साल की उम्र में ही साक्षी पहलवानी सीखने के लिए अखाड़े में जाने लगी थीं. कुछ ही सालों में साक्षी ने लोकल कुश्ती टूर्नामेंट और जिलास्तरीय टूर्नामेंट में बड़े पहलवानों को मात देकर नाम कमा लिया. साक्षी मलिक ने 17 साल की उम्र में एशियन जूनियर चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया. फिर 2009 में एशियन जूनियर चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल जीतकर साक्षी ने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक हासिल किया.

इसके बाद 2010 में विश्व जूनियर चैम्पियनशिप में भी साक्षी ने कमाल दिखाते हुए ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया. बाद में साक्षी ने 2012 में कजाखस्तान में आयोजित हुए एशियन जूनियर चैम्पियनशिप का गोल्ड मेडल भी अपने नाम किया था.

रियो ओलंपिक

रियो ओलंपिक में साक्षी ने पहले क्वालिफिकेशन राउंड में स्वीडन की पहलवान मलिन जोहान्ना मैटसन को हराया. फिर राउंड ऑफ 16 में उन्होंने तकनीकी अंकों के आधार पर मॉल्दोवा की मारियाना चेरदिवारा को शिकस्त दी. इसके बाद क्वार्टर फाइनल में साक्षी को रूस की वेलेरिया कोबलोवा ने एकतरफा मुकाबले में साक्षी को हरा दिया. बाद में कोबलोवा के फाइनल मुकाबले में पहुंचने के चलते साक्षी को रेपचेज खेलने का मौका मिला.

रेपचेज के पहले राउंड में साक्षी मलिक का मुकाबला मंगोलिया की ओरखोन पुरेवदोर्ज से हुआ. साक्षी ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए ओरखोन को 12-3 से हराकर मुकाबला अपने नाम कर लिया. दूसरे मुकाबले में साक्षी मलिक का सामना किर्गिस्तान की पहलवान एसुलू तिनिवेकोवा से हुआ. एसुलू ने शुरुआत से ही साक्षी पर दवाब बनाते हुए पहले राउंड के अंत तक 5 अंकों की बढ़त ले ली. इसके बाद दूसरे राउंड में साक्षी ने जबर्दस्त वापसी करते हुए मुकाबले को 8-5 से अपने नाम कर लिया. इस तरह साक्षी ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन गईं.

टोक्यो के लिए नहीं कर सकीं क्वालिफाई

रियो ओलंपिक में पदक जीतने के बाद साक्षी का प्रदर्शन काफी खराब रहा है. वह अपने वजन वर्ग में उभरती हुई युवा पहलवानों को हराने में असफल रही हैं. इस साल मार्च में 62 किलो भारवर्ग में वह सोनम मलिक से एशियन ओलंपिक क्वालिफायर के ट्रायल के दौरान हार गई थीं, जिससे साक्षी का टोक्यो जाने का रास्ता बंद हो गया. बाद में 19 साल की सोनम मलिक ने एशियन ओलंपिक क्वालिफायर में शानदार प्रदर्शन करते हुए 62 किलो भारवर्ग में टोक्यो का टिकट भी हासिल कर लिया.

साथी रेसलर सत्यव्रत बने जीवनसाथी

साक्षी मलिक फिलहाल उत्तर रेलवे के वाणिज्यिक विभाग में कार्यरत हैं. साक्षी ने 2017 में साथी रेसलर सत्यव्रत कादियान के साथ शादी के बंधन में बंध गई थीं. साक्षी से करीब दो साल छोटे सत्यव्रत 97 किलोग्राम फ्रीस्टाइल भारवर्ग में रेसलिंग करते हैं. सत्यव्रत 2010 के यूथ ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने में सफल रहे थे. इसके बाद उन्होंने 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल भी जीता था.

