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पगड़ी, पैग, परांदा, जूतियां, सूट और पॉलिटिक्स. ये ऐसी वजहें रही हैं जिनसे पंजाब का पटियाला न सिर्फ हिन्दुस्तान में बल्कि इंग्लिस्तान के डाइनिंग रूम में भी चर्चा में रहता है. 'लार्जर दैन लाइफ' इमेज पटियाला की यूएसपी रही है. एक वक्त था जब पटियाला रियासत के राजाओं की शाहखर्ची और लग्जरी देख अंग्रेज वायसराय, हाकिम और हुकुम भी चकित रह जाते थे. 

किला मुबारक, मोती महल, शीश महल, हवेलियों, कोठियों और मंदिरों के रूप में पटियाला रियासत की ये विरासत आज भी इस शहर में सामंती दर्प का मूक गवाह बनी हुई है. अपने वजूद के लगभग 270 सालों में पटियाला ने राजसी वैभव का शिखर देखा. मगर देश की आजादी के बाद जब रियासतों के विलय की बारी आई तो रणनीतिक महत्व पर स्थित पटियाला के तत्कालीन राजा यदविंदर सिंह ने भारतीय डोमिनियन के साथ पटियाला का विलय करने में तनिक भी देर नहीं लगाई.

By: Panna Lal
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पटियाला और कैप्टन का कनेक्शन

यदविंदर सिंह का जिक्र होता है तो भूत से वर्तमान की कड़ी जोड़ने के लिए सामने आ जाते हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह. जी हां कैप्टन अमरिंदर सिंह पटियाला के आखिरी राजा यदविंदर सिंह के पुत्र हैं. वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह जो कुछ महीनों पहले तक पंजाब के मुख्यमंत्री थे और अभी 79 साल की उम्र में एक बार फिर पंजाब चुनाव में अपनी अहमियत साबित करने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं.

पटियाला की कहानी उसी सिख योद्धा से शुरू होती है जिनके नाम पर ये नगर पटियाला के नाम से जाना जाने लगा. इस बहादुर सिख लड़ाके का नाम था बाबा आला सिंह. 1763 में बाबा आला सिंह से शुरू हुई पटियाला रियासत की ये यात्रा 1947 तक चली जब तत्कालीन महाराजा-ए-राजगन यदविंदर सिंह ने पटियाला का विलय भारत में कर दिया. 270 सालों का ये सफर उल्टे क्रम में कैप्टन अमरिंदर सिंह,यदविंदर सिंह,भूपिंदर सिंह,राजिन्दर सिंह,महेन्दर सिंह नरेन्दर सिंह,करम सिंह,साहिब सिंह,अमर सिंह से होते हुए बाबा आला सिंह तक पहुंचता है, जिन्होंने शहर पटियाला की नींव रखी थी.


बाबा आला सिंह ने रखी पटियाला की नींव

पटियाला राज्य के संस्थापकों का प्रारंभिक इतिहास किंवदंतियों,मिथकों और वास्तविक कथाओं की मिली-जुली कहानी है. पटियाला के बनने की कहानी हम आपको बताएं इससे पहले हम आपको उस काल खंड की एक झलक दिखाते हैं.

पटियाला,नाभा और जींद रियासतों के शासक चौधरी फूल सिंह को अपना पूर्वज मानते हैं. इन्हीं चौधरी फूल से फुल्कियां राजवंश का सिलसिला शुरू हो गया. कहा जाता है कि इन्हीं चौधरी फूल सिंह के एक बेटे चौधरी राम सिंह को गुरु गोविंद सिंह ने आशीर्वाद दिया था. इन्हीं चौधरी राम सिंह के बेटे बाबा आला सिंह ने 1714 ईस्वी में अपने पिता से इस राजवंश का नेतृत्व हासिल किया.

