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तालिबान की कमान किसके हाथ में?

तालिबान के वे नेता जो चलाएंगे अफगानिस्तान

Credits

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Reporter: Prabhash K Dutta

Creative producers: Rahul Gupta and Meghnad Bose

Photo researcher: Nishwan Rasool

UI developers: Vishal Rathour, Mohd. Naeem Khan

SEO: Kamlesh Shukla

मौलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा

मौलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा

पद-

तालिबान के सबसे बड़े नेता. हिबतुल्लाह अखुंदजादा के पद का नाम है- अमीर अल-मुमिनीन. इसका मतलब होता है- तालिबान के वफादारों का कमांडर. मुल्ला उमर ने 1990 में तालिबान की स्थापना के बाद ये उपाधि हासिल की थी.

समुदाय-

हिबतुल्लाह अखुंदजादा पश्तून हैं. उनके पूर्ववर्ती मुल्ला उमर और मुल्ला मंसूर भी पश्तून ही थे. इन दोनों नेताओं की तरह हिबतुल्लाह अखुंदजादा भी अफगानिस्तान के कंधार से हैं.

कबीला-

उमर जहां होतक कबीला थे और मंसूर अलीजई कबीले से थे. वहीं, हिबतुल्लाह अखुंदजादा पश्तून नूरजई कबीला से हैं.

रहबरी शूरा

रहबरी शूरा

हिबतुल्लाह अखुंदजादा तालिबान की काउंसिल रहबरी शूरा के प्रमुख हैं. ये काउंसिल पाकिस्तान के बलूचिस्तान के क्वेटा शहर से काम करती है. इसे 'क्वेटा शूरा' के नाम से भी जाना जाता है. क्वेटा शूरा की मंजूरी मिलने के बाद ही कोई फैसला मान्य होता है.

तीन उप नेता-

रहबरी शूरा के जरिए शासन करने में हिबतुल्लाह अखुंदजादा की मदद करने के लिए तीन उप नेता होते हैं. ये तीन उप नेता हैं- मुल्ला गनी बरादर, मुल्ला याकूब और सिराजुद्दीन हक्कानी.

प्रशासनिक इकाइयां-

रहबरी शूरा के तहत 17 आयोग हैं, जो तालिबान की सरकार चलाने में मदद करते हैं. इसे आप मंत्रालय मान सकते हैं. सैन्य, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत अन्य मामलों के लिए ये नीतियां निर्धारित करते हैं.

मुल्ला बरादर

मुल्ला बरादर

भूमिका-

मुल्ला बरादर फिलहाल तालिबान के राजनीतिक मामलों के मुखिया हैं. अभी तक वह कतर की राजधानी दोहा से काम करते रहे हैं. अमेरिका के साथ शांति समझौते को लेकर वार्ता दोहा में हुई है और इसका नेतृत्व बरादर ने ही किया था. अमेरिका-तालिबान वार्ता से पहले उन्हें पाकिस्तान की जेल से 8 साल बाद रिहा किया गया था.

समुदाय-

मुल्ला बरादर पश्तून हैं.

कबीला-

मुल्ला बरादर सादोजाई कबीले से हैं. ये पोपलजई कबीले की ही शाखा है.

मुल्ला बरादर का नाम पहले अब्दुल गनी अखुंद था. मुल्ला उमर ने उन्हें बरादर उपनाम दिया था. वह तालिबान के सह-संस्थापक हैं. मुल्ला बरादर ने मुल्ला उमर के लिए सहयोगी के तौर पर काम किया था.

मुल्ला मुहम्मद याकूब

मुल्ला मुहम्मद याकूब

मुहम्मद याकूब मुल्ला उमर के बेटे हैं और उन्हें तालिबान के भावी सुप्रीम नेता के तौर पर देखा जाता है. साल 2016 में उन्हें तालिबान का नेतृत्व करने का प्रस्ताव भी दिया गया था, लेकिन उन्होंने अपनी कम उम्र का हवाला देते हुए इनकार कर दिया था. याकूब ने इस पद के लिए हिबतुल्लाह अखुंदजादा का नाम आगे किया था. अभी उनकी उम्र 30-31 साल के बीच है.

