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हवेली, मौत वाला रूट और समाधि पर उमड़ते फैंस... एक साल बाद ऐसा है सिद्धू मूसेवाला का गांव मूसा

सिद्धू मूसेवाला...वो मशहूर गायक जो गाता पंजाबी में था, लेकिन आवाज सात समंदर पार तक सुनी और सराही जाती थी. उम्र थी महज 29 साल और पिछले साल मई महीने की 29 तरीख को ही अपने गांव से कुछ 5-6 किलोमीटर दूर हत्यारों की गोलियों का शिकार बन गया. वो गोलियां जिन हथियारों से निकलीं वो इस देश में बिकते तक नहीं. यानी साजिशें इंटरनेशनल थी और वजह थी गहरी रंजिश. हत्या की जिम्मेदारी लेने वाले गैंगस्टर्स साफ कहते हैं कि उसका थापी मारना हमें रास नहीं आ रहा था. दरअसल यह मूसेवाला का सिग्नेचर स्टेप था. वो थापी मारता, अपने गानों से क्रांति लिखता और सोचता था कि पंजाब की सियासत में एंट्री आसान हो जाएगी. एंट्री तो हुई थी, लेकिन चुनावी नतीजों ने एग्जिट भी उतनी ही तेजी से करा दिया. मूसेवाला की मौत के बाद कैसा है उसका मूसा गांव और वहां रहने वाले लोगों का जीवन? जानने के लिए हम पहुंचे पंजाब के मानसा जिले के उसी गांव मूसा में.

हम जब मूसा गांव पहुंचे तो वहां भीड़ ही भीड़ दिखी, गांव वालों की कम बाहर से आए हुए लोगों की ज्यादा. सिद्धू की समाधि के आसपास तो अब बाजार लगा हुआ है. जैसे कि किसी पीर की मजार हो और बाहर चादरें बिक रही हों. ये 29 वर्षीय गायक सिद्धू मूसेवाला का चार्म ही था, जो कि मौत के बाद भी लोगों को अपनी ओर खींच रहा है.

मूसा का नजारा कुछ ऐसा है जैसे पूरा क्षेत्र उस एक शख्स के लिए ही समर्पित हो. हर दुकान, हर चौराहे पर उसकी तस्वीरें. हर ट्रैक्टर और गाड़ी में उसी के गाए गाने. इस हत्याकांड को एक साल बीत चुका है. गांव के हर शख्स ने पिछली 29 मई को ऐसे मातम मनाया जैसे अपने ही घर का कोई खो दिया हो. आज एक साल बाद भी गांव के बुजुर्गों की जुबान पर यही लाइन है कि हमारी खुद की औलाद मर गई.

सिद्धू की मशहूरियत का अंदाजा आप ऐसे लगाइए कि उसकी मौत के एक साल बाद भी उसके फैन्स मूसा गांव, सिद्धू का घर देखने आते हैं. कई लोगों की भीड़ के बाद भी गांव में एक अजीब तरह का सूनापन बिखरा हुआ है. जब हम गांव पहुंचे तो गांव वालों की नजरों में अजनबियों को लेकर अजीब सा डर दिखा.

हालांकि थोड़ा बात करने और परिचय देने के बाद हर शख्स बात करने को राजी भी हो गया.

सिद्धू ने अपने कई गानों में मूसा गांव का जिक्र किया. यह जिक्र सिर्फ गानों तक सीमित नहीं था. सिद्धू के गांव पहुंचकर वास्तव में महसूस किया जा सकता है कि एक शख्स अपनी मिट्टी से कितना प्यार कर सकता है. सिद्धू के पुराने घर के बाहर एक बुजुर्ग बताते हैं कि सिद्धू ने गांव की भलाई में इतने काम किए, जितने कोई वोट लेने वाला नेता भी नहीं करता. कोरोना काल में गांव वालों की बहुत मदद की. गांव में सड़क, पानी या किसी भी चीज के लिए दिक्कत नहीं होने दी. एक आम आदमी की जरूरत की हर चीज उसने अपने गांव वालों के लिए उपलब्ध कराई.

हर पल रो रही मां की आंखें

बेटे के जाने का ठीक से गम भी नहीं मना पाए माता-पिता के सिर पर यह फैन्स भी एक जिम्मेदारी की तरह ही हैं. पहले फैन्स की इस भीड़ को सिद्धू हंसकर डील कर लेता था, लेकिन अब यह सिद्धू के माता-पिता से मिलने आते हैं. सिद्धू की हवेली पर लोगों का हुजूम रहता है. कुछ देर को हवेली का गेट खुलता है. जब गेट खुला तो हमें एक झलक सिद्धू की मां की भी दिखाई दी. हम बात करना चाहते थे सुरक्षाकर्मियों ने उनकी खराब तबीयत का हवाला देकर इजाजत नहीं दी. मां बस गेट से बाहर आईं और 5-7 मिनट तक बेटे के फैन्स के साथ फोटो खिंचाईं, नौजवानों को आशीर्वाद दिया और दुखी मन से वापस हवेली में चली गईं. सिद्धू की मां अब भी बेटे की राह तकती हैं जबकि पिता लोगों से डील करना सीख चुके हैं. या यूं कहें कि वक्त ने सिखा दिया.