18वीं सदी में जब हिन्दुस्तान में मुगल शासन का इकबाल कमजोर पड़ने लगा तो कई क्षत्रप स्वतंत्र सत्ता के लिए मचलने लगे. पंजाब में फुल्कियां राजवंश से जुड़े बाबा आला सिंह ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया. गुरु गोविंद सिंह की सीख देग-तेग फतेह,जिसका अर्थ है कि सिख जरूरतमंदों का पेट भरे और उनकी रक्षा भी करे,को बाबा आला सिंह ने समझ लिया. उन्होंने वक्त की नब्ज को पकडा. जब 1732 में पंजाब में मुगल शासन ध्वस्त हो गया तो दूरदर्शी और साहसी व्यक्तित्व के स्वामी आला सिंह ने 30 गांवों की एक छोटी-सी जमींदारी से एक स्वतंत्र रियासत की नींव डाली. ये जगह थी बरनाला. आला सिंह ने धीरे-धीरे आस-पड़ोस के और इलाकों को कब्जे में लिया और अपने क्षेत्र का विस्तार किया. पटियाला जिले की सरकारी वेबसाइट इस कहानी की पुष्टि करती है.


आला की पट्टी से बना पटियाला

अठारहवीं शताब्दी के मध्य में आला सिंह को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. मुगलों का पतन हो रहा था. भारत के अलग अलग हिस्सों पर कब्जा करने के लिए अफगान और मराठों के बीच जबर्दस्त खींचतान मची थी. इन विपरित परिस्थितियों में बाबा आला सिंह ने अपने कई समकालीनों के विपरीत,मुगलों,अफगानों और मराठों से निपटने में जबरदस्त साहस और चतुराई का प्रदर्शन किया और अपना स्वतंत्र झंडा कायम रखा.

1763 में बाबा आला सिंह ने एक नई जगह पर कब्जा किया और वहां पर एक कच्ची गढ़ी बनाई. आगे चलकर इसी कच्ची गढ़ी को आला की पट्टी यानी कि आला की जमीन कहा जाने लगा. बाद में यह पट्टी आला हो गया, फिर धीरे धीरे लोग इस जगह को पटियाला कहने लगे. जिस कच्ची गढ़ी की नींव बाबा आला सिंह ने रखी थी वो आज किला मुबारक के नाम से जाना जाता है. इसी किला मुबारक के चारों ओर वर्तमान शहर पटियाला बसा हुआ है.


महाराजा रणजीत सिंह का उदय

इसके अगले 40-45 सालों में पटियाला एक कच्चे नगर से पक्के किले में धीरे-धीरे तब्दील होता रहा. मुगलों, अफगानों और मराठों के साथ इस रियासत का टकराव चलता रहा. लेकिन पटियाला को असली चुनौती महाराजा रणजीत सिंह के उदय से मिली. पटियाला के उत्तर में रणजीत सिंह अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे तो पूर्व की सीमा में ईस्ट इंडिया कंपनी की निगाहें इस राज्य पर थी. लेकिन पटियाला अपना स्वतंत्र अस्तित्व हर हालत में बरकरार रखना चाहता था. यहां के राजा ईस्ट इंडिया कंपनी के पास पहुंचे. कहीं कूटनीति, तो कही भय तो कहीं संवाद का सहारा लिया गया. 1809 में अंग्रेजों, रणजीत सिंह के बीच अमृतसर का समझौता हुआ. इसके तहत पटियाला, नाभा और जींद जैसे राज्यों को रणजीत सिंह के आक्रमणों से मुक्ति मिल गई. रणजीत सिंह ने कहा कि सतलज नदी के दूसरी छोर पर जो रियासतें हैं. उनपर वो हमला नहीं करेंगे. इस तरह से पटियाला रियासत अंग्रेजों की मित्र बन गई.


1857 में कायम रही दोस्ती और फ़रज़न्द-ए- ख़ास-ए-दौलत-ए-इंग्लिशिआ की उपाधि

पटियाला रियासत और अंग्रेजों की ये दोस्ती 1857 में भी कायम रही. कहा जाता है कि 1857 में जब दिल्ली पर कब्जा करने के लिए क्रांतिकारियों की फौज आई तो अंग्रेजों के कई अफसरों ने यहां से भागकर पटियाला में ही शरण ली थी. इस के एवज में अंग्रेजों ने पटियाला रियासत को अपना खास दोस्त घोषित कर दिया और 1858 में पंजाब के महाराजा को फ़रज़न्द-ए- ख़ास-ए-दौलत-ए-इंग्लिशिआ की उपाधि दी. इस का अर्थ होता है अंग्रेजों का खास दोस्त.