भूमिका-

वह तालिबान के सैन्य कमांडर हैं. तालिबान के वैचारिक और धार्मिक मामलों की जिम्मेदारी भी याकूब पर ही है. पिछले पांच सालों में उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता में जबरदस्त उछाल आया है.

तालिबान में याकूब की छवि उदार शख्स के रूप में है. अमेरिका से समझौते की शर्तों को लागू करने का श्रेय भी याकूब को ही दिया जाता है. तालिबान ने वादा किया था कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के वक्त तालिबान उन्हें निशाना नहीं बनाएगा.

सिराजुद्दीन हक्कानी

सिराजुद्दीन हक्कानी

सिराजुद्दीन, हक्कानी नेटवर्क का नेतृत्व करते हैं. कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने हक्कानी नेटवर्क को आतंकी संगठन घोषित किया है. अमेरिकी सरकार ने सिराजुद्दीन पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा है.

समुदाय-

हक्कानी भी पश्तून ही हैं. इनका बचपन पाकिस्तान में बीता है.

कबीला-

सिराजुद्दीन हक्कानी जरदन कबीले से हैं. इस कबीले का संबंध अफगानिस्तान के खोस्त प्रांत से रहा है.

भूमिका-

तालिबान में सिराजुद्दीन हक्कानी बगावत से जुड़े मामलों को देखते हैं. तालिबान शासन के खिलाफ विरोध की आवाजों से निपटना उनकी जिम्मेदारी है.

मुल्ला अब्दुल हकीम इशाकजई

मुल्ला अब्दुल हकीम इशाकजई

मुल्ला अब्दुल हकीम इशाकजाई कट्टरपंथी मौलवी हैं, जो क्वेटा के इशाकबाद इलाके में एक मदरसा चलाते हैं. इशाकजई अमेरिका के साथ शांति वार्ता के लिए बनाई गई तालिबान की 21 सदस्यीय टीम का हिस्सा थे.

समुदाय-

इशाकजई भी पश्तून हैं और अफगानिस्तान के कंधार प्रांत से हैं. उन्हें कई लोग 'पश्तूनों का मौलवी' भी कहते हैं. इशाकजई ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वां प्रांत के दारुल उलूम हक्कानिया से स्नातक की पढ़ाई की है. कट्टरपंथ इस्लाम की शिक्षा और तालिबान लड़ाकों को तैयार करने की वजह से इसे 'जिहादी यूनिवर्सिटी' भी कहा जाता है. मुल्ला मोहम्मद उमर और जलालुद्दीन हक्कानी भी यहां के छात्र रहे हैं.

भूमिका-

इशाकजई तालिबान के हर कदम की इस्लाम के नजरिए से व्याख्या करते हैं. अब्दुल हकीम तालिबान की न्यायिक व्यवस्था की जिम्मेदारी भी संभालते हैं. अब्दुल हकीम को कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां तालिबान, अल-कायदा और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के बीच की कड़ी भी मानती हैं.

गैर-पश्तून तालिबान

गैर-पश्तून तालिबान

तालिबान के शीर्ष नेतृत्व में पश्तूनों का ही दबदबा है लेकिन कई नेता दूसरे समुदाय से भी हैं. तालिबान की सरकार में गवर्नर रह चुके कारी दिन मोहम्मद ताजिक हैं जबकि मौलवी अब्दुल सलाम हनाफी उज्बेक हैं. दोनों ही नेता दोहा में अमेरिका के साथ वार्ता करने वाले दल का भी हिस्सा थे.

कुल मिलाकर, तालिबान की शासन व्यवस्था पांच स्तर की है- सुप्रीम लीडर, उप नेता, शूरा काउंसिल, मंत्रालय और प्रशासनिक अंग. सबसे निचले स्तर पर गवर्नर और स्थानीय सैन्य कमांडर आते हैं.