इसी दोपहर में कुछ घंटे हम भी हवेली के बाहर खड़े रहे. परिचय देने के बाद दरवाजा खोलकर हमें अंदर बुलाया गया. लेकिन कैमरा और माइक के इस्तेमाल की मनाही थी. हवेली में कुछ कदम चलते ही सीधे हाथ पर एक बैठक सी है. सफेद दीवारें और कमरे में सिद्धू की तस्वीरें, कुछ तोहफे भी रखे थे. क्रिकेट मैच में जीती गई एक बड़ी सी ट्रॉफी भी रखी थी. सामने ही खाट पर सफेद कुर्ता और नारंगी रंग की पगड़ी पहने सिद्धू के पिता बलकौर सिंह लेटे हुए थे. वो उठे और बातचीत शुरू हुई. न्याय की उम्मीद खो रहे पिता का कहना है कि अब वो मौन रहेंगे. उन्होंने बातचीत बहुत नपे-तुले अंदाज में की. पिता के अंदर सिस्टम को लेकर रोष है. उनका कहना है कि इस उम्र में बंदूकों से तो मैं लड़ नहीं सकता, आवाज ही बुलंद कर सकता हूं, लेकिन यह सरकार मुझे वो भी नहीं करने देना चाहती.

क्या राजनीति में जाएंगे? इस सवाल पर बलकौर सिंह कहते हैं कि मैं तो बस न्याय चाहता हूं. मेरा जवान बेटा तो चला गया लेकिन यहां दुश्मन अब भी कई हैं. इसलिए पावर बहुत जरूरी है. जब हमारी सरकार (कांग्रेस) आएगी तो सबको देख लिया जाएगा. सिद्धू के पिता कहते हैं कि मैं तो फौजी था, लेकिन अब वक्त ने ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है कि समझ नहीं आता कि देश के लिए अच्छा कहूं या बुरा. मेरे जवान बेटे को मरे एक साल हो गया. अब तक कुछ नहीं हुआ. हत्यारे जेल में बैठकर इंटरव्यू करते हैं. सोशल मीडिया पर मुझे ट्रोल किया जाता है. मेरी तस्वीरों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है.

बेटे द्वारा बनवाई हुई किले जैसी हवेली में बैठे पिता का कहना है कि ये धन-दौलत मेरे बेटे की मेहनत का नतीजा है. लेकिन इससे भी कहीं ज्यादा कीमती हैं वो फैंस जो आज भी सिद्धू को इतना प्यार करते हैं. बेटा तो चला गया लेकिन फैन्स का यहां आना नहीं रुका. उन तमाम लोगों के प्रति मेरी कुछ जिम्मेदारियां हैं. मैं सोशल मीडिया पर लोगों का सिद्धू के लिए प्यार भी देखता हूं तो कुछ लोग ऐसे भी दिख जाते हैं जो कि हमारे लिए खतरा हों. हमारे लिए तो यह समझना बड़ा मुश्किल है कि कौन दोस्त है, कौन दुश्मन.

लौटते वक्त बलकौर सिंह ने सिद्धू की एक किताब भी भेंट की. किताब में सिद्धू के गानों का संदर्भ है.

आखिर में सिद्धू की ही कुछ लाइनें पिता ने गुनगुनाईं भी.

‘कदी देखके दुनियादारी नु

हलक जिया आ जांदा

हो कदे तेरे वांगु मां मेरिए

मेनु तरस जिहा आ जांदा.

इसका मतलब हिंदी में कुछ ऐसा है...

कभी दुनियादारी को देखकर

मन भर जाता है,

और कभी तेरी तरह मेरी मां

मुझे तरस आ जाता है.

सिद्धू के पिता से बात करने के बाद हम सिद्धू के पुराने घर पहुंचे. वो घर अब बंद है. पड़ोसी बताते हैं कि सिद्धू के जाने के बाद अब परिवार यहां कम ही आता है. परिवार की जान को खतरा भी रहता है तो इसलिए यहां उनका रहना बाकी गांव वालों के लिए भी जोखिम से भरा है. घर से ठीक सामने की ओर तालाब है. वहां खड़े फैन ने बताया कि सिद्धू ने इस तालाब को साफ कराया था. पहले यहां बहुत गंदगी थी बीमारी फैलती थीं. लेकिन सिद्धू ने सभी गांव वालों के हित में बहुत से काम कराए.