1200 कमरे और 300 एकड़ का मोती बाग महल

पटियाला के राजाओं की शाही जिंदगी की चर्चा होती है तो महाराजा राजिंदर सिंह का जिक्र होता है. पटियाला के जिस लार्जर दैन लाइफ इमेज और किंग साइज जिंदगी की चर्चा किताबों कहानियों में होती है उनमें पहला नाम राजिंदर सिंह का आता है. इस महल का निर्माण कार्य महाराजा नरेन्‍द्र सिंह के काल में शुरू हुआ था. महाराजा राजिंदर सिंह ने मोती बाग महल का विस्तार किया. इस महल में 1200 कमरे हैं और ये 300 एकड़ में फैला हुआ है. इस पैलेस में अब नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पोर्ट्स है. एक अंग्रेज लिखता है कि इस महल के बाथरूम बॉलरूम जैसे होते थे. उन्होंने शिमला में अपने घर बनवाए. किंवदंतियों में शिमला के स्कैंडल प्वाइंट का जिक्र है, जहां की कहानियां महाराजा राजिंदर सिंह से जुड़ी हुई हैं.


'पटियाला राजाओं के नाम फर्स्ट का रिकॉर्ड'

महाराजा राजिंदर सिंह पहले भारतीय थे जो कार के मालिक थे. उनके पास डी-डीयोन गाड़ी थी. जेंटलमैन का गेम कहे जाने वाले क्रिकेट को भारत में लोकप्रिय करने में महाराजा राजिंदर सिंह ने अपनी भूमिका निभाई. उन्हें क्रिकेट का बहुत शौक था. उन्होंने शिमला के चैल में एक पहाड़ को काटकर क्रिकेट मैदान बनवाया. क्रिकेट के अलावा पोलो, फील्ड हॉकी और अंग्रेजी बिलियर्ड्स खेलने के लिए भी उन्हें जाना जाता था.

राजिंदर सिंह के नाम कार रखने वाले पहले भारतीय होने का रिकॉर्ड है तो उनके बेटे भूपिंदर सिंह वैसे कुछ चुनिंदा भारतीयों में शामिल थे जिनके पास विमान था.


विलासिता और भव्यता के भूप भूपिंदर सिंह

महाराजा भूपिंदर सिंह भारत में विलासिता और भव्यता के जीवंत प्रतीक थे. जिस पटियाला पैग की चर्चा महफिलों और पार्टियों में होती है वह भूपिंदर सिंह की ही खोज थी. 9 नवंबर 1900 को अपने पिता, महाराजा राजिंदर सिंह की मृत्यु के बाद, 9 साल की उम्र में ही भूपिंदर सिंह पटियाला की गद्दी पर आसीन हुए. एक काउंसिल ऑफ रीजेंसी ने उनके नाम पर शासन किया, जब तक कि उन्होंने 1 अक्टूबर 1909 को अपने 18 वें जन्मदिन से कुछ समय पहले आंशिक शक्तियां नहीं ले लीं.

18 साल के युवा भूपिंदर सिंह शौकीन तबीयत और रंगीन मिजाज शख्स थे. दावा किया जाता है कि वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिनके पास विमान था, इस विमान को उन्होंने 1910 में यूनाइटेड किंगडम से खरीदा था. इस विमान के लिए उन्होंने पटियाला में एक हवाई पट्टी बनाई थी. वह शायद पटियाला के सबसे प्रसिद्ध महाराजा हैं, जो अपनी फिजूलखर्ची और क्रिकेटर होने के लिए जाने जाते हैं.

किंवदंती है कि उनके काफिले में 20 रॉल्स रॉयस कारें थीं. इन कारों को खरीदने को लेकर कई कहानियां गूगल में मिलती हैं. जहां बताया गया है कि जब ब्रिटेन में रॉल्स रॉयस के शो रूम में भूपिंदर सिंह इन कारों के बारे में जानकारी मांगने गए तो, सेल्समैन ने भारतीय समझकर उन्हें कहा कि ये महंगी कारें वे नहीं खरीद पाएंगे. इस कथित अपमान से भूपिंदर सिंह इतने नाराज हुए कि उन्होंने 20 की 20 रॉल्स रॉयस कारें खरीद ली. भूपिंदर सिंह ने किंग साइज लाइफ को अक्षरश: जीया.


