अक्टूबर 2020. ये वो तारीख़ थी जब 'TRP के ट्रैप, मरकही पुलिस और सेक्सी प्याज़' पर चर्चा से एक आंदोलन शुरू हुआ था. श्रोताओं ने इसे हाथों-हाथ लिया और ये पॉडकास्ट कानों-कान एक ऐसी कम्युनिटी तक पहुँच गई, जिसे 'तीन तालिया' कहा जाना मंज़ूर था. तीन तालियों के अटूट स्नेह की बदौलत अब ये आंदोलन अपने अगले चरण में पहुंच चुका है. 10 सितंबर को तीन ताल के सौवें एपिसोड की रिकॉर्डिंग रखी गई और इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराने देश के कोने कोने से पहुंचे तीन तालिये.
गुलाब ख़स शरबत और नारियल पानी से गला तर करने के बाद, चाय-चुक्का का लुत्फ़ उठाया गया. फिर लंच में 'बाबा' के चुने हुए बाज़ क़िस्म के व्यंजनों और 'कर्तव्यभोग' और पान-गुलकंद के आस्वादन के साथ तीन ताल के सौवें एपिसोड की मज़ेदार महफ़िल जमी. इस शताब्दी सम्मेलन में बतकही शुरू हुई इस बात से कि आज के समय में तीन ताल, रेडियो और व्यंग्य क्यों जरूरी है. इसके बाद वकीलों की ज़िंदगी से जुड़े मज़ेदार क़िस्से सुनने को मिले. बातचीत के क्रम ने बाबा ने बताया कि वकालत में किस तरह का क्लास डिवाइड है और सफल वकील कैसे बनें. वकालत पर चर्चा हो तो कानून की उलझाऊ भाषा पर बात होनी लाज़मी है. सो हुई. वकीलों की नैतिकता को लेकर भी सवाल हुए और ताऊ ने ये भी बताया कि वकीलों का इकलौता काम क्या है. कोर्ट कचहरी से बाबा और ताऊ का कैसा रिश्ता रहा है, इस पर उनके निजी अनुभव सुनने को मिले.
चौचक चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कुलदीप बिज़ार ख़बर में मध्य प्रदेश के वंश बहादुर की बात जिन्होंने समोसा-चटनी के साथ कटोरी-चम्मच न मिलने पर सीएम हेल्पलाइन में शिकायत कर दी. इसके बाद तीन ताल के उत्तरार्ध में मृत्यु के उत्सव पर मज़ेदार बात हुई. शब्दों से शवयात्रा से लेकर श्मशान और मृत्युभोज के ऐसे ऐसे दृश्य खींचे गए कि दर्शक दीर्घा तीन तालियों के कहकहों से गुलज़ार रहा. आख़िर में सदेह मौजूद तीन तालियों ने अपने प्रेमपूर्ण उद्गार साझा किये, सवाल-जवाब और सीधा संवाद हुआ. कार्यक्रम के समापन के बाद तीन तालियों ने अपने फ़ेवरेट ताऊ, बाबा और सरदार के साथ आत्मीय पलों को कैमरे की नज़र से संजोने का काम किया और एक सामूहिक 'जय हो' के अनुनाद से तीन ताल के शताब्दी समारोह की इति श्री हुई.
(तीन ताल समेत आज तक रेडियो के सभी पॉडकास्ट, आप आजतक ऐप के अलावा एप्पल पॉडकास्ट, स्पॉटिफाई, गूगल पॉडकास्ट्स, जियो सावन, विंक और गाना पर भी सुन सकते हैं.)
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