ये सब बता रहा फैन राजस्थान के श्रीगंगानगर से आया था. सवाल था कि उसको यह सब कैसे पता? उसने बताया कि वो सिद्धू को बहुत पहले से फॉलो करते आ रहा है. कई बार यहां आना-जाना हुआ है. सिद्धू के कामों और गानों में ऐसा क्या है जो फैन बना दिया? जवाब मिला- वो कुछ कहता था तो लगता था कि हमारी खुद की कहानी है या हमारी जुबान कोई और शख्स बोल रहा है.

लेकिन सिद्धू के गानों पर तो गन कल्चर को बढ़ावा देने के आरोप लगते हैं? इस सवाल पर उसका कहना था सिद्धू नई पीढ़ी की आवाज था. सिद्धू के गानों में सच्चाई होती थी. यही तो आज के समय की सच्चाई है. राजस्थानी फैन ने सिद्धू मूसेवाला का गाना 295 भी गाकर सुनाया. (इस गाने को सिद्धू के इत्तेफाक से भी जोड़कर देखा गया कि सिद्धू ने अपने गाने के जरिए 29-5 यानी मौत की तारीख का जिक्र पहले ही कर दिया था. हालांकि यह एक कानूनी धारा है जो कि सिद्धू मूसेवाला के खिलाफ लगाई गई थी.) फैन को पंजाबी तो नहीं आती थी, लेकिन वो जितना भी सिद्धू के शब्दों को समझ पाया उसने गाकर सुनाया.

नित कॉन्ट्रोवर्सी क्रिएट मिलूंगी

धर्मा ते नाम ते डिबेट मिलूंगी

सच बोलेगा तां मिलूं 295 जे

करेगा तरक्की पुत्त हेट मिलूंगी

इसका हिंदी में मतलब कुछ ऐसा है...

आपको हर रोज विवाद मिलेगा

धर्म के नाम पर आपको बहस मिलेगी

अगर आप सच बोलोगे तो आपको 295 (धारा 295) मिलेगी

और अगर आप तरक्की करोगे तो आपको नफरत भी मिलेगी.

गांव में कई युवक मिले जिन्होंने अपने हाथों पर सिद्धू के टैटू बनवाए हुए थे. कई ऐसे फैन टकराए जो कि कड़ी धूप में भी सिद्धू मूसेवाला की बनाई चीजों, उनकी गाड़ियों और ट्रैक्टर के साथ फोटो खिंचाना चाहते थे. हमारा अगला पड़ाव वो जगह थी जहां सिद्धू की हत्या की वो खूनी वारदात हुई.

वो जवाहरके गांव है जो कि मूसा गांव से 5-6 किलोमीटर दूर है. वहां पहुंचने के लिए कई लोगों से रास्ता पूछा. दिल्ली की गाड़ी और उसपर आजतक लिखा देख लोग समझ रहे थे कि हमें कहां जाना होगा. एक शख्स से पता पूछने के लिए शीशा नीचे किया तो उसने सिद्धू सुनते ही आगे से दांए लेने का इशारा कर दिया. यह रास्ता बताना भी स्थानीय लोगों के लिए आम हो चुका है. हमारी ही तरह यहां आज भी हजारों लोग आते हैं. फोटो खिंचाते हैं. ऐसे में स्थानीय लोगों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है कि उस दीवार और सड़क को संजोकर रखा जाए.

वो किसी और के घर की दीवारें हैं. AK47 से किए हुए फायर कितनी तेज और दूरी से रहे होंगे इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि दीवारों में काफी गहरे छेद हैं. गांव वालों ने उस दीवार को लाल रंग के पेंट से हाइलाइट कर दिया है और छेदों को कांच के शीशों से रंग दिया है. सड़क पर थार गाड़ी जितनी जमीन को भी अलग से उकेरा हुआ है.

ये सब कवायदें, कोशिशें, सब उस 29 साल के लड़के के लिए. जिसने अपनी जवानी में जो पहचान इस गांव को पूरी दुनिया में दिलाई ये गांव और इसके निवासी आज भी खुद को उसका कर्जदार समझते हैं. सिद्धू मूसेवाला अपनी गानों में एक लाइन का खूब इस्तेमाल करते थे, ‘दिल दा नी माड़ा, तेरा सिद्धू मूसेवाला’. इसका मतलब दिल का बुरा नहीं है, तुम्हारा सिद्धू मूसेवाला’. ये भाव आज भी उस मूसा गांव में महसूस किया गया.