पटियाला नैकलेस की कहानी

भूपिंदर सिंह महिलाओं और जूलरी के दीवाने थे. उन्होंने कई शादियां की थीं. किंवदंतियां हैं कि उन्होंने 10 शादियां की थीं. उनके राजमहल में कई स्त्रियां रहती थीं. दुनिया के राजाओं को ईर्ष्या करने के लिए मजबूर कर देने वाले पटियाला नैकलेस के मालिक महाराजा भूपिंदर सिंह ही थे. इस हार को दुनिया की प्रसिद्ध आभूषण निर्माता कंपनी हाउस ऑफ कर्टियर ने बनाया था. इस हार में 5 लड़ियां थीं. उस हार के केंद्र में उस वक्त दुनिया का सातवां सबसे बड़ा हीरा जड़ा था. जिसका वजन 234.65 कैरेट था. इस नैकलेस से जुड़ी कई कहनियां मिलती हैं. कहा जाता है कि 1948 में ये नैकलेस पटियाला के शाही खजाने से गायब हो गया. इसकी खोज होती रही, इसका कोई पता नहीं चला. लेकिन 1982 में जेनेवा में एक नीलामी में इसका एक हीरा फिर से सामने आया. इसके बाद से ये हार टुकड़ों टुकड़ों में अलग अलग जगह देखा गया, ठीक इस रियासत के बिखरने की कहानी की तरह.

भूपिंदर सिंह ने ही 1917 में स्टेट बैंक ऑफ पटियाला की स्थापना की. यही नहीं उनकी कई शाही इमारतें आज खिलाड़ियों के लिए काम आती हैं.


पटियाला इलेवन और पटियाला टाइगर्स थीं टॉप टीमें

खेलों के क्षेत्र में महाराजा भूपिंदर सिंह का योगदान सबसे बड़ा रहा है. वह 1911 में इंग्लैंड का दौरा करने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान थे. 1915 से 1937 के बीच प्रथम श्रेणी के उन्होंने 27 मैच खेले. उनकी क्रिकेट और पोलो टीमें-पटियाला इलेवन और पटियाला टाइगर्स भारत की सर्वश्रेष्ठ टीमों में से थीं. महाराजा भूपिंदर सिंह BCCI के संस्थापक सदस्यों में थे. क्रिकेट को लोकप्रिय करने में उनका बड़ा योगदान रहा है.


खेल के बाद होती थी पार्टियां, पार्टियों से निकला पटियाला पैग

पटियाला पैग ही क्यों कहा जाता है? अपने फ्रैंड सर्किल में आपका इस सवाल से हो सकता है सामना हुआ हो? आम बोल-चाल की भाषा में पटियाला पैग यानी 120 एमएल व्हिस्की का पैग. या फिर चार स्मॉल या फिर दो बिग पैग. लेकिन इनका बिग ब्रदर है पटियाला पैग. इस पटियाला पैग की कहानी भी महाराजा भूपिंदर सिंह से ही जुड़ी है.

महाराजा भूपिंदर सिंह को खेलों का शौक तो था ही. वे अक्सर ब्रिटेन से अंग्रेजों की टीम अपने यहां बुलाते थे. एक मौके पर आयरलैंड की पोलो टीम पटियाला के दौरे पर आई. टीम का नाम था वायसरायज प्राइड. इस टीम को भूपिंदर सिंह की टीम के साथ दोस्ताना मैच खेलना था. भूपिंदर सिंह चाहते थे कि यह मैच हर हाल में भारत ही जीते. लेकिन आयरलैंड की टीम भी मजबूत थी. अब पटियाला के राजा ने एक योजना बनाई. आयरलैंड की टीम जमकर शराब पीती थी. मैच से पहले एक ग्रैंड पार्टी हुई. भूपिंदर सिंह ने मेहमानों के लिए खुद पैग बनाए.