पीवी सिंधु

पीवी सिंधु
ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला

रजत पदक: रियो डी जेनेरियो (2016)

स्टार भारतीय शटलर पीवी सिंधु (P. V. Sindhu) ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं. सिंधु ने रियो ओलंपिक 2016 के महिला एकल में यह उपलब्धि हासिल की थी. सिंधु के पास फाइनल में गोल्ड जीतने का मौका था, लेकिन स्पेन की कैरोलिन मारिन उन पर भारी पड़ गई थीं. 2019 में सिंधु ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप के फाइनल में जापान की नोजोमी ओकुहारा को हराकर गोल्ड मेडल जीत लिया था. इसके साथ ही सिंधु वर्ल्ड चैम्पियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई थीं. सिंधु को राजीव गांधी खेल रत्न (2016) और अर्जुन पुरस्कार (2013) से नवाजा जा चुका है. इतना ही नहीं उन्हें पद्मश्री (2015) और पद्म भूषण सम्मान (2020) भी मिल चुका है.

गोपीचंद से मिली प्रेरणा

पीवी सिंधु का जन्म 5 जुलाई 1995 को हैदराबाद में हुआ था. पीवी सिंधु के पिता पीवी रमन्ना और मां पी विजया नेशनल लेवल पर वॉलीबॉल खेल चुके हैं. रमन्ना को तो उनकी उपलब्धियों के लिए अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था. 2001 में पुलेला गोपीचंद के ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप का खिताब जीतने के बाद सिंधु ने बैडमिंटन प्लेयर बनने की ठान ली. सिंधु ने महज 8 साल की उम्र में बैडमिंटन रैकेट थाम लिया और इस खेल के प्रति उनका जुनून समय के साथ बढ़ता ही चला गया.

उन्होंने अपनी पहली ट्रेनिंग सिकंदराबाद में महबूब खान की देखरेख में शुरू की थी. इसके बाद सिंधु गोपीचंद की अकादमी से जुड़कर बैडमिंटन के गुर सीखने लगीं. कहा जाता है कि सिंधु ट्रेनिंग के लिए रोजाना 56 किलोमीटर की दूरी तय कर गोपीचंद की अकादमी पहुंचती थीं.

शुरुआती करियर

2009 में सिंधु ने कोलंबो में जूनियर एशियाई बैडमिंटन चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया था, जो सिंधु का पहला अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट था. 2012 में सिंधु ने लंदन ओलंपिक की चैम्पियन ली जुरेई को हराते हुए सबका ध्यान खींचा था. सितंबर 2012 में महज 17 साल की उम्र में सिंधु दुनिया की टॉप-20 खिलाड़ियों में शामिल हो गई थीं. 2013 के वर्ल्ड चैम्पियनशिप में ब्रॉन्ज जीतने के साथ ही सिंधु इस चैम्पियनशिप में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गईं. इसके बाद से 2015 को छोड़कर उन्होंने 2019 तक हरेक वर्ल्ड चैम्पियनशिप में मेडल जीता.

रियो ओलंपिक

रियो ओलंपिक में 9वीं सीड पीवी सिंधु ने शुरुआती तीन मुकाबले जीतकर अंतिम-8 में जगह बनाई. इसके बाद क्वार्टर फाइनल में सिंधु ने दुनिया की पूर्व नंबर एक और लंदन ओलंपिक की रजत पदक विजेता वांग यिहान को हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया. सिंधु ने इस मुकाबले में 22-20, 21-19 से जीत दर्ज की थी. फिर सिंधु ने सेमीफाइनल मुकाबले में जापान की नोजोमी ओकुहारा को सीधे गेमों में 21-19, 21-10 से शिकस्त दी. अब गोल्ड मेडल के लिए पीवी सिंधु का मुकाबला नंबर वन खिलाड़ी कैरोलिन मारिन से था. सिंधु ने पहले गेम में जबर्दस्त खेल दिखाते हुए 21-19 से जीत हासिल की. इसके बाद स्पेन की मारिन ने 21-12 से दूसरा गेम जीत हिसाब बराबर कर दिया. कड़े संघर्ष के बावजूद पीवी सिंधु तीसरे और निर्णायक गेम को 15-21 से गंवा बैठीं. सिंधु भले यह मैच हार गई हों, लेकिन उन्होंने अपने खेल से करोड़ों भारतीय फैंस का दिल जीत लिया था.