फिर मयकशों की महफिल में फेमस हो गया पटियाला पैग

कहा जाता है कि महाराजा ने अपनी सबसे बड़ी अंगुली से नापकर पेग बनाए. अंग्रेजों ने दिखावे में जमकर शराब पी. देर रात तक पार्टी चली. अगली सुबह मैदान में आयरलैंड की टीम पस्त हो गई. आयरिश टीम को मैच में शिकस्त का सामना करना पड़ा. झेंप मिटाने के लिए आयरिश टीम ने भूपिंदर सिंह से कहा कि उनके पैग काफी बड़े थे और इसकी वजह से उनकी हालत खराब हो गई.

अंग्रेजों के आरोपों के जवाब में महाराजा भूपिंदर सिंह ने कहा कि हां, हमारे पटियाले पैग बड़े ही होते हैं! मेजबान भूपिंदर सिंह से जवाब सुनने के बाद भला कौन कुछ बोल सकता था और तब से ही 'पटियाला पैग' मयकशों की दुनिया में प्रसिद्ध हो गया. आने वाले दिनों में इसकी चर्चा और इसकी नकल करने की भूख बढ़ती ही गई.


अलग थे यदविंदर सिंह, शाही ठाठ पर लगाया ब्रेक

महाराजा भूपिंदर सिंह की जिंदगी काफी छोटी रही. अक्टूबर 1891 में जन्मे भूपिंदर सिंह का निधन 46 साल की उम्र में 23 मार्च 1938 को हो गया. इसके बाद उनके बेटे महाराजा यदविंदर सिंह राजगद्दी पर बैठे. पुरुखों की विलासितापूर्ण जिंदगी की कहानियां सुन चुके यदविंदर के मिजाज एकदम विपरीत थे. देश की परिस्थितियां भी विपरीत थीं. देश में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई शिखर पर थी. यूं तो पटियाला रियासत की श्रेणी में आता था और इसे अंग्रेजों का आशीर्वाद प्राप्त था, लेकिन आजादी को लेकर मुखर अभिव्यक्ति की आवाज रियासत तक पहुंच चुकी थी. 1938 में यदविंदर सिंह पटियाला के राजा बन गए.

उन्होंने राज्य की शाहखर्ची बंद कर दी. शाही ठाठ पर रोक लगा दी. सामान्य जीवन जीने लगे. इस बीच पाकिस्तान की मांग उठने लगी. भोपाल के नवाब का अपना ही गेम था, वे रियासतों के राजाओं को इस बात में राजी करने में लगे थे कि वे भारत में अपना विलय न करें बल्कि अपनी सत्ता स्वतंत्र रखें. यदविंदर सिंह चैंबर ऑफ प्रिसेंस के सदस्य थे. इस दौरान उन्होंने भारत के पक्ष में अपने पद का बेहतरीन इस्तेमाल किया. यदविंदर सिंह ने दूसरी रियासतों के राजाओं को इस बात के लिए राजी किया कि वे भारत को ज्वाइन करें.

सरदार पटेल ने भारत के एकीकरण में यदविंदर सिंह के योगदान को याद करते हुए कहा है, "मुझे उस उल्लेखनीय योगदान का उल्लेख करना चाहिए जो पटियाला के महाराजा ने भारत की एकता और अखंडता के लिए किया है. उन्होंने देश की बात ऐसे समय में की जब रियासतों में बहुत कम दोस्त थे और जब भारत को कमजोर करने के गंभीर प्रयास किए जा रहे थे. यह उनका देशभक्तिपूर्ण नेतृत्व था जिसने भारतीय डोमिनियन में विलय की समस्या के प्रति राजकुमारों के रवैये में बदलाव के लिए बड़े पैमाने पर योगदान दिया."


चुनाव बताएगा कितना बचा है राजसी 'ठाठ'

पिछले कुछ महीनों में पटियाला की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ है. अब मौजूदा 'प्रिंस ऑफ पटियाला' कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अपने रिश्ते तोड़ चुके हैं, उन्होंने नई पार्टी बनाकर बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. देखना होगा कि पटियाला की सियासत में कितनी राजसी 'ठाठ' बाकी है?