टोक्यो में पदक का रंग बदलने की उम्मीद

सिंधु टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने वाली इकलौती महिला शटलर होंगी. वर्ल्ड नंबर-7 सिंधु का हालिया फॉर्म उतना अच्छा नहीं रहा था और वह कई टूर्नामेंट्स के शुरुआती राउंड्स में ही बाहर हो गई थीं. हालांकि मार्च में वह स्विस ओपन के फाइनल में पहुंचने में जरूर सफल रही थीं. सिंधु को बड़े मैचों का खिलाड़ी कहा जाता है, ऐसे में इस बार उनसे ओलंपिक में गोल्ड की उम्मीद की जा रही है. वैसे, सिंधु की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी स्पेन की कैरोलिन मारिन चोट के चलते टोक्यो ओलंपिक से बाहर हो चुकी हैं. फिर भी सिंधु को ताई जू रिंग, नोजोमी ओकुहारा और अकाने यामागुची जैसे खिलाड़ियों से सतर्क रहना होगा.

ओलंपिक: हॉकी में भारत के अब तक 11 मेडल

भारतीय हॉकी टीम

भारत के ओलंपिक इतिहास में हॉकी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. यही एक खेल है, जिसमें हमने राज किया. हॉकी में भारत ने अब तक 8 स्वर्ण पदक सहित कुल 11 मेडल अपने नाम किए हैं. 1928 से 1956 तक इस खेल में भारत का एकछत्र साम्राज्य रहा. हालांकि 1980 के मॉस्को ओलंपिक में गोल्ड जीतने के बाद से भारत हॉकी में एक भी पदक नहीं जीत पाया है.

भारतीय हॉकी के स्वर्ण युग की शुरुआत एम्सटर्डम ओलंपिक (1928) से हुई थी, जब उसने पहली बार गोल्ड मेडल पर कब्जा किया. इसके बाद ओलंपिक में तो भारत ने स्वर्ण पदकों की झड़ी लगा दी. लॉस एंजेलिस (1932), बर्लिन (1936), लंदन (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न ओलंपिक (1956) में भारत ने लगातार स्वर्ण पदक जीते.

रोम ओलंपिक (1960) में लगातार 7वीं बार स्वर्ण पदक जीतने का भारत सपना टूटा था. फाइनल में पाकिस्तान के हाथों हार से रजत पदक से संतोष करना पड़ा. लेकिन टोक्यो ओलंपिक (1964) में पाकिस्तान पर पलटवार करते हुए भारत ने एक बार फिर स्वर्ण पदक जीत लिया.

मैक्सिको ओलंपिक (1968) में टीम पहली फाइनल में नहीं पहुंच पाई थी और कांस्य मिल पाया. म्यूनिख ओलंपिक (1972) में लगातार 10वां पदक मिला, लेकिन वह कांस्य रहा. आखिरकार मॉस्को ओलंपिक (1980) में भारत ने रिकॉर्ड 8वीं बार स्वर्ण पदक जीता. इसी के बाद हॉकी में पदकों का सूखा शुरू हो गया.

इस यादगार सफर में 'हॉकी के जादूगर' कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का अविश्वसनीय योगदान रहा. उन्होंने अपने आखिरी ओलंपिक (बर्लिन 1936) में कुल 13 गोल दागे थे. इस तरह एम्स्टर्डम, लॉस एंजेलिस और बर्लिन ओलंपिक को मिलाकर ध्यानचंद ने कुल 39 गोल किए, जो उनकी बादशाहत को बयां